सीतापुर, यूपी। आज अखिल भारतीय ब्राह्मण समाज और अन्य सामाजिक संगठनों के कार्यकर्ताओं ने राष्ट्रपति को संबोधित ज्ञापन पत्र जिलाधिकारी को सौंपा। तिरुपति बालाजी मंदिर के प्रसाद में मिलावट पाए जाने के बाद से पूरे भारत के हिंदुओं में व्यापक रोष देखने को मिल रहा है। सोशल मीडिया समेत विभिन्न स्थानों पर हिंदुओं का गुस्सा स्पष्ट रूप से देखा जा रहा है।
इस मिलावट के विरोध में हिंदू समुदाय के लोग लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं। ज्ञापन में कहा गया है कि प्रसाद में अशुद्ध मिलावट हिंदुओं की भावनाओं को आहत करने और धार्मिकता को क्षति पहुंचाने के उद्देश्य से की गई थी।
अखिल भारतीय ब्राह्मण समाज के अध्यक्ष धीरज पाण्डेय ने कहा कि समाज ने सीबीआई जांच की मांग की है और उन लोगों के खिलाफ मृत्यु दंड की मांग की है, जो हिंदू धार्मिकता के साथ खेल रहे हैं।
तिरुपति बालाजी मंदिर का इतिहास 9वीं शताब्दी से जुड़ता है, जब कांचीपुरम के पल्लव शासकों ने इस स्थान पर अपना अधिकार स्थापित किया। हालांकि, 15वीं शताब्दी के विजयनगर वंश के शासन के बाद भी इसकी प्रसिद्धि सीमित रही। 15वीं शताब्दी के बाद मंदिर की ख्याति धीरे-धीरे फैलने लगी। 1843 से 1933 ई. तक, मंदिर का प्रबंधन रामजी मठ के महंत ने संभाला। 1933 में, मद्रास सरकार ने इसका प्रबंधन एक स्वतंत्र समिति 'तिरुमाला-तिरुपति' को सौंपा। आंध्र प्रदेश राज्य बनने के बाद इस समिति का पुनर्गठन किया गया और एक प्रशासनिक अधिकारी को सरकार के प्रतिनिधि के रूप में नियुक्त किया गया।
मंदिर की विशेषताएं
बालाजी को प्रतिदिन धोती और साड़ी से सजाया जाता है। गर्भगृह में चढ़ाई गई किसी वस्तु को बाहर नहीं लाया जाता है, और बालाजी के पीछे जलकुंड है। बालाजी के ठोड़ी पर चंदन लगाने की प्रथा तब शुरू हुई जब ठोड़ी से रक्त गिरा था। उनके सिर पर हमेशा ताजा रेशमी केश होते हैं। मंदिर के 23 किलोमीटर दूर एक गांव है, जहां बाहरी व्यक्तियों का प्रवेश निषेध है, और वहीां के फूल व अन्य वस्तुएं भगवान को चढ़ाई जाती हैं। बालाजी गर्भगृह के मध्य में खड़े हैं, लेकिन देखने पर दाईं तरफ लगते हैं। उनकी पीठ पर हमेशा गीलापन रहता है और कान लगाने पर समुद्र की ध्वनि सुनाई देती है। हर गुरुवार को भगवान बालाजी की चंदन से सजावट की जाती है, जिसमें लक्ष्मीजी की छवि उतर आती है। गर्भगृह में जलने वाले दीपक सदियों से जल रहे हैं और कभी नहीं बुझते।
राज्य सरकार द्वारा साझा की गई रिपोर्ट
राज्य सरकार द्वारा साझा की गई एक रिपोर्ट में कहा गया है कि लड्डू में इस्तेमाल होने वाले घी में कई प्रकार के वेजिटेबल और एनिमल फैट पाए गए हैं। इनमें सोयाबीन, सनफ्लॉवर, ऑलिव, रेपसीड, लिसीड, व्हीट जर्म, मेज जर्म, कॉटन सीड, कोकोनट, पाम कर्नल, और पाम ऑयल के साथ-साथ बीफ टैलो, लार्ड और फिश ऑयल भी शामिल हैं।