महाकुंभ पर महा चिंता: शास्त्रार्थ की गिरावट और शस्त्रधारी संन्यासियों का लुप्त होना – इतिहास, कारण और समाधान…
धर्म योद्धा डॉ सुरेश चव्हाणके जी की #महाकुम्भ_लेखमाला का अंतिम लेख।
🚩 महाकुंभ: शास्त्रार्थ की गिरावट और शस्त्रधारी संन्यासियों का लुप्त होना – इतिहास, कारण और समाधान 🚩
(महा कुंभ लेखमाला अंतिम लेख)
✍ डॉ. सुरेश चव्हाणके (संपादक, सुदर्शन न्यूज)
प्राचीन काल: जब महाकुंभ शास्त्र और शस्त्र दोनों का संगम था
महाकुंभ केवल एक धार्मिक मेला नहीं था, बल्कि यह धर्म, दर्शन, राजनीति और समाज के भविष्य की दिशा तय करने का सबसे बड़ा मंच हुआ करता था।
👉 यहाँ शास्त्रार्थ होते थे – जहाँ विभिन्न संप्रदायों, मतों और विचारधाराओं के विद्वान तर्क-वितर्क करके धर्म और समाज के महत्वपूर्ण प्रश्नों पर निर्णय लेते थे। इससे इस्लाम और ईसाइयों के तुलना में हमारे सिद्धांतों को सशक्त व तर्कसंगत सिद्ध कर के ही हमने हिंदुओं को जोड़े रखा था। आज उनके कु तर्को को उत्तर देने वा सर्व संमत व समन्वित मंच व व्यवस्था कहा गई?
👉 यहाँ शस्त्रधारी संन्यासियों का वर्चस्व था – नागा, अवधूत, और अन्य योद्धा संन्यासी अपने अस्त्र-शस्त्र के साथ धर्म की रक्षा के लिए संकल्प लेते थे।
लेकिन आज कुंभ केवल एक धार्मिक तीर्थ यात्रा बनकर रह गया है – शास्त्रार्थ की गूंज मंद पड़ गई है, और शस्त्र केवल परंपरा के नाम पर रह गए हैं।
1. शास्त्रार्थ की परंपरा कैसे और क्यों खत्म हुई?
(क) प्राचीन कुंभ: शास्त्रार्थ का स्वर्ण युग
📜 महाभारत काल (5000 वर्ष पूर्व)
• महर्षि वेदव्यास और अन्य ऋषियों ने महाभारत ग्रंथ के कुछ भागों का पाठ कुंभ मेले के दौरान किया था।
• विभिन्न सनातन परंपराओं के विद्वान यहाँ एकत्र होते थे।
📜 गुप्तकाल (4वीं-6वीं सदी)
• इस काल में प्रयागराज (कुंभ स्थल) को ज्ञान और धर्म का केंद्र माना जाता था।
• यहाँ कुंभ के दौरान नालंदा, तक्षशिला और विक्रमशिला जैसे विश्वविद्यालयों के आचार्यों द्वारा शास्त्रार्थ किए जाते थे।
• यह केवल आध्यात्मिक चर्चा नहीं थी, बल्कि धर्म, राजनीति, समाज और अर्थशास्त्र पर गहन चिंतन होता था।
📜 आदि शंकराचार्य और सनातन पुनरुद्धार
• आदि शंकराचार्य ने कुंभ को हिंदू पुनर्जागरण का केंद्र बनाया।
• उन्होंने देशभर में चार मठों की स्थापना की और सभी अखाड़ों को शास्त्रार्थ करने का निर्देश दिया।
• विभिन्न वैष्णव, शैव, शाक्त और अन्य संप्रदायों के बीच वैचारिक मंथन कुंभ मेले में किया जाता था।
📜 मुगलकाल (16वीं-18वीं सदी)
• अकबर और औरंगजेब के शासनकाल में हिंदू धर्मगुरुओं को निशाना बनाया गया, जिससे शास्त्रार्थ की परंपरा कमजोर हुई।
• कई हिंदू गुरुकुलों और मठों को नष्ट कर दिया गया।
• विद्वानों को डराया-धमकाया गया और कई को इस्लाम कबूलने पर मजबूर किया गया।
📜 ब्रिटिश शासन (19वीं-20वीं सदी)
• अंग्रेजों ने शास्त्रार्थ को खत्म करने के लिए गुरुकुल शिक्षा प्रणाली को ध्वस्त किया और मिशनरी स्कूलों को बढ़ावा दिया।
• सनातन धर्म को कमजोर करने के लिए अंग्रेजों ने ब्राह्मणों, वैदिक आचार्यों और धर्मगुरुओं को विभाजित किया।
• 1860 में अंग्रेजों ने कुंभ मेले के धार्मिक आयोजनों को “असंगठित और पिछड़ा” कहकर इसकी बौद्धिक शक्ति को कमजोर करने का प्रयास किया।
(ख) आधुनिक काल में शास्त्रार्थ का पतन
1. मीडिया और सोशल मीडिया की बहसों ने शास्त्रार्थ को कमजोर किया।
2. आधुनिक शिक्षा प्रणाली ने धर्म और दर्शन को महत्वहीन बना दिया।
3. राजनीतिक हस्तक्षेप ने धार्मिक आयोजनों को केवल परंपराओं तक सीमित कर दिया।
4. हिंदू धर्म में पंथों और मतों में बढ़ती दूरियों ने शास्त्रार्थ की परंपरा को कमजोर कर दिया।
2. शस्त्रधारी नागा संन्यासियों का पतन: सन्यासी सेना से शोभायात्रा तक करने में हिंदू द्रोही व्यवस्था सफल हुई!
(क) जब नागा संन्यासी धर्म के रक्षक थे
📜 8वीं सदी – आदि शंकराचार्य की सेना
• आदि शंकराचार्य ने कुंभ में शस्त्रधारी अखाड़ों की स्थापना की, जो धर्म की रक्षा के लिए लड़ते थे।
• ये नागा संन्यासी तलवार, भाले, धनुष-बाण और अन्य अस्त्र-शस्त्र धारण करते थे।
• इन्हें सन्यासी सेना कहा जाता था।
📜 मुगलकाल (16वीं-18वीं सदी)
• मुगलों ने जब हिंदू धर्मस्थलों को नष्ट करना शुरू किया, तो नागा साधु हिंदू योद्धाओं के रूप में लड़े।
• 1666 में नागा साधुओं ने औरंगजेब की सेना को हरिद्वार कुंभ में हराया।
• 1757 में अहमद शाह अब्दाली के हमले के दौरान नागा संन्यासियों ने हिंदू तीर्थयात्रियों की रक्षा की।
📜 सन्यासी विद्रोह (1763-1800)
• अंग्रेजों ने नागा संन्यासियों के बढ़ते प्रभाव को देख उन्हें खतरनाक घोषित कर दिया।
• 1763 से 1800 तक नागा संन्यासियों ने अंग्रेजों के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष किया।
• इसके बाद अंग्रेजों ने कुंभ मेले में शस्त्र लेकर चलने पर प्रतिबंध लगा दिया। जो स्वतंत्रता के बाद बदला नहीं गया। आज तो हम छोड़ कर कोई इसपर बात भी नहीं करते दिखता।
📜 1860 का ब्रिटिश कानून
• नागा संन्यासियों के हथियार रखने पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
• कुंभ मेले में शस्त्र प्रदर्शन अपराध घोषित किया गया।
• धर्म रक्षा की यह परंपरा धीरे-धीरे कमजोर हो गई।
📜 आधुनिक काल में क्या बचा?
👉 आज नागा संन्यासी केवल शोभायात्राओं में कुछ शस्त्र लेकर चलते हैं, लेकिन वे केवल प्रतीकात्मक हैं।
👉 धर्म रक्षा की भूमिका पूरी तरह समाप्त हो गई।
3. कुंभ के बौद्धिक और सैन्य पतन का परिणाम
👉 आज कुंभ केवल एक धार्मिक आयोजन बनकर रह गया है।
👉 धर्म, राजनीति और समाज पर कोई बौद्धिक बहस नहीं होती।
👉 सनातन धर्म की रक्षा के लिए संगठित प्रयासों की कमी हो गई।
👉🏻 हिंदुओं पर हो रहे अत्याचार, पलायनों या लव जिहादियों से बच्चियों की सुरक्षा के लिए यह व्यवस्था आज भी सशक्त होती तो चित्र या स्थिती क्या होती?
4. क्या कुंभ को शास्त्र और शस्त्र दोनों की वापसी चाहिए?
👉 क्या कुंभ में शास्त्रार्थ की परंपरा फिर से स्थापित होनी चाहिए?
👉 क्या नागा संन्यासियों को फिर से उनकी मूल भूमिका में लाना चाहिए?
👉 क्या हिंदू धर्म को अपनी बौद्धिक और सैन्य शक्ति वापस लाने की जरूरत है?
🚩 यदि सनातन को बचाना है, तो संन्यासियों को एवं कुंभ को फिर से अपने मूल रूप में लाना होगा – जहाँ शास्त्र भी हो और शस्त्र भी! 🚩
🚩 निष्कर्ष: कुंभ केवल आध्यात्मिक मेला नहीं, यह हिंदू शक्ति का केंद्र है!
✅ शास्त्रार्थ की परंपरा को पुनर्जीवित करना होगा।
✅ सनातन रक्षा के लिए अखाड़ों और नागा साधुओं की भूमिका पुनर्जीवित करनी होगी।
✅ कुंभ को केवल साधना तक सीमित नहीं रखना चाहिए, बल्कि यह बौद्धिक और सैन्य जागरण का भी केंद्र बनना चाहिए।
🚩 महाकुंभ लेखमाला – अंतिम और ऐतिहासिक शोधात्मक लेख
✍ डॉ. सुरेश चव्हाणके (संपादक, सुदर्शन न्यूज)