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'बच्चे नहीं टाइम बम हैं': नागपुर के दंगाइयों ने अपनाया था फिलिस्तीनी मॉडल... नामजद नाबालिग भी तैयार थे तहर्रूश के लिए

नागपुर के हिंसक नाबालिगों को पता था काफिर और मोमिन में फर्क

Rahul Panday
  • Mar 20 2025 12:06PM

महाराष्ट्र के नागपुर में 17 मार्च को हुई हिंसा में सुदर्शन न्यूज़ ने अपनी ग्राउंड रिपोर्ट में एक बड़ा खुलासा किया है। इस हिंसा का तार फिलिस्तीन से जुड़ता दिखाई दे रहा है। नागपुर के दंगाइयों के शरीर भले ही फिलिस्तीन से 14 हजार किलोमीटर दूर थे पर उनकी सोच और हिंसक शैली हूबहू फिलिस्तीन के आतंकियों से मेल खाती है। हिंसा के बाद हमने न सिर्फ जमीनी परिस्थितियों का आंकलन किया बल्कि FIR कॉपी का भी अध्ययन किया। हमारे निष्कर्ष में जो निकल कर सामने आया वह आने वाले कल के लिए एक बहुत बड़े संकट के अलार्म जैसा है। 

हमास करता है नाबालिगों को आगे

इजरायल के खिलाफ सबसे ज्यादा सक्रियता से लड़ रहे आतंकी संगठन हमास की कुटिलता जग-जाहिर है। फिलिस्तीन का रहनुमा बनने का ठेका ले चुके हमास की सबसे बड़ी नीचता उसके द्वारा नाबालिग बच्चों को अटैक और डिफेन्स के तौर पर प्रयोग करने जैसी हरकतें हैं। वह नाबालिग बच्चों को पत्थर और गोलियों जैसे हथियार पकड़ा कर इजरायली फौजों के आगे खड़ा कर देता है। 

हमास के मेन लाइन आतंकी उन नाबालिगों के पीछे छिप कर हमला करते रहते हैं। यदि उन नाबालिगों के हाथों कोई इजरायली सैनिक मारा जाता है तो फिलिस्तीनी जश्न मनाते हैं और उसे अपने मजहब के हिसाब से नन्हा गाज़ी की पदवी देते हैं। वहीं अंतर्राष्ट्रीय नियम कानूनों से लड़ रहे इजरायली सैनिकों के लिए ऐसी स्थिति असहज होती है। उनको अपनी रक्षा इस शर्त पर करनी होती है कि पत्थरबाज नाबालिगों को कोई नुकसान न पहुँचे। 

यही वो समय होता है जब दुनिया भर के तमाम इस्लामी और वामपंथी कैमरे इजरायल के जवानों पर सेट होते हैं। उनको इन्तजार होता है कि आत्मरक्षा में ही सुरक्षा बल कोई कदम उठाए और वो दुनिया भर में मानवाधिकार का हो हल्ला मचाना शुरू कर दें। मानवाधिकार आयोग भी दुनिया के हर हिस्से में इस्लामी चरमपंथ को खुला सपोर्ट करता है। उसके लिए सुरक्षा बलों के जीवन की संसार के किसी भी हिस्से में कोई भी कीमत नहीं है। 

मानवाधिकार आयोग के साथ वामपंथी मीडिया भी इस्लामी चरमपंथ से वित्त पोषित रहती है। तिल का ताड़ बना कर वह नाबालिग आतंकियों को कुछ ही मिनटों में महिमामंडित कर देती है। फिर तो क्या संयुक्त राष्ट्र संघ और क्या नाटो। सब जगह खुद को बचाने के लिए बल प्रयोग करने वाला सैनिक ही खलनायक घोषित कर दिया जाता है। ऐसे अनगिनत उदाहरण वीडियो आदि के माध्यम से इंटरनेट पर देखे जा सकते हैं। कई ऐसे सुरक्षा बल दुनिया की अलग-अलग जेलों में आज भी कैद हैं जो खुद को बचाने के चक्कर में फिलिस्तीनी मॉडल का शिकार हुए हैं। 

नागपुर में भी फिलिस्तीनी मॉडल 

नाबालिगों के नाम पर आतंकवाद की जो विडंबना और दंश इजरायली सैनिक झेल रहे हैं, वही सब कुछ भारत के जवानों ने भी कई बार सहा है। कश्मीर जैसे स्थानों पर एक समय अनगिनत जवानों की वर्दी तक उतरवा ली गई। थोड़ा समय पहले याद करें तो पत्थरबाजों पर चली पैलेट गन के शिकार ज्यादातर नाबालिगों को ही दुनिया भर में दुष्प्रचारित किया जाता था। तब भाईचारे की माँग में कई लोग इतने मदमस्त थे कि उनको कोई फर्क नहीं पड़ता था। अब अब फिलिस्तीनी मॉडल आतंकवाद की आग उनके दरवाजे पर आ गई तब उन्हें भी सच साक्षात दिख रहा है। 

नागपुर केस में दर्ज FIR चीख-चीख कर गवाही दे रही है कि महाराष्ट्र पुलिस के जवानों की स्थिति इजरायल के सैनिकों जैसी हो गई थी। 51 नामजदों की FIR में 5 ऐसे संपोले थे जो नाबालिग के तौर पर दर्ज हैं। यानि कि वैश्विक आतंकवाद में 10% की हिस्सेदारी फिलिस्तीनी मॉडल की अब भारत में भी है। अब तक हुई कुल 80 गिरफ्तारियों में लगभग 10 दंगाई नाबालिग निकले हैं। ये संवैधानिक तौर पर भले ही अपरिपक्व माने जाते हैं पर असलियत में इन सभी ने आतंकवाद, कट्टरपंथ का पूरा पहाड़ा याद कर लिया है। 

इन कथित नाबालिगों को अच्छे से पता है कि काफिर कौन है और मोमिन कौन। अपना कौन-पराया कौन। इनको न देश से मतलब है और न ही देश की रक्षा कर रहे सुरक्षा बलों से। इनको रटा दिया गया है कि जिसने भी वर्दी पहनी है उसे मार डालने पर सवाब मिलता है। खुद पुलिस की FIR यह बताती है कि भीड़ ने कहा, "ये पुलिसकर्मी हिन्दू हैं। इनको मार डालो। जिन्दा न बचने पाएँ।"

तहर्रूश जैसे खेल में भी एक्सपर्ट 

नागपुर में मुस्लिम भीड़ जब शाँति और सौहार्द को रौंदते हुए आगे बढ़ रही थी तब उसकी नजर एक युवा महिला पुलिसकर्मी पर पड़ी। महिला पुलिसकर्मी की भर्ती साल 2021 में हुई थी। नाबालिगों की मौजूदगी वाली उस भीड़ ने महिला स्टाफ को घेर लिया और अश्लीलता शुरू कर दी। साथी पुलिसकर्मियों ने अगर उस समय हस्तक्षेप न किया होता तो यकीनन महिला पुलिसकर्मी उस दरिंदगी का शिकार हो जाती जो हाल ही में इजरायल से अपहरण हुई एक लड़की के तौर पर दुनिया ने देखी थी। 

वह बेचारी लड़की पहले सामूहिक दुष्कर्म और दरिंदगी का शिकार हुई थी फिर उसे जीप में पीछे लाद कर नग्न अवस्था में गाजा-फिलिस्तीनी की सड़कों पर दौड़ाया गया था। अंत में उस महिला के प्राण पखेरू उड़ गए थे। पूरे फिलिस्तीन तो छोड़िए, दुनिया के किसी हिस्से में सेक्युलरिज़्म के ठेकेदार या इस्लामी अलंबरदार ने इस राक्षसी कृत्य पर उफ़ तक नहीं बोला था। यह हरकत समाज में दहशत कायम करने के लिए ही नहीं बल्कि अपनी दानवी करतूतों की पूर्ति के लिए की जाती है।

 

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