2 अप्रैल 2025 — कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने ADGP हेमंत निमबालकर को ‘मुख्यमंत्री स्वर्ण पदक’ से नवाज़ा। लेकिन यह कोई साधारण सम्मान नहीं था, यह एक ऐसा तमाचा था उन लाखों परिवारों के चेहरे पर, जिनकी जिंदगी IMA पोंज़ी घोटाले ने तबाह कर दी।
जिस अधिकारी ने 2019 में IMA को क्लीन चिट दी, जिसके फैसले ने एक हजारों करोड़ का घोटाला ज़िंदा रखा, जिसे CBI ने चार्जशीट में नामजद किया — उसे कांग्रेस सरकार ने सम्मानित कर दिया।
क्या यही है कांग्रेस का ‘न्यायप्रिय शासन’?
IMA: एक घोटाला जिसने विश्वास तोड़ा, और कांग्रेस ने उसपर पर्दा डाला
IMA पोंज़ी स्कीम ने "कानूनी और भरोसेमंद" रिटर्न का सपना दिखाकर जनता से हज़ारों करोड़ रुपये ठगे। 2019 में जब कंपनियों ने भुगतान बंद किया, शिकायतें बाढ़ की तरह आईं। लेकिन हेमंत निमबालकर — उस समय CID आर्थिक अपराध शाखा के प्रमुख — ने RBI की चेतावनियों और जनता की शिकायतों को नजरअंदाज कर दिया।
जनवरी और मार्च 2019 में उन्होंने IMA को क्लीन चिट देते हुए कहा कि उनके निवेश "कानूनी" हैं। यानी घोटाला ज़िंदा रहा, और जनता तबाह होती रही।
अब यही अफसर, कांग्रेस के ‘गर्व’ का प्रतीक बन गया है।
'अल्पसंख्यकों की आवाज़' की असली परिभाषा क्या है?
कांग्रेस और सिद्धारमैया जब-जब वक्फ, CAA, या अल्पसंख्यक अधिकारों की बात करते हैं, उनकी आवाज़ संसद से सड़क तक गूंजती है। लेकिन जब एक ऐसा अफसर, जो एक घोटालेबाज़ को बचाने के आरोपों में फंसा हो — उसे खुद मुख्यमंत्री सम्मानित करें, तो ये आवाज़ें अचानक खामोश क्यों हो जाती हैं?
क्या कांग्रेस का 'अल्पसंख्यक प्रेम' सिर्फ चुनावी भाषणों और प्रेस कॉन्फ्रेंसों तक सीमित है?
क्या जिनकी ज़िंदगी लुट गई, वो कांग्रेस के वोट बैंक थे — इंसान नहीं?
कानूनी स्थिति: क्या सब कुछ साफ़ हो गया है? बिल्कुल नहीं।
फरवरी 2020: CBI ने हेमंत निमबालकर पर FIR दर्ज की, आरोप लगाया कि उन्होंने IMA को 'जानबूझकर फायदा' पहुंचाया।
अक्टूबर 2020: CBI ने उन्हें चार्जशीट में नामित किया।
मार्च 2021: कर्नाटक हाईकोर्ट ने तकनीकी आधार पर केस रद्द कर दिया — लेकिन बरी नहीं किया।
अगस्त 2021: सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट का फैसला स्थगित कर दिया — यानी केस अभी भी खुला है।
फिर किस आधार पर ये सम्मान?
क्या राज्य सरकार कानून से ऊपर है?
या फिर जो पार्टी खुद को संविधान का रखवाला कहती है, वही अब आरोपी अधिकारियों को ढाल बना रही है?
सवाल सिर्फ हेमंत निमबालकर पर नहीं, सिद्धारमैया पर है
क्या आपने IMA घोटाले के पीड़ितों की आँखों में झाँका है, जिन्हें आपका ये फैसला नमक छिड़कने जैसा लगा होगा?
क्या यही आपका 'समावेशी न्याय' है?
क्या यह कांग्रेस की उस विचारधारा का असली चेहरा है, जो मंचों से ‘सभी धर्मों का सम्मान’ और ‘हर वर्ग की सुरक्षा’ की बात करती है?
न्याय का गला घोंटकर मेडल पहनाया गया है
यह पदक उस पुलिसिया ‘कर्तव्य’ का सम्मान नहीं है —
बल्कि एक प्रशासनिक मूक स्वीकृति है कि घोटालेबाज़ों के रक्षक भी हीरो बन सकते हैं।
यह जनता की हार है, और सिस्टम की बेशर्मी की जीत।
इतिहास पूछेगा: किसने शिकारों को भुलाया और घोटालेबाज़ों के समर्थकों को सजाया?
IMA घोटाले ने लाखों लोगों को बर्बाद किया, लेकिन कांग्रेस सरकार ने उस तबाही के बाद भी सबक नहीं लिया।
शायद इसलिए क्योंकि ज़ख्म देने वाले भी अगर सत्ता के पसंदीदा हों, तो उन्हें सजा नहीं, सम्मान मिलता है।
सिद्धारमैया जी, जवाब दीजिए — ये पदक है या न्याय का मखौल?