राजस्थान के तीन प्रमुख आदिवासी जिलों बांसवाड़ा, डूंगरपुर और प्रतापगढ़ में पिछले चार महीनों में एक सौ से अधिक आदिवासी परिवारों ने हिंदू धर्म में वापसी की है। यह परिवार पहले पैसे, चिकित्सा सुविधाएं और बेहतर जीवन स्तर के लालच में ईसाइयत को अपना चुके थे। अब उन्होंने अपनी आंखें खोल ली हैं और अपने सनातन धर्म की ओर लौटने का फैसला किया है।
बता दें कि करीब 25-30 साल पहले, कई आदिवासी परिवारों ने ईसाइयत अपनाया था और बाद में उन्होंने अन्य गरीब और आदिवासियों को भी ईसाइयत अपनाने के लिए प्रेरित किया। इन परिवारों ने दूर-दराज के इलाकों में स्थित मंदिरों को चर्च में बदलने का काम किया था और वहां प्रार्थना सभाएं आयोजित की थीं। लेकिन अब इन परिवारों ने अपनी पहचान और संस्कृति की ओर वापसी की है। अब उन चर्चों को फिर से मंदिरों में बदलने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। जहां पहले बाइबल रखी जाती थी, वहां अब रामायण, हनुमान चालीसा और हिंदू धर्म के अन्य ग्रंथ रखे जा रहे हैं।
बांसवाड़ा जिले के सोडला दूधका गांव में, अधिकतर आदिवासी परिवारों ने हाल ही में हिंदू धर्म को अपनाया है। अब इस गांव को 'हिंदुओं का गांव' कहा जा रहा है। इन गांवों में आदिवासी परिवारों ने अपने घरों के दरवाजों पर भगवा पताका लगाई है, जिस पर 'जय श्रीराम' और 'जय भैरवनाथ' लिखा गया है। सोडला दूधका सहित कई अन्य गांवों जैसे झांबुड़ी, गांगड़तलाई, तलवाड़ा, महुड़ी, बठोड़, दाबाड़ीमाल और सोढ़ला गुढ़ा में भी आदिवासी अपने मूल हिंदू धर्म में लौट चुके हैं।
इन परिवारों की वापसी में प्रमुख भूमिका निभाने वाले संगठनों में वनवासी कल्याण परिषद, विश्व हिंदू परिषद और भगवा सेना शामिल हैं। हाल ही में, सोडला दूधका गांव में एक प्रमुख घटना घटी, जब चर्च के स्थान पर भैरव मंदिर का प्राण प्रतिष्ठा समारोह आयोजित किया गया।
प्रदेश के आदिवासी इलाकों के प्रमुख नेता और मंत्री बाबूलाल खराड़ी का कहना है कि हिंदू धर्म अत्यंत महान है। उन्होंने कहा कि जिन आदिवासियों का जबरन या लालच देकर मतांतरण किया गया था, वे अब सही मार्ग पर लौट रहे हैं।