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27 नवंबर: पुण्यतिथि पर नमन है नारी शक्ति की प्रतीक 'लक्ष्मीबाई केलकर जी' को... साहस, संघर्ष और देशभक्ति की हैं अद्वितीय मिसाल

आज लक्ष्मीबाई केलकर जी की पुण्यतिथि पर सुदर्शन परिवार उन्हें कोटि-कोटि नमन करते हुए, उनकी गाथा को समय पर जनमानस के आगे लाते रहने का संकल्प दोहराता है.

Sumant Kashyap
  • Nov 27 2024 9:17AM

हमारे देश में न ऐसी कितने ही वीर व वीरांगनाओं ने जन्म लिया था, जिनका नाम इतिहास के पन्नों में कहीं गुम हो गया है. आज़ादी के ठेकेदारों, बिना खड्ग बिना ढाल के आज़ादी दिलाने की जिम्मेदारी लेने वालों और भारत के इतिहास में खुद को सर्वश्रेष्ठ दिखाने वालों ने न जाने कितने ही वीर और वीरांगनाओं की गाथाओं को छिपाने और सदा के लिए मिटाने की कोशिश की. ऐसी ही एक वीरांगना थीं लक्ष्मीबाई केलकर जी.  भारत के इतिहास को विकृत करने वाले चाटुकार इतिहासकार अगर लक्ष्मीबाई केलकर जी का सच देश की नई पीढ़ी को दिखाते तो आज इतिहास काली स्याही के रंग में नहीं बल्कि स्वर्णिम रंग में होता. आज लक्ष्मीबाई केलकर जी की पुण्यतिथि पर सुदर्शन परिवार उन्हें कोटि-कोटि नमन करते हुए, उनकी गाथा को समय पर जनमानस के आगे लाते रहने का संकल्प दोहराता है.

लक्ष्मीबाई केलकर जी का जन्म 6 जुलाई 1905 को महाराष्ट्र के नागपुर में एक औसत मध्यमवर्गीय दाते परिवार में हुआ था. उस समय देश में बंगाल विभाजन के विरुद्ध राष्ट्रव्यापी आन्दोलन चल रहा था. किसी ने नहीं सोचा था कि एक मध्यमवर्गीय दाते परिवार में जन्मी यह बालिका भविष्य में नारी शक्ति का प्रतीक बनेगी और नारी जागरण के एक महान संगठन का निर्माण करेगी. लक्ष्मीबाई केलकर जी का नाम कमल रखा गया था. लक्ष्मीबाई केलकर जी के बचपन से ही अपने माता पिता से धार्मिकता व देशप्रेम के संस्कार मिले थे. बता दें कि नागपुर में कन्या विद्यालय न होने के कारण उन्होंने मिशनरी स्कूल में पढ़ाई कि था. 

लक्ष्मीबाई केलकर जी का विवाह चौदह वर्ष की आयु में पुरुषोत्तमराव केलकर जी से हुआ. पुरुषोत्तमराव केलकर जी दो  पुत्रियों के पिता थे. बता दें कि विवाह के बाद उनका नाम कमल से बदलकर लक्ष्मीबाई हो गया था. 

लक्ष्मीबाई केलकर जी, जिन्हें लोग स्नेहपूर्वक "मौसीजी" कहते हैं, का जीवन संघर्ष, आत्मविश्वास और ईश्वर में अटूट श्रद्धा का अनुपम उदाहरण है. उनका जीवन उन लोगों के लिए प्रेरणा है जो मुश्किल परिस्थितियों में भी अपनी राह बनाने का साहस रखते हैं.

प्रारंभिक जीवन और जन्म की विशेषता

लक्ष्मीबाई केलकर जी का जन्म 6 जुलाई 1905 को नागपुर में हुआ। उनके माता-पिता श्री भास्कर राव और श्रीमती यशोदाबाई ने उनका नाम "कमल" रखा, क्योंकि जन्म के समय मौजूद एक विद्वान ने उनके मुखमंडल पर दिव्य आभा देखी. यह नाम परिवार के संस्कारों और उनकी विशेषताओं का प्रतीक बन गया.

शिक्षा और संस्कारों का संघर्ष

कमल को मिशनरी स्कूल में दाखिला दिलाया गया, लेकिन वहां के पाठ्यक्रम और वातावरण ने उनके मन में विद्रोह का भाव जगाया. हिंदू देवी-देवताओं का अपमान और भारतीय परंपराओं की आलोचना उन्हें बिल्कुल स्वीकार नहीं थी. अंततः उन्होंने अपनी मां से यह स्पष्ट कर दिया कि वे इस माहौल में पढ़ाई जारी नहीं रख सकतीं. इसके बाद उनका दाखिला ‘हिंदू मुलींची शाला’ में कराया गया, लेकिन चौथी कक्षा के बाद उनकी औपचारिक शिक्षा समाप्त हो गई.

देशभक्ति और तिलक के विचारों का प्रभाव

कमल का घर राष्ट्रीय चेतना से भरा हुआ था। उनके पिता प्रतिदिन समाचार पत्र "केसरी" पढ़ते थे, और उनकी मां यशोदाबाई पड़ोस की महिलाओं को इसकी खबरें और लेख सुनाती थीं. इस माहौल ने कमल के मन में देशभक्ति और सामाजिक बदलाव के प्रति गहरी रुचि पैदा की. ब्रिटिश शासन के दमन और भारतीय संस्कृति के अपमान के खिलाफ उनके मन में गुस्सा और विद्रोह की भावना ने जन्म लिया.

विवाह और दहेज प्रथा के खिलाफ संकल्प

जब कमल विवाह योग्य हुईं, तो परिवार को उनके दहेज के बिना विवाह की चिंता सताने लगी. कमल ने दहेज प्रथा का विरोध किया और तय किया कि वे बिना दहेज का विवाह करेंगी. 1919 में, 14 वर्ष की आयु में उनका विवाह वर्धा के प्रतिष्ठित केलकर परिवार के पुरुषोत्तम राव से हुआ. पुरुषोत्तम राव की पहली पत्नी का निधन हो चुका था, और उनके दो बेटियां थीं. हालांकि उम्र और परिस्थितियां कठिन थीं, लेकिन कमल ने इसे अपने साहस और आदर्शों के बल पर स्वीकार किया.

जीवन की अमिट छाप

लक्ष्मीबाई केलकर जी का जीवन केवल उनके परिवार तक सीमित नहीं रहा. उन्होंने अपने विचारों और संघर्षों के माध्यम से समाज में बदलाव लाने का प्रयास किया. उनके जीवन की प्रेरणा आज भी लाखों लोगों के लिए आदर्श है.

भारतीय मूल्यों की संरक्षक लक्ष्मीबाई केलकर जी ने अपने साहस और आदर्शों के बल पर एक ऐसा जीवन जिया, जो प्रेरणा और संघर्ष की मिसाल बन गया.

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