भारत की वो नारी शक्ति जिनको कभी ठीक से जानने ही नहीं दिया गया , वो वीरांगना जो सबके सामने होते हुए भी गुमनाम रखी गईं और नकली कलमकार उतना समय होने की प्रतीक्षा करते रहे जिसके बाद वो इनकी गौरवगाथा को भगवान श्रीराम के जीवन की तरह अदालत में काल्पनिक बताने लगें. वहीं, आज लतिका घोष जी को उनके जन्मजयंती पर बारम्बार नमन करते हुए उनकी गौरवगाथा को सुदर्शन न्यूज सदा सदा के लिए अमर रखने का संकल्प लेता है.
लतिका घोष जी का जन्म 29 जनवरी 1902 को हुआ था. लतिका घोष जी ऑक्सफोर्ड शिक्षित और स्वतंत्रता सेनानी थीं. उन्होंने 1928 में नेताजी के कहने पर महिला राष्ट्रीय संघ की शुरुआत की थी. लतिका घोष जी द्वारा शुरू की गई एमआरएस का उद्देश्य राजनीतिक कार्यों के लिए महिला कार्यकर्ताओं को संगठित करके स्वतंत्रता के लिए लड़ना था. यह महिलाओं को राजनीतिक सक्रियता में शामिल करने के उद्देश्य से स्थापित किया गया भारत का पहला संगठन था
नेताजी सुभाष चंद्र बोस जी की प्रेरणा पर शुरू किए गए संगठन महिला राष्ट्रीय संघ का महिलाओं की स्थिति में सुधार और भारत के लिए स्वशासन की उपलब्धि अविभाज्य लक्ष्य थे. एमआरएस एक सशक्तिकरण संस्थान निकाय था जिसने महिला शिक्षा पर सबसे ज्यादा जोर दिया. एमआरएस से नेताजी सुभाष चन्द्र बोस इतने अधिक प्रभावित थे कि उन्होंने कहा था की यदि उनके पास लतिका जैसी दस और महिला कार्यकर्ता होंती, तो वह महिलाओं के हित को सौ साल तक आगे बढ़ा सकते हैं.
लतिका घोष जी लोगों को देश के लिए लड़ने की प्रेरित करती थी और उन्हें संगठित करती थी. बता दें कि जब असहयोग आंदोलन की अनुभवी बसंती देवी को एमआरएस का अध्यक्ष बनाने पर विचार किया जा रहा था तो उन्होंने इस विचार को खारिज कर दिया था. उन्होंने सुभाष चंद्र बोस जी की मां प्रभावती जी को एमआरएस प्रमुख के रूप में प्राथमिकता दी. यह संघ शक्ति मंदिरों और कामकाजी कोशिकाओं से बना था, जो कि सामान्य महिलाओं के बीच चेतना बढ़ाने के लिए अभियान चलाता था.
लतिका घोष जी ने 1928 में बंगाल के स्वयंसेवकों के विरोध प्रदर्शन में हिस्सा लिया था, जिसमें उन्होंने कॉलेजों और शैक्षणिक विभागों से लगभग 300 महिलाओं की भर्ती की और उनका नेतृत्व भी किया था. एमआरएस, जिसकी स्थापना चटगांव , बंगाल प्रेसीडेंसी में हुई थी, इस संघ को महिलाओं की स्थिति में सुधार और स्वराज (स्वशासन) की उपलब्धि को परस्पर निर्भर होने के रूप में देखा गया. एमआरएस का मानना था जब तक महिलाओं के जीवन में सुधार नहीं होगा तब तक देश कभी भी स्वतंत्र नहीं हो सकता.
देश की स्वतंत्रता के लिए बलिदान देने के बाद 11 दिसंबर 1987 में लतिका घोष जी की मृत्यु हो गई. वहीं, आज लतिका घोष जी को उनके जन्मजयंती पर बारम्बार नमन करते हुए उनकी गौरवगाथा को सुदर्शन न्यूज सदा सदा के लिए अमर रखने का संकल्प लेता है.