क्या सफूरा वाला मानवता का सिद्धांत दारा सिंह पर लागू नहीं होता जिन्हें नहीं मिली माँ - बाप की चिता भी जलाने की अनुमति ?
धर्मनिरपेक्ष छवि अभी क्या क्या कार्य कराएगी ये उसकी एक झलक है.
न्याय से ऊपर मानवीय भावनाओं की कितनी कद्र है यह उस समय दुनिया ने देखा था जब भगवान श्री राम की जन्म भूमि के लिए न्याय करते समय वामपंथी वर्ग बार-बार अदालत को यह कह रहा था कि न्यायपालिका के लिए संवेदना व आस्थाओं का कोई महत्व नहीं होता.. वही वर्ग कुछ समय बाद सफूरा जरगर के लिए मानवीय मूल्यों की दुहाई देता हुआ अदालत पहुंच गया और आखिरकार उसकी जीत भी हुई। श्रीराम के लिए सिर्फ कानूनी पहलू और सफूरा के लिए मानवीय पक्ष।
इसी समय अचानक है सुदर्शन न्यूज़ याद दिला रहा है धर्मांतरण के विरुद्ध हिंसक प्रतिकार करके 20 साल से जेल में बंद दारा सिंह की जिनके लिए मानवीय पहलू या मानवता जैसे शब्द कभी सोचे भी नहीं गए। ये वो आवाज है जो अब तक किसी के भी मुह से नहीं निकली .. वो २१ साल से जेल की सलाखों के अंदर है और जेल में उसका व्यवहार एकदम सही और न्यायोचित था . उसका कितना टार्चर हुआ इसकी भी आज तक किसी को जानकारी नहीं है . तमाम ऐसे लोग इस बीच में जेल से दया के नाम पर छोड़ दिये गये हैं ।
ज्ञात हो कि न्याय के लिए भटक रहे उस व्यक्ति और परिवार का नाम है दारा सिंह जो उडीसा की क्योंझर जेल में लगभग २१ साल से हिन्दुओ के धर्मांतरण के खिलाफ खुद से आगे बढ़ कर हिंसक रूप में कानून को हाथ में लेने के अपराध में जेल काट रहा है . उसका नाम कहीं भी किसी के जुबान पर नहीं है जबकि कभी वो महीनों ही नहीं सालों तक रहा था मीडिया की सुर्खियाँ . इतना ही नहीं , उसी दारा सिंह पर आये थे लगभग उस समय के हर राजनेता के बयान ..
सवाल ये है कि क्या दारा सिंह का अभी नाम कोई लेगा जो लगभग उतने ही समय से उडीसा की जेल में बंद है . आखिर दारा सिंह के लिए ऐसी खबर कब आएगी जिसके माता पिता उसके जेल में रहते ही चल बसे हैं और उनकी अस्थियाँ अभी भी खेतों में गडी अपने अंतिम संस्कार की प्रतीक्षा कर रही हैं .. क्या मानवाधिकार आयोग या कैदियों की पैरवी करने वालों की लिस्ट में कहीं कोने में भी दारा सिंह का नाम है ये बहुत बड़ा सवाल है …अंत में इतना कहना बिल्कुल गलत नहीं होगा कि यह घटनाक्रम वामपंथ की एक बहुत बड़ी जीत है और खुद को दक्षिण पंथ या हिंदूवादी कहने वाले लोगोंं से बहुत बडा सवाल.
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