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Paush Purnima 2025: पौष पूर्णिमा पर आज करें इस कथा का पाठ... जानिए पुण्यकाल में कौन सी चीजों का करना चाहिए विशेष दान?

पौष पूर्णिमा से शुरू होने वाली पुण्यकालीन परंपराओं, दान-पुण्य और व्रत का धार्मिक महत्व यहाँ पढ़ें...

Ravi Rohan
  • Jan 13 2025 11:37AM

हिंदू पंचांग के अनुसार साल में कुल 12 पूर्णिमा तिथियाँ होती हैं, और हर एक का अपना खास धार्मिक महत्व होता है। आज, पौष माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि है, जो खासतौर पर महाकुंभ के प्रारंभ होने के साथ जुड़ी हुई है। इस दिन की धार्मिक मान्यता के अनुसार, मां लक्ष्मी अपनी अष्ट सिद्धियों को जागृत करती हैं और पृथ्वी पर भ्रमण करते हुए लोगों को समृद्धि और ऐश्वर्य प्रदान करती हैं। इसलिए, इस दिन विशेष रूप से मां लक्ष्मी की पूजा का महत्व है।  

महाकुंभ और मकर संक्रांति का संयोग

इस साल मकर संक्रांति पौष मास में नहीं, बल्कि माघ मास की प्रतिपदा पर मनाई जाएगी। आज (13 जनवरी) पौष पूर्णिमा है, और कल (14 जनवरी) मकर संक्रांति का पर्व होगा। दोनों ही पर्वों पर सूर्य पूजा, दान-पुण्य और नदी स्नान की परंपरा है। इसके अलावा, इस साल प्रयागराज में महाकुंभ भी आरंभ हो रहा है, जिससे इस दिन का महत्व और भी बढ़ जाता है। खासतौर पर पौष पूर्णिमा के दिन नदी स्नान और दान का अत्यधिक महत्व है। 

पौष मास और माघ स्नान की शुरुआत 

पौष मास हिंदी पंचांग का दसवां महीना है, और इस माह की पूर्णिमा पर यह मास समाप्त होता है। इसके बाद, अगले दिन यानी 14 जनवरी से माघ मास का प्रारंभ होता है। पौष पूर्णिमा के दिन चंद्रमा अपनी पूर्ण कलाओं में होता है, और इस दिन चंद्रमा ज्यादा बड़ा और चमकदार दिखाई देता है। साथ ही, पौष पूर्णिमा से ही माघ स्नान की शुरुआत होती है, जो अगले महीने भर तक चलता है। इसे माघ स्नान कहा जाता है और इस दौरान प्रतिदिन नदी स्नान की परंपरा है।

दान और पुण्य का महत्व 

स्कंद पुराण के अनुसार, पौष पूर्णिमा के दिन नदियों में स्नान करने से भक्तों के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं और उन्हें पापों से मुक्ति मिलती है। इस दिन विशेष रूप से चंद्र दर्शन और चंद्र को अर्घ्य देने का महत्व है। चंद्रमा की रोशनी में कुछ देर बैठने से सकारात्मक ऊर्जा मिलती है। दान-पुण्य का भी इस दिन अहम स्थान है। जरूरतमंदों को अन्न, वस्त्र, जूते-चप्पल, धन, और शिक्षा सामग्री दान करनी चाहिए। इस दिन दान करने से कई गुना पुण्य फल प्राप्त होता है। 

सूर्य पूजा और गुड़ का दान

पौष पूर्णिमा पर स्नान के बाद सूर्य पूजा करनी चाहिए। इसके लिए तांबे के लोटे में जल भरकर, "ऊँ सूर्याय नम:" मंत्र का जाप करते हुए सूर्य को अर्घ्य चढ़ाना चाहिए। इसके अलावा, सूर्य को गुड़ का दान करना चाहिए, जिससे कुंडली के सूर्य दोष का निवारण होता है और जीवन में समृद्धि आती है।  

पौष पूर्णिमा और व्रत की परंपरा

इस दिन व्रत रखने की परंपरा भी है। विशेष रूप से भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी का अभिषेक करना चाहिए। सत्यनारायण कथा का पाठ करना, "ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय" मंत्र का जाप और धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन इस दिन के विशेष कार्य हैं।  

राजा दिलीप की कथा 

पौष पूर्णिमा से जुड़ी एक प्रसिद्ध कथा राजा दिलीप से संबंधित है। वह अयोध्या के राजा थे और गौसेवा करते थे। एक बार उनके राज्य में अकाल पड़ गया। इस समस्या से निजात पाने के लिए उन्होंने ऋषियों से मार्गदर्शन लिया, जिनकी सलाह पर राजा ने पौष पूर्णिमा के दिन गंगा में स्नान किया और गौदान किया। उनकी श्रद्धा और दान के प्रभाव से अकाल समाप्त हुआ और राज्य में खुशहाली लौट आई। इसी कथा के कारण पौष पूर्णिमा के दिन गंगा, यमुना, नर्मदा, सरस्वती जैसी पवित्र नदियों में स्नान की परंपरा है।  

नदी स्नान और तीर्थ दर्शन की परंपरा 

पौष पूर्णिमा के दिन नदियों में स्नान करने और तीर्थों के दर्शन करने की प्राचीन परंपरा है। इस दिन का महत्व न केवल स्नान और पूजा में, बल्कि दान-पुण्य और तिथियों के उल्लंघन से जुड़ी सभी परंपराओं में निहित है।

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