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Shardiya Navratri 2024: नवरात्रि के सातवें दिन होगी मां कालरात्रि की उपासना, जानिए पूजन विधि, मंत्र, कथा यहां

शारदीय नवरात्रि की शुरुआत 3 अक्टूबर यानी गुरुवार से हो चुकी है। नवरात्रि का सातवें दिन मां कालरात्रि को समर्पित होता है।

Rashmi Singh
  • Oct 9 2024 9:26AM

शारदीय नवरात्रि शुरुआत 3 अक्टूबर यानी गुरुवार से हो चुकी है। इस बार नवरात्रि 3 अक्टूबर से 11 अक्टूबर तक चलेगी। प्रतिपदा तिथि पर कलशस्थापना के साथ ही नवरात्रि का महापर्व शुरू हो चुका है। इस वर्ष देवी मां पालकी पर सवार होकर पृथ्वी पर आ रही हैं। देवी दुर्गा विश्व की माता हैं, मान्यता है कि नवरात्रि के दौरान देवी मां की पूजा करने से सभी कष्ट, रोग, दोष, दुख और दरिद्रता का नाश हो जाता है। नवरात्रि का सातवें दिन मां कालरात्रि को समर्पित है। ऐसे में आइए जानते है कि नवदुर्गा के सातवें स्वरुप मां कालरात्रि की क्या मान्यता है और माता रानी की उपासना विधि से क्या लाभ होता है। 

मां कालरात्रि कौन हैं ?

शुंभ, निशुंभ सहित रक्तबीज का नाश करने के लिए देवी ने कालरात्रि का रूप धारण किया था। देवी कालरात्रि का रंग कृष्ण है, इसलिए इनका नाम कालरात्रि है। गधे पर विराजमान देवी कालरात्रि की तीन आंखें हैं। मां की चार भुजाओं में खड्ग, कांटा (लौह अस्त्र) सुशोभित है। गले में माला बिजली की तरह चमकती है। इनका एक नाम शुभंकरी भी है। मां कालरात्रि का रुप भले ही भयानक हो लेकिन माता अपने भक्तों के लिए बेहद दयालु और कृपालु हैं। देवी कालरात्रि को देवी महायोगीश्वरी एवं देवी महायोगिनी के रूप में भी जाना जाता है। 

मां कालरात्रि की पूजन विधि 

शारदीय नवरात्रि की सप्तमी के दिन मां कालरात्रि के सामने घी का दीपक जलाना चाहिए। इसके बाद मां को लाल फूल चढ़ाने चाहिए। गुड़ का भोग भी लगाना चाहिए. इसके बाद देवी मां के मंत्रों का जाप या सप्तशती का पाठ करना चाहिए। फिर चढ़ाए गए गुड़ का आधा हिस्सा परिवार में बांट देना चाहिए। बचा हुआ आधा गुड़ किसी ब्राह्मण को दान कर देना चाहिए।

मां कालरात्रि की उत्पत्ति की कथा

कथा के अनुसार राक्षस शुंभ-निशुंभ और रक्तबीज ने तीनों लोकों में हाहाकार मचा रखा था। इससे परेशान होकर सभी देवता भगवान शिव के पास पहुंचे। भोलेनाथ ने देवी पार्वती से राक्षसों को मारकर अपने भक्तों की रक्षा करने को कहा। शिव भगवान की बात को मानकर पार्वती मां ने दुर्गा का रूप धारण किया और शुंभ-निशुंभ का वध कर दिया। लेकिन जैसे ही दुर्गा जी ने रक्तबीज को मारा उसके शरीर से निकले रक्त से लाखों रक्तबीज उत्पन्न हो गए। इसके बाद मां दुर्गा ने अपने तेज से कालरात्रि को उत्पन्न किया। इसके बाद जब दुर्गा जी ने रक्तबीज को मारा तो उसके शरीर से निकलने वाले रक्त को कालरात्रि ने अपने मुख में भर लिया और सबका गला काटते हुए रक्तबीज का वध कर दिया। 

मां कालरात्रि दिलाती इन समस्याओं से मुक्ति

मां कालरात्रि की पूजा के दौरान भानु चक्र जागृत हो जाता है। जो हर प्रकार के भय का नाश करता है। भूत-प्रेत या बुरी शक्तियों, शत्रुओं और विरोधियों के भय को नियंत्रित करने के लिए मां कालरात्रि की पूजा अचूक मानी जाती है। देवी कालरात्रि शनि की पीड़ा से भी मुक्ति दिलाती हैं।

मां कालरात्रि पूजा मंत्र 

लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्त शरीरिणी॥
वामपादोल्लसल्लोह लताकण्टकभूषणा।
वर्धन मूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङ्करी॥

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