अगर मानवाधिकार और नियम कानून की बात की जाय तो इसमें सबसे पहले सलाह तमाम इस्लामिक मुल्क देते दिखाई देंगे. उदहारण के लिए म्यांमार मामले में बौद्धों को कैसे रहना चाहिए और उनको क्या करना चाहिए इसकी सलाह सबसे ज्यदा इस्लामिक मुल्को से आ रही थी. इसके अलावा श्रीलंका में ईस्टर में चर्चो में हुए ब्लास्ट के बाद वहां धैर्य रखने आदि की बातें मुस्लिम देशो से ही आ रही थी. कश्मीर मामले में भी पाकिस्तान की हरकत से सभी परिचित हैं .
लेकिन जब वही नियम और कानून खुद अपनाना होता है तो अचानक ही उन्ही इस्लामिक मुल्को के तौर तरीके बदल जाया करते हैं. कभी ईरान अजीब तरह के नियम लागू करता है तो कभी अपने देश में कमाने गये लोगों को सभी मानवाधिकार आदि को भुला कर जबरन बंधक बना लिया जाता है और कई बार तो सर कलम कर के भेजा जाता है..
इतना ही नहीं, आज सीरिया और ईराक को आतंक मुक्त कर रहे देशो का विरोध कर रहे इस्लामिक मुल्को ने कभी की थी गंभीर नियम विरुद्ध हरकत. ये समय था वर्ष 1972 का और दिन था आज का ही अर्थात 6 अक्टूबर.. अपनी मजहबी सोच से पिछले सदियों से लड़ते आये मुस्लिम देशो ने एक साथ एकजुटता दिखाई थी और यहूदियों के देश इजरायल पर हमला बोल दिया था.. उस हमले की शुरुआत की थी उस समय मुस्लिम देशो का मुखिया और अगुवा बनने की धुन में रहने वाले इजिप्ट ने..
मुस्लिम देशो में वही अगुवा बनने की आज की धुन में सबसे आगे तुर्की है जो दुनिया के हर मामले में अपनी टांग अड़ाता दीखता है.. इजिप्ट ने जैसे ही इजरायल पर हमला किया था वैसे ही उसका अनुसरण सीरिया ने किया था और वो भी इजिप्ट के साथ हमले में शामिल हो गया.. उस समय सभी इस्लामिक मुल्क एक हो गये थे और इजरायल अकेला.. ईराक से ले कर ईरान और पाकितान तक सभी परोक्ष रूप से इजरायल के खिलाफ जितना उनसे सम्भव था वो कर रहे थे.. लेकिन उस धैर्य की प्रशंसा करनी होगी और हिम्मत की भी जब इजरायल एक पल भी नही विचलित हुआ था और उसने पीछे हटने से भी मना कर दिया था..
इजरायल में उस समय न सिर्फ सैनिको के बल्कि महिलाओं , बच्चो के साथ वृद्धो के भी हाथो में हथियार दिखाई देते थे और हर कोई अपने सैनिको के साथ कंधे से कंधा मिला कर खड़ा होता दिखाई दे रहा था… एक लम्बी जंग चली थी ये जिसमे दोनों तरफ से लोग मारे गये पर अगर कोई इंच भर भी पीछे नहीं हटा था तो वो था इजरायल.. आखिरकार तमाम इस्लामिक मुल्को ने अपने घुटने टेक ही दिए थे और दुनिया को एक नया संदेश गया था कि अमेरिका और रूस के अलावा एक महाशक्ति और भी है जिसका नाम इजरायल है ..
उस समय भारत सरकार का रवैया तटस्थ था.. कई कट्टरपंथी सोच और आतंकी सोच के लोगों ने इजरायल के खिलाफ आज तक मोर्चा खोल रखा है .. इजिप्ट द्वारा किया गया ये हमला इजरायल के सिनाई प्रायदीप पर था. ख़ास बात ये है कि हमले का दिन वो चुना गया था जो यहूदियों का सबसे पवित्र दिन माना जाता है और इस दिन को योन किप्पूर कहा जाता है .. मकसद ये था कि इस दिन तमाम यहूदी अपने त्यौहार में व्यस्त होंगे पर इस्लामिक मुल्को की ये धारणा गलत निकली और इजरायल तैयार था..
किसी को नमाज़ के समय परेशान न करना, किसी को उसके ईद बकरीद आदि के दिन पीड़ा न देना जैसे शब्द अक्सर मुस्लिम देशो से सुनाई देते है लेकिन इजरायल वालों के सबसे पवित्र दिन जिस प्रकार से सीरिया और इजिप्ट की फौजों ने अपने त्यौहार मना रहे यहूदियों का खून बहाने के लिए कदम बढाये थे वो इतिहास के निकृष्ट कृत्यों में से एक है.. आज भी इजरायल वाले इस दिन अपने बलिदानी साथियों की याद में अतंक के उस निकृष्ट रूप को ध्वस्त करने का संकल्प इस दिन लेते है ..