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9 दिसंबर : जन्मजयंती 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी योद्धा राजा राव तुलाराम जी...जिन्होंने आपने शौर्य और पराक्रम से रेवाड़ी को दिलाई थी अंग्रेजों के चंगुल से मुक्ति

आज महानायक राजा राव तुलाराम जी को जन्मदिवस पर सुदर्शन परिवार उन्हें कोटि-कोटि नमन करता है

Sumant Kashyap
  • Dec 9 2024 7:59AM

हमारे देश में ऐसे अनेकों महान महापुरुषों ने जन्म लिया है, जिनका नाम इतिहास के पन्नों में कहीं गुम हो गया है. हमारे देश में रह कर भी कई ऐसे लोग थे जिन्होंने भारत के इतिहास से इन लोगों को मिटाने की कई कोशिशें की. इन लोगों ने उन सभी क्रांतिकारियों और महापुरुषों के नाम को छिपाने और सदा के लिए मिटाने की कोशिश की. उन लाखों महान क्रांतिकारियों में से एक थे महानायक राजा राव तुलाराम जी. वहीं, आज महानायक राजा राव तुलाराम जी को जन्मदिवस पर सुदर्शन परिवार उन्हें कोटि-कोटि नमन करता है और उनकी गौरव गाथा को समय-समय पर जनमानस के आगे लाते रहने का संकल्प भी दोहराता है.

महानायक राजा राव तुलाराम जी का जन्म हरियाणा के रेवाड़ी शहर के एक यदुवंशी परिवार में 9 दिसंबर 1825 को हुआ था.महानायक राजा राव तुलाराम जी के पिता का नाम राव पूरन सिंह जी तथा माता जी का नाम ज्ञान कुँवर था.  महानायक राजा राव तुलाराम जी का दादा का नाम राव तेज सिंह था. 

जानकारी के लिए बता दें कि 1857 का प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख नेताओं में से एक थे. उन्हे हरियाणा में " राज नायक" माना जाता था. वहीं, विद्रोह काल मे, हरियाणा के दक्षिण-पश्चिम इलाके से सम्पूर्ण बिटिश हुकूमत को अस्थायी रूप से उखाड़ फेंकने तथा राजधानी दिल्ली के ऐतिहासिक शहर में विद्रोही सैनिको की, सैन्य बल, धन व युद्ध सामाग्री से सहता प्रदान करने का श्रेय राव तुलाराम जी को जाता है.

बिटिश हुकूमत को भारत से मुक्त कराने के उद्देश्य से एक युद्ध लड़ने के लिए मदद लेने के लिए उन्होंने भारत छोड़ा तथा ईरान और अफगानिस्तान के शासकों से मुलाकात की, रूस के ज़ार के साथ सम्पर्क स्थापित करने की उनकी योजनाएं थीं. बता दें कि इसी मध्य 37 वर्ष की आयु में 23 सितंबर 1863 को काबुल में पेचिश से उनकी मृत्यु हो गई. 

वहीं, राव तुलाराम जी का राज्य कनीना, बवाल, फरुखनगर, गुड़गांव, फरीदाबाद, होडल और फिरोजपुर झिरका तक फैला हुआ था. राव तुलाराम जी अंग्रेजों के शासन से काफी परेशान थे और उनके दिल में आक्रोश की भट्टी  सुलग रही थी. जब पहली बार1857 में बंगाल से क्रांति की आग लगी तो वो हरियाणा तक फ़ैल गई और दिल्ली से सट्टा अहिरवाल के क्षेत्र में ये विद्रोह और भयानक रूप से भड़क गया.

बताया जा रहा है कि अहिरवाल का नेतृत्व   राव तुलराम जी और उनके चचेरे भाई गोपाल देव जी ने संभाला. बादशाह बहादुरशाह ने तुलाराम जी को निर्देश दिया था कि वो अहिरवाल का नेतृत्वन करें. दिल्ली के आसपास के इलाकों में विद्रोह की आग बराबर भड़की हुई थी. अंग्रेज अब यह समझ चुके थे कि राव तुलाराम जी पर काबू पाए बिना वे चैन से दिल्ली पर शासन नहीं कर सकते इसलिए राव तुलाराम जी को तहस-नहस करने के लिए 2 अक्टूबर 1857 को ब्रिगेडियर जनरल शोबर्स एक भारी सेना तोपखाने सहित लेकर रेवाड़ी की ओर बढ़े तथा 5 अक्टूबर 1857 को पटौदी में उनकी झड़प राव तुलाराम जी की एक सैनिक टुकड़ी से हुई. अंग्रेज राव तुलाराम जी की सैनिक तैयारी को देखकर दंग रह गए. यह विदेशी लश्कर एक माह तक राव तुलाराम जी को घेरे में लेने की कोशिश करता रहा.

दूसरी ओर अंग्रेजों ने 10 नवम्बर 1857 को एक बड़ी सेना जबरदस्त तोपखाने के साथ  कर्नल जैराल्ड की कमान में राव तुलाराम जी के खिलाफ रवाना की. 16 नवम्बर 1857 को जैसे ही अंग्रेजी सेना नसीबपुर के मैदान के पास पहुंची राव तुलाराम जी की सेना उन पर टूट पड़ी. यह आक्रमण बड़ा भयंकर था. अंग्रेजी सेना के छक्के छूट गए. उनके कमाण्डर जैराल्ड सहित अनेक अफसर मारे गए.  राव तुलाराम जी की फौज बड़ी वीरता से लड़ी जिसकी दुश्मनों ने भी तारीफ की.

बता दें कि 1857 की क्रांति में राव तुलाराम जी ने खुद को स्वतंत्र घोषित करते हुए राजा की उपाधि धारण कर ली थी. उन्होने नसीबपुर- नारनौल के मैदान में अंग्रेजों से युद्ध किया जिसमें उनके पांच हजार से अधिक क्रांतिकारी सैनिक मारे गए थे. राव तुलाराम जी दिल्ली के क्रांतिकारियों को भी सहयोग दिया व 16 नवम्बर 1857 को,स्वयं ब्रिटिश सेना से नसीबपुर- नारनौल में युद्ध किया, और ब्रिटिश सेना को कड़ी टक्कर दी तथा ब्रिटिश सेना के कमांडर जेरार्ड और कप्तान वालेस को मौत के घाट उतर दिया था. 

वहीं, आज महानायक राजा राव तुलाराम जी को जन्मदिवस पर सुदर्शन परिवार उन्हें कोटि-कोटि नमन करता है और उनकी गौरव गाथा को समय-समय पर जनमानस के आगे लाते रहने का संकल्प भी दोहराता है.

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