इनपुट- श्वेता सिंह, लखनऊ, twitter-@shwetamedia207
राम जन्मभूमि आंदोलन के दौरान अयोध्या में कारसेवा में पुरुषों ही नहीं, महिलाओं ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। अब जब रामलला की प्राण प्रतिष्ठा का निमंत्रण सभी कारसेवकों को भेजा जा रहा है तो कई महिला कारसेवकों की जाबांजी भरी कहानियां भी सामने आ रही हैं। आज हम आपको बताएंगे ऐसी ही एक कारसेवक शालिनी रामकृष्ण दबीर के बारे में; जिनके हौंसले के आगे उनकी उम्र के कोई मायने नहीं थे।
साल 1990 में लाल कृष्ण अडवाणी की अगुवाई में गुजरात के सोमनाथ से रामरथ यात्रा हो शुरू हुई थी जो महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश से होते हुए अयोध्या पहुँची थी। यात्रा और कारसेवकों का ये सिलसिला 6 दिसंबर, 1992 के बाबरी ढाँचा के विध्वंस तक चलता रहा। मुंबई की रहने वाली शालिनी ने 1990 में कार सेवा के लिए घर छोड़ दिया था। उत्तर प्रदेश पुलिस ने दादर की महिला कारसेवकों के एक समूह को गिरफ्तार कर लिया और उन्हें एक स्कूल परिसर में कैद कर दिया। उनमें से कुछ स्थानीय लोगों की मदद से भाग निकले और लगभग 50 किलोमीटर पैदल चलकर 31 अक्टूबर 1990 को कारसेवा में भाग लिया।
इस दौरान दबीर ने न केवल पुलिस लाठीचार्ज, आंसू गैस बल्कि अपने आसपास चल रही गोलीबारी का भी अनुभव किया। हालांकि, उस समय कोई भी डगमगाया नहीं। शालिनी ने कहा, उनके पास से गोली छूकर निकली थी लेकिन हनुमान जी ने कार सेवकों को ताकत दी थी। शालिनी बताती हैं कि तब उनकी उम्र 63 वर्ष की थी लेकिन राम लला की जगह छीनी थी यह उन्हें बर्दाश्त नहीं हुए और वो भी अयोध्या चल पड़ी। गोलियां चली, लाठी भी चली लेकिन तब भी हम सब मिलकर भजन गा रहे थे।
उम्रदराज शालिनी दबीर 30 अक्टूबर 1990 को अयोध्या पहुँची थीं और बाबरी ढाँचे पर भगवा झंडा फहराने के पल की साक्षी बनीं थीं। इन कारसेवकों ने करीबन 50 किलोमीटर पैदल चल 31 अक्टूबर 1990 को कारसेवा में हिस्सा लिया था। वो बताती हैं, उनके करीब से एक गोली उन्हें छूकर निकली थी, लेकिन हनुमान जी ने कारसेवकों को बचा लिया।