महावीर राणा सांगा का अपमान: संसद में इतिहास को कलंकित करने की साजिश।
बर्बर बाबर को राणा सांगा ने बुलाया था कहने वाले सासंद पर कार्रवाई करो।
महावीर राणा सांगा का अपमान: संसद में इतिहास को कलंकित करने की साजिश।
लेखक: डॉ. सुरेश चव्हाणके
भारत के इतिहास में जब भी वीरता, स्वाभिमान और आत्मबल की बात होती है, तब मेवाड़ के महान योद्धा राणा सांगा का नाम स्वर्ण अक्षरों में उभरकर सामने आता है। उन्होंने विदेशी आक्रांताओं से भारत की रक्षा के लिए अपने शरीर का कण-कण अर्पित कर दिया। पर आज, जब हम यह सोचते हैं कि राणा सांगा जैसी विभूतियाँ हमारे देश की शान हैं, तभी संसद जैसे सर्वोच्च लोकतांत्रिक मंच पर उन्हें “गद्दार” कहे जाने का दुस्साहस किया जाता है।
10 मार्च 2025 को समाजवादी पार्टी के सांसद रामजी लाल सुमन ने संसद में एक ऐसा बयान दिया, जिसने न केवल ऐतिहासिक तथ्यों की धज्जियाँ उड़ाईं, बल्कि भारत की संस्कृति, गौरव और सम्मान पर सीधा हमला किया। उन्होंने कहा कि राणा सांगा ने बाबर को भारत बुलाया और उन्हें गद्दार तक कह दिया। यह बयान न केवल झूठा और भ्रामक है, बल्कि भारतीय समाज के उस राजपूत आत्मबल पर भी चोट करता है जो सदा से भारत की सीमाओं और संस्कारों का रक्षक रहा है।
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इतिहास से छेड़छाड़ क्यों?
वर्तमान राजनीतिक परिवेश में कुछ पार्टियाँ और नेता तुष्टिकरण की राजनीति में इतने लिप्त हो चुके हैं कि उन्हें अब सच और असत्य में अंतर नहीं दिखता।
सपा सांसद का बयान इसी प्रवृत्ति का प्रत्यक्ष उदाहरण है। ये वही मानसिकता है जो बाबर, औरंगजेब और खिलजियों को “महान” बताती है और महाराणा प्रताप, राणा सांगा जैसे राष्ट्रनायकों को अपमानित करती है।
क्या यही है “नए भारत” की कल्पना, जिसमें हमारे बच्चों को यह सिखाया जाएगा कि जिन्होंने भारत की रक्षा की वे गद्दार थे, और जो लुटेरे थे, मंदिर तोड़ते थे, नरसंहार करते थे – वो महान थे?
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राणा सांगा कौन थे?
राणा सांगा, जिनका मूल नाम महाराणा संग्राम सिंह था, मेवाड़ के शासक और राजपूत शौर्य के प्रतीक थे।
उन्होंने जीवनभर भारत की स्वतंत्रता और गौरव की रक्षा के लिए लड़ाइयाँ लड़ीं।
बाबर जैसे आक्रांता ने जब भारत की ओर रुख किया, तब राणा सांगा ही वह योद्धा थे जिन्होंने बाबर को रोकने का साहस किया।
1527 में खानवा का युद्ध, जिसमें बाबर की तोपों और तुर्की रणनीति के विरुद्ध राणा सांगा की तलवारें लड़ीं, वो आज भी इतिहास के पन्नों में भारतीय साहस की अमिट छवि बनाकर मौजूद है।
उस युद्ध में राणा सांगा घायल हो गए थे, उनका शरीर शस्त्रों से छलनी था, फिर भी वे युद्धभूमि छोड़ने को तैयार नहीं थे।
बाबर ने खुद अपनी आत्मकथा ‘तुजुक-ए-बाबरी’ में स्वीकार किया है कि राणा सांगा उसके लिए सबसे शक्तिशाली और खतरनाक भारतीय राजा थे। जब दुश्मन भी किसी को सम्मान दे, तो सोचिए उनका स्तर कितना ऊँचा रहा होगा।
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तो बाबर को किसने बुलाया?
इतिहास बताता है कि बाबर को भारत बुलाने का षड्यंत्र लोधी वंश के पतन के बाद भारत में सत्ता संघर्ष के चलते अफगान मूल के कुछ शासकों ने किया था। राणा सांगा ने नहीं, बल्कि दिल्ली के तात्कालिक हालात और आंतरिक गुटबाजी ने बाबर के लिए मार्ग प्रशस्त किया।
राणा सांगा ने कभी भी बाबर को आमंत्रित नहीं किया, बल्कि उसके भारत में आने के बाद उसे युद्धभूमि में चुनौती दी। उन्होंने दिल्ली सल्तनत की मुस्लिम सत्ता को उखाड़ फेंकने का संकल्प लिया था। इस संकल्प के लिए उन्होंने अन्य राजपूत राजाओं को एकत्र कर बाबर के खिलाफ महासंग्राम छेड़ा। पर दुर्भाग्यवश, आज के कुछ नेताओं की सोच इतनी सीमित है कि वे राष्ट्रहित से ऊपर वोटबैंक को रख देते हैं।
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सांसद का बयान: एक साजिश या अज्ञानता?
रामजी लाल सुमन का बयान दो चीजें दर्शाता है – या तो उन्हें इतिहास का ज्ञान नहीं है, या फिर वे जानबूझकर झूठ फैलाकर हिंदू वीरों की छवि को धूमिल करना चाहते हैं।
और यदि यह साजिश है, तो यह केवल राणा सांगा के विरुद्ध नहीं, बल्कि पूरे हिंदू समाज और भारतीय इतिहास के विरुद्ध एक सुनियोजित हमला है।
यह वही मानसिकता है जिसने पाठ्यपुस्तकों में शिवाजी महाराज को “छोटा राजा”, महाराणा प्रताप को “जंगल में भागा हुआ व्यक्ति” और बाबर को “संस्कृति का वाहक” बनाकर प्रस्तुत किया।
आज संसद में उसी विकृत सोच की गूँज सुनाई दी।
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इस अपमान की प्रतिक्रिया क्या होनी चाहिए?
सांसद को बर्खास्त करना इस देश के करोड़ों हिंदुओं, राजपूतों और राष्ट्रप्रेमियों के सम्मान की रक्षा करना होगा।
यदि संसद जैसे पवित्र मंच पर इस तरह के झूठे और अपमानजनक बयान दिए जाते रहेंगे, तो आने वाली पीढ़ियाँ क्या सीखेंगी?
क्या उन्हें यह सिखाया जाएगा कि राणा सांगा जैसे बलिदानी गद्दार थे और बाबर जैसे लुटेरे आदर्श?
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समाज की प्रतिक्रिया: गुस्सा और आंदोलन
सपा सांसद के बयान के बाद देश भर में आक्रोश की लहर फैल गई है।
सोशल मीडिया पर #JusticeForRanaSanga ट्रेंड कर रहा है।
राजपूत समाज, इतिहासकार, छात्र संगठन और सामान्य जनता – सभी ने इस बयान की निंदा की है।
देश के कई हिस्सों में प्रदर्शन हो रहे हैं, ज्ञापन सौंपे जा रहे हैं और FIR की माँग की जा रही है।
सवाल ये नहीं है कि सांसद ने क्या कहा, सवाल यह है कि क्या ऐसे लोग संसद में बैठने के लायक हैं?
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राजनीति में मुगल प्रेम: एक नया खतरा
सपा और कुछ अन्य विपक्षी पार्टियाँ लगातार मुगल आक्रांताओं को “भारतीय गौरव” के रूप में पेश करने की कोशिश करती रही हैं।
कभी औरंगजेब के मकबरे को सजाया जाता है, कभी बाबर की मजार पर फूल चढ़ाए जाते हैं, कभी टीपू सुल्तान को स्कूलों में “महान योद्धा” कहा जाता है।
यह एक खतरनाक प्रवृत्ति है, क्योंकि इसका उद्देश्य भारत की आत्मा को बदलना है – वह आत्मा जो राणा सांगा, शिवाजी, गुरु गोविंद सिंह और भगत सिंह की विरासत से बनी है।
जब तक हम अपने असली नायकों को नहीं पहचानेंगे, तब तक देश की आत्मा कमजोर रहेगी।
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समाधान क्या है?
1. सांसद को तत्काल बर्खास्त किया जाए।
2. ऐतिहासिक झूठ फैलाने पर दंडात्मक कानून बनाए जाएँ।
3. राणा सांगा जैसे राष्ट्रनायकों को पाठ्यपुस्तकों में प्रमुखता दी जाए।
4. संसद में बयान देने से पहले इतिहास की न्यूनतम जानकारी की अनिवार्यता तय हो।
5. ‘राष्ट्रीय इतिहास आयोग’ का गठन हो, जो सत्य आधारित इतिहास प्रस्तुत करे।
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समाप्ति: राणा सांगा – भारत की आत्मा
राणा सांगा कोई साधारण राजा नहीं थे।
वे भारत की रगों में बहने वाले स्वाभिमान का नाम हैं।
उनकी तलवारें आज भी चित्तौड़ की दीवारों पर गूंजती हैं, उनके घाव आज भी हमें लड़ने की प्रेरणा देते हैं।
जो राणा सांगा की आँखें खोकर भी युद्धभूमि से नहीं डिगे,
उनका अपमान हम सहन नहीं कर सकते।
आज जब कोई सांसद राणा सांगा को “गद्दार” कहता है,
तो वो सिर्फ एक योद्धा नहीं, एक पूरी सभ्यता का अपमान करता है।
और ऐसे अपमान का उत्तर केवल एक ही है—
सत्य का उद्घोष,
वीरता का सम्मान,
और भारत के इतिहास की रक्षा।
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जय राणा सांगा!
जय हिंदू समाज!
जय भारत!
– डॉ. सुरेश चव्हाणके
प्रधान संपादक, सुदर्शन न्यूज़ चैनल