शारदीय नवरात्रि शुरुआत कल यानी 3 अक्टूबर से हो चुकी है। इस बार नवरात्रि 3 अक्टूबर से 11 अक्टूबर तक चलेगी। आज प्रतिपदा तिथि पर कलशस्थापना के साथ ही नवरात्रि का महापर्व शुरू हो जाएगा। इस वर्ष देवी मां पालकी पर सवार होकर पृथ्वी पर आ रही हैं। देवी दुर्गा विश्व की माता हैं, मान्यता है कि नवरात्रि के दौरान देवी मां की पूजा करने से सभी कष्ट, रोग, दोष, दुख और दरिद्रता का नाश हो जाता है। नवरात्रि का दूसरा दिन मां ब्रह्मचारिणी को समर्पित है। ऐसे में आइए जानते है कि नवदुर्गा के दूसरे स्वरुप मां ब्रह्मचारिणी की क्या मान्या है और माता रानी की उपासना विधि से क्या लाभ होता है।
कौन है मां ब्रह्मचारिणी ?
नवरात्रि के दूसरे दिन की अधिष्ठात्री देवी ब्रह्मचारिणी हैं। देवी का स्वरूप अत्यंत रमणीय एवं भव्य है। 'ब्रह्म' का अर्थ है तपस्या। अर्थात वह तपस्या करने वाली देवी हैं। नारद जी की सलाह पर उन्होंने कई हजार वर्षों तक भगवान शिव की तपस्या की। उनके तपस्वी आचरण के फलस्वरूप उनका नाम 'ब्रह्मचारिणी' पड़ गया।
मां के एक हाथ में कमंडल और दूसरे हाथ में जप की माला है। माता का यह तपस्वी स्वरूप सभी को अनेक फल देने वाला है। इनकी पूजा करने से व्यक्ति के जीवन में सद्गुणों की वृद्धि होती है। मां के आशीर्वाद से वह कभी कर्तव्य पथ से विचलित नहीं होते। उसे हर कार्य में सफलता प्राप्त होती है। इस दिन तपस्वी का मन स्वाधिष्ठान में स्थित रहता है।
मां ब्रह्मचारिणी की पूजा विधि
मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करते समय पीले वस्त्र धारण करें। इसके अलावा देवी मां को सफेद चीजें जैसे मिश्री, चीनी या पंचामृत अर्पित करें। देवी मां के सामने ज्ञान और वैराग्य के किसी भी मंत्र का जाप किया जा सकता है। वैसे मां ब्रह्मचारिणी के लिए ॐ ऐं नमः मंत्र का जाप विशेष है। जलीय आहार और फलों पर भी विशेष ध्यान दें।
देवी ब्रह्मचारिणी का मंत्र है
दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलु | देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा ||
मां ब्रह्मचारिणी की पूजा का लाभ
1. नवरात्रि के दूसरे दिन सफेद वस्त्र धारण करके पूजा करनी चाहिए या महिलाएं चाहें तो पीला वस्त्र भी पहन सकती हैं।
2. इस दिन माता के मंत्रों के साथ चंद्रमा के मंत्र का जब भी आप कर सकते हैं।
3. माता को चांदी की वस्तु भी समर्पित की जा सकती है और बाद में इसको अपने पास सुरक्षित रखा जा सकता है।
4. इस दिन शिक्षा और ज्ञान के लिए विद्यार्थियों को मां सरस्वती की उपासना भी करनी चाहिए, उसके परिणाम उनके लिए बहुत शुभ होते हैं।
मां ब्रह्मचारिणी का भोग
नवरात्रि के दूसरे दिन माता को शक्कर का भोग लगाएं और भोग लगाने के बाद घर के सभी सदस्यों में बांटें।
मां ब्रह्मचारिणी की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, देवी पार्वती ने दक्ष प्रजापति के घर में ब्रह्मचारिणी के रूप में जन्म लिया था। देवी पार्वती का यह रूप एक साधु के समान था। एक बार उन्होंने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या करने का संकल्प लिया। उनकी तपस्या हजारों वर्षों तक चलती रही। भीषण गर्मी, कड़ाके की ठंड और तूफानी बारिश भी उनकी तपस्या के संकल्प को नहीं तोड़ सकी। कहा जाता है कि देवी ब्रह्मचारिणी हजारों वर्षों तक केवल फल, फूल और बिल्व पत्र खाकर जीवित रहीं। जब भगवान शिव नहीं मानें तो उन्होंने इन चीजों का भी त्याग कर दिया और बिना भोजन व पानी के अपनी तपस्या को जारी रखा। पत्तों को भी खाना छोड़ देने के कारण उनका एक नाम 'अर्पणा' भी पड़ गया।