तमिलनाडु की M.K. स्टालिन की सरकार ने बजट में बड़ा बदलाव करते हुए रुपये के प्रतीक ‘₹’ को हटाकर तमिल लिपि में ‘ரூ’ (रु) चिह्न अपनाने का फैसला किया है। इस कदम को लेकर राज्य सरकार का कहना है कि यह तमिल भाषा को प्राथमिकता देने की दिशा में उठाया गया कदम है।
केंद्र पर हिंदी थोपने का आरोप
मुख्यमंत्री M.K. स्टालिन केंद्र सरकार पर हिंदी थोपने का आरोप लगाते रहे हैं। इस बदलाव को भी उसी कड़ी से जोड़कर देखा जा रहा है। स्टालिन सरकार का मानना है कि तमिलनाडु को अपनी सांस्कृतिक पहचान बनाए रखनी चाहिए, इसलिए रुपये के राष्ट्रीय प्रतीक में बदलाव किया गया है। हालांकि, कई लोग इस फैसले पर सवाल उठा रहे हैं क्योंकि मौजूदा रुपये का ‘₹’ प्रतीक भी तमिलनाडु के एक व्यक्ति द्वारा ही डिजाइन किया गया था।
रुपये के प्रतीक ‘₹’ का डिजाइन किसने किया था?
वर्तमान में उपयोग किए जा रहे रुपये के प्रतीक ‘₹’ को तमिलनाडु के उदयकुमार धर्मलिंगम ने डिजाइन किया था। उनका जन्म 10 अक्टूबर 1978 को कल्लाकुरिची में हुआ था। वे देश के प्रतिष्ठित डिजाइनर और शिक्षाविद हैं और इस समय आईआईटी गुवाहाटी के डिज़ाइन विभाग के प्रमुख हैं।
DMK विधायक के बेटे ने बनाया था राष्ट्रीय प्रतीक
उदयकुमार धर्मलिंगम के पिता एन. धर्मलिंगम डीएमके के विधायक रह चुके हैं। 2010 में रुपये के प्रतीक को चुनने के लिए आयोजित प्रतियोगिता में कुल 3,331 प्रविष्टियां आई थीं। इन सभी में से पांच डिजाइन को फाइनल किया गया था और अंततः उदयकुमार के डिजाइन को रुपये का आधिकारिक प्रतीक चुना गया।
तिरंगे से प्रेरित है रुपये का प्रतीक
उदयकुमार धर्मलिंगम ने बताया था कि उनका डिजाइन देवनागरी के 'र' और रोमन अक्षर 'R' को मिलाकर बनाया गया है। उन्होंने इसे भारतीय ध्वज से प्रेरित बताया था और कहा था कि इसकी क्षैतिज रेखाएं समानता और संतुलन को दर्शाती हैं।
BJP ने साधा निशाना
तमिलनाडु में रुपये के प्रतीक को बदलने के स्टालिन सरकार के फैसले पर भाजपा ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है। राज्य भाजपा अध्यक्ष के. अन्नामलाई ने इसे राष्ट्रीय प्रतीक की अनदेखी बताया। वहीं, भाजपा नेता तमिलिसाई सुंदरराजन ने कहा कि अगर स्टालिन तमिल पहचान को इतना महत्व देते हैं, तो उन्हें अपना नाम भी बदलकर पूरी तरह तमिल कर लेना चाहिए।
विवाद के बावजूद DMK सरकार अडिग
हालांकि, विवादों के बावजूद तमिलनाडु सरकार अपने फैसले पर कायम है। सरकार का कहना है कि यह कदम राज्य की भाषा और संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए उठाया गया है। विपक्षी दलों और राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह फैसला केवल राजनीतिक लाभ के उद्देश्य से लिया गया है।
तमिलनाडु सरकार के इस फैसले से राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर भाषा और संस्कृति को लेकर नई बहस शुरू हो गई है। अब यह देखना होगा कि केंद्र सरकार इस पर क्या रुख अपनाती है।