सोमवती अमावस्या का दिन हिंदू धर्म में अत्यधिक महत्व रखता है। यह दिन विशेष रूप से उन लोगों के लिए पुण्यकारी माना जाता है जो अपने जीवन में शांति और सुख की कामना करते हैं। इस दिन विशेष रूप से तुलसी की परिक्रमा की जाती है, जो एक पुरानी और महत्वपूर्ण धार्मिक परंपरा बन चुकी है। तो आइए जानें कि सोमवती अमावस्या के दिन तुलसी की परिक्रमा क्यों की जाती है और तुलसी की परिक्रमा का महत्व।
तुलसी की परिक्रमा का महत्व
सोमवती अमावस्या का दिन और तुलसी का पौधा दोनों ही भारतीय धार्मिक परंपराओं से जुड़े हुए हैं। तुलसी को देवी लक्ष्मी और भगवान विष्णु की प्रियता का प्रतीक माना जाता है। इस दिन विशेष रूप से तुलसी की परिक्रमा करने से पुण्य की प्राप्ति होती है और जीवन में सुख, समृद्धि और संतुलन की कामना की जाती है। हिंदू धर्म के अनुसार, तुलसी के पत्तों में दिव्य शक्ति और सकारात्मक ऊर्जा होती है, जो किसी भी प्रकार के कष्ट को दूर कर सकती है। इस दिन तुलसी के पास दीप जलाना और उसकी पूजा करना विशेष रूप से लाभकारी माना जाता है।
परंपरा की शुरुआत
तुलसी की परिक्रमा की परंपरा का आरंभ बहुत पुराना है और इसे धार्मिक ग्रंथों में भी विशेष स्थान प्राप्त है। पुराणों के अनुसार, तुलसी का पौधा देवी लक्ष्मी का अवतार है। एक मान्यता यह भी है कि जब राक्षसों और देवताओं के बीच समुद्र मंथन हुआ था, तो समुद्र मंथन से अमृत और तुलसी का पौधा भी प्रकट हुआ था। इसके बाद से ही इसे देवी लक्ष्मी का स्वरूप मानकर पूजा जाने लगा।
वहीं, सोमवती अमावस्या के दिन तुलसी की परिक्रमा करने की विशेष परंपरा का संबंध इस तथ्य से है कि इस दिन चंद्रमा और सूर्य का विशेष संयोग बनता है। यह दिन पुण्य फल देने वाला माना जाता है, और इस दिन देवी लक्ष्मी और भगवान विष्णु की पूजा करने से घर में सुख-शांति और समृद्धि का वास होता है।
कब है सोमवती अमावस्या
पंचांग के अनुसार, पौष माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि 30 दिसंबर को तड़के सुबह 4 बजकर 02 मिनट पर शुरू होगी और 31 दिसंबर को तड़के सुबह 3 बजकर 57 मिनट तक रहेगी। मूल नक्षत्र 29 दिसंबर की रात 11 बजकर 22 मिनट से 30 दिसंबर की रात 11 बजकर 58 मिनट तक रहेगा। वृद्धि योग 29 की रात 9 बजकर 41 मिनट से 30 दिसंबर की रात 8 बजकर 32 मिनट तक रहेगा। वृद्धियोग में समस्त कार्यों में वृद्धि का योग बनता है।