गुरु प्रदोष व्रत, हिन्दू धर्म में एक महत्वपूर्ण व्रत है जो हर माह के दोनों प्रदोष व्रत के दिन पड़ता है। यह व्रत विशेष रूप से गुरु देवता और भगवान शिव की आराधना करने के लिए किया जाता है। गुरु प्रदोष व्रत का महत्व बहुत अधिक है क्योंकि इसे करने से व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और जीवन में सुख, समृद्धि और शांति का वास होता है।
पंचांग के अनुसार, मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि 28 नवंबर, दिन गुरुवार को सुबह 6 बजकर 23 मिनट से शुरू होगी और 29 नवंबर, दिन शुक्रवार को सुबह 09 बजकर 43 मिनट पर होगा। ऐसे में उदयातिथि के अनुसार, प्रदोष व्रत 28 नवंबर, दिन गुरुवार को रखा जाएगा। इस दिन गुरुवार होने के कारण इसे गुरु प्रदोष व्रत कहा गया है।
गुरु प्रदोष व्रत की कथा
गुरु प्रदोष व्रत की कथा बहुत ही प्रसिद्ध है। यह कथा भगवान शिव और उनके भक्तों के बीच के एक अद्भुत संवाद से जुड़ी हुई है। एक बार भगवान शिव अपने पार्षदों के साथ कैलाश पर्वत पर ध्यानमग्न थे। तभी एक भक्त, जिसका नाम धन्वंतरि था, वह भगवान शिव से मिलने के लिए पहुंचा। भगवान शिव ने उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर उसे आशीर्वाद देने का विचार किया।
धन्वंतरि ने भगवान शिव से एक विशेष वरदान की याचना की। उसने कहा, "हे भगवान, मैं जीवन भर तपस्या करता रहा हूं, लेकिन मेरी एक इच्छा पूरी नहीं हो पाई। मैं चाहता हूं कि मेरी सारी परेशानियां समाप्त हो जाएं और मुझे संसार की सभी सुख-सुविधाएं प्राप्त हों।" भगवान शिव ने उसकी बात सुनी और कहा, "तुमने ठीक कहा है, लेकिन यह सब तभी संभव हो सकता है जब तुम गुरु प्रदोष व्रत का पालन करो।"
भगवान शिव ने धन्वंतरि को बताया कि जो व्यक्ति गुरु प्रदोष व्रत करता है, वह न केवल अपने जीवन के सभी कष्टों से मुक्ति पा लेता है, बल्कि उसकी हर इच्छा पूरी होती है। इस व्रत को विशेष रूप से गुरुवार को करना चाहिए, क्योंकि यह दिन गुरु देवता से जुड़ा हुआ है और उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए सर्वोत्तम है। धन्वंतरि ने भगवान शिव की सलाह मानी और गुरु प्रदोष व्रत का पालन किया। व्रत के बाद उसकी सभी परेशानियां समाप्त हो गईं और उसे जीवन में अपार समृद्धि और सुख की प्राप्ति हुई। उसके घर में सुख-शांति का माहौल बन गया, और वह भगवान शिव के आशीर्वाद से सदा खुशहाल रहा।