इनपुट- श्वेता सिंह, लखनऊ, twitter-@shwetamedia207
लगभग 500 वर्षों के लंबे इंतजार के बाद आखिर वो घड़ी जल्द ही आने वाली है जिसका सपना तमाम कारसेवक देख रहे थे। इस स्वप्न के पूरे होने की खुशी और उत्साह पूरे देश की गली-गली में देखने को मिल रही है। चौतरफा माहौल राममय हो गया है।
1990 में लालकृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा 30 अक्तूबर को अयोध्या पहुंचनी थी लेकिन लालकृष्ण आडवाणी बिहार में 23 अक्तूबर को गिरफ्तार कर लिए गए तो देश के तामाम हिस्सों में इसका असर देखने को मिला। कई जिलों में तो भगवा ध्वज लिए और भगवा कपड़ा पहने व्यक्ति को पुलिस पकड़कर पुलिस लाइन ले जाती थी। परिस्थितियां यह थी कि अयोध्या रवाना होने वाले कारसेवक भगवा रंग का वस्त्र थैले में रखकर ले जाने लगे। 23 अक्तूबर को लालकृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा रोके जाने पर शहर से लेकर गांव तक रामभक्तों का जुलूस अयोध्या जाने को बेताब था।
उधर बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद पूरा माहौल राममय हो गया था। विध्वंस के बड़ा तो जैसे रामभक्तों पर खाकी का कहर ही टूट पड़ा। गांव-कस्बों में पुलिस की गाड़ियां डिक लगाने लगीं और चुन चुनकर कारसेवकों को गिरफ्तार करने लगी। उस समय बिलकुल आपातकाल जुड़ा माहौल बिन गया था लेकिन इतना सब होने के बाद भी राम काज में जुटे रामभक्तों का हौसला तनिक भी नही डगमगाया। एक तरफ पुलिस रामभक्तों को ढूंढ-ढूंढकर गिरफ्तार कर रही थी और दूसरी तरफ रामभक्त भी कम नहीं थे; उन्होंने भी जेल भरो आंदोलन शुरू कर दिया।
श्री राम मंदिर आंदोलन में जेल गए किला परीक्षितगढ़ निवासी पूर्व प्रधानाचार्य एवं विहिप के पूर्व खंड प्रमुख पदम सैन मित्तल का कहना है कि विहिप नेतृत्व की ओर से संदेश आया था कि जो लोग आंदोलन का नेतृत्व कर रहे हैं वे जेल जाने से बचें और आंदोलन को और धार दें। ऐसे में मेरठ के सभी राम भक्त भूमिगत हो गये। यह आंदोलन भूमिगत होकर चलाया जाता रहा। उसी समय मुखबिर ने पुलिस को उनके बारे में सूचना दे दी। इसके बाद निर्णय लिया गया कि विहिप कार्यकर्ता प्रतिदिन 20-20 रामभक्तों की टोली बनाकर गिरफ्तारी देंगे।
विश्व हिंदू परिषद के आह्वान पर गिरफ्तारी देने के लिए रामभक्तों की भीड़ उमड़ पड़ी और सरकारी जेल छोटी पड़ गयी। ऐसे में पुलिस प्रशासन ने राम भक्तों को मुजफ्फरनगर जिले के जानसठ में बनाई गई अस्थायी जेलों में रखा। वहां एक दिन खाने को लेकर हुए विवाद के बाद विहिप कार्यकर्ताओं ने कॉलेज के चारों ओर बने गुंबदों को तोड़ दिया और वहां भगवा झंडे फहरा दिए। माहौल खराब होने से बचाने के लिए पुलिस प्रशासन ने तुरंत मुजफ्फरनगर में दूसरी अस्थायी जेल बनाई और राम भक्तों को वहां शिफ्ट कर दिया। वहां भी खाने को लेकर हंगामे के बाद अगले दिन राम भक्तों को रिहा कर दिया गया।