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Shardiya Navratri 2024: जानिए नवरात्रि में कलश स्थापना का क्यूँ है विशेष महत्व ?

शारदीय नवरात्रि का पर्व शुरू होने वाला है.

Deepika Gupta
  • Sep 23 2024 2:03PM

शारदीय नवरात्रि का पर्व शुरू होने वाला है. हिन्दू धर्म में नवरात्र का विशेष महत्व होता है. नवरात्र मां नवदुर्गा की उपासना का पर्व है. ये हर साल श्राद्ध खत्म होते ही शुरू होता है, लेकिन इस बार अधिक मास लगने के कारण नवरात्रि 25 दिन देरी से शुरू हो रही है. इस बार शारदीय नवरात्रि 3 अक्टूबर से शुरू होगी और 12 अक्टूबर तक रहेगी. अशारदीय नवरात्रि में महाष्टमी, दुर्गानवमी का दिन सबसे प्रभावशाली माना जाता है. इस बार नवरात्रि में अष्टमी 11 अक्टूबर को है तो महानवमी 12 अक्टूबर 2024 को रहेगी.

प्रतिपदा तिथि को माता के प्रथम स्वरूप शैल पुत्री के साथ ही कलश स्थापना के लिए भी अति महत्त्वपूर्ण दिन होता है. कलश स्थापना या कोई भी शुभ कार्य शुभ समय एवं तिथि में किया जाना शुभ माना जाता है, इसलिए इस दिन कलश स्थापना के लिए शुभ मुहूर्त पर विचार किया जाना अत्यावश्यक है.

नवरात्र के 9 दिनों में मां भगवती के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है और हर स्वरूप सौभाग्य का प्रतीक होता है. इन शुभ दिनों में मां की हर रोज पूजा की जाती है और ज्यादातर लोग 9 दिन का व्रत भी रखते हैं. वैसे तो मां को श्रद्धा भाव से लगाए गए हर भोग को ग्रहण करती हैं लेकिन नवरात्र के दिनों में मां के हर स्वरूप का अलग भोग लगता है.

जानिए किस दिन होती है किस देवी की पूजा 

नवरात्रि के पहले दिन शैलपुत्री, दूसरे दिन ब्रह्मचारिणी, तीसरे दिन चंद्रघंटा, चौथे दिन कुष्मांडा, पांचवें दिन स्कंदमाता, छठे दिन कात्यानी, सातवें दिन कालरात्रि, आठवें दिन महागौरी, नवें दिन सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है.

जानिए कैसे करें नवरात्रि पर कलश पूजन

सभी प्राचीन ग्रंथों में पूजन के समय कलश स्थापना का विशेष महत्व बताया गया है. सभी मांगलिक कार्यों में कलश अनिवार्य पात्र है. दुर्गा पूजन में कलश की स्थापना करने के लिए कलश पर रोली से स्वास्तिक और त्रिशूल अंकित करना चाहिए और फिर कलश के गले पर मौली लपेट दें. जिस स्थान पर कलश स्थापित किया जाता है पहले उस स्थान पर रोली और कुमकुम से अष्टदल कमल बनाकर पृथ्वी का स्पर्श करते हुए निम्न मंत्र का उच्चारण करना चाहिए.

ओम भूरसि रस्यादितिरसि विश्वधाया विश्वस्य भुवनस्य धात्रीं 

पृथिवीं यच्छ पृथिवी दृह पृथ्वीं माहिसी

ओम आ जिघ्र कलशं मह्या त्वा विशन्तिवन्दव

पुनरूर्जानि वर्तस्व सा नः सहस्रं धुक्ष्वोरुधारा

पयस्वती पुनर्मा विशताद्रयि

जानें कलश स्थापना की विधि

सुबह नहाकर साफ कपड़े पहने, इसके बाद एक पात्र लें. उसमें मिट्टी की एक मोटी परत बिछाएं. फिर जौ के बीज डालकर उसमें मिट्टी डालें. इस पात्र को मिट्टी से भरें. इसमें इतनी जगह जरूर रखें कि पानी डाला जा सके. फिर इसमें थोड़े-से पानी का छिड़काव करें.


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