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5 फरवरी : बलिदान दिवस रमेश स्वामी जी... जिनके ऊपर अंग्रेजो ने बिना कुछ सोचे चढा दी बस और कर दी थी नृशंस हत्या

आज महान बलिदानी रमेश स्वामी जी को उनके बलिदान दिवस पर बारम्बार नमन करते हुए उनके गौरवगान को सदा-सदा के लिए अमर रखने का संकल्प सुदर्शन परिवार दोहराता है.

Sumant Kashyap
  • Feb 5 2025 9:19AM

ये वो इतिहास है जिसे आज तक आप को कभी बताया नहीं गया था. उस कलम का दोष है ये जिसने नीलाम मन से और बिकी स्याही से अंग्रेज अफसरों के नामों के आगे आज तक सर लगाया है और देश के क्रांतिकारियों को अपराधी तक लिखा स्वतंत्र भारत में.. इतना ही नहीं उन्होंने देश को ये जानने ही नही दिया की उनके लिए सच्चा बलिदान किस ने दिया और कब दिया है. यह देश को अनंत काल तक पीड़ा पहुंचाने वाला धोखा है.  

लेकिन इन नीलम आजादी के ठेकेदारों की चीख और नकली दस्तावेज किसी भी हालत में उन वीर क्रांतिकारी के बलिदान को नहीं मिटा सकते है जिन्होंने भारत माता को अपना सब कुछ दे दिया और बदले में कुछ नहीं मांगा. इनका ये बलिदान बिना किसी स्वार्थ और भविष्य की योजना अदि के था. इनके नाम कहीं से भी कोई दोष नहीं है. इन्होंने हमेशा ही भारत माता को अंग्रेजों की जंजीरों से मुक्त करवाने का सपना देखा था. आज उन लाखों सशस्त्र क्रांतिवीरों में से एक क्रांतिकारी रमेश स्वामी जी का बलिदान दिवस है. वहीं, आज स्वतंत्रता के उस महानायक को उनकी बलिदान दिवस पर बारम्बार नमन करते हुए उनके गौरवगान को सदा-सदा के लिए अमर रखने का संकल्प सुदर्शन परिवार दोहराता है.

रमेश स्वामी जी का जन्म सन् 1904 में राजस्थान के भुसावर कस्बे में हुआ था. रमेश स्वामी जी का मूल नाम कुंदनलाल शर्मा था. उनका जन्म एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था और पिता का नाम जुगलकिशोर शर्मा वा माता का नाम गुलाब कौर था. रमेश स्वामी जी ने ने तभी से आर्य समाज के कार्यक्रमों में जाना शुरू कर दिया था जब वो विद्यार्थी थे. 

रमेश स्वामी जी को वैदिक धर्म में रूचि थी. वो वैदिक धर्म का विशेष ज्ञान प्राप्त करने के लिए भारत भ्रमण पर निकला गए. इसी दौरान उन्होंने प्रसिद्ध विद्वान पण्डित श्री विश्वबन्धु शास्त्री से प्रभावित होकर वैदिक साहित्य का अध्ययन आरम्भ किया. श्री विश्वबन्धु शास्त्री जी ने ही रमेश स्वामी जी को वैदिक धर्म एवं हिन्दी का प्रचार करने के लिए सिंगापुर, जर्मन, रंगून, जापान सहित कई देशों की यात्रा पर भेजा.

रमेश स्वामी जी को राजकीय शिक्षा विभाग में अध्यापक पद पर भी नियुक्त किया गया लेकिन उन्होंने इस पद से इस्तीफा देकर अंग्रेजी हुकूमत की बेगार प्रथा का विरोध किया. रमेश स्वामी जी ने विदेश यात्रा से लौटकर पहले तो प्रजामण्डल की सदस्यता ग्रहण की और उसके बाद अपने मित्रों के साथ मिलकर उसका प्रचार किया. 

मई 1939 में सत्याग्रह आंदोलन में भाग लेने के कारण रमेश जी को डेढ़ वर्ष की सजा सुनाई गई लेकिन 6 माह में ही उन्हें जेल से रिहा कर दिया गया. इसका बाद वर्ष 1942 में अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन में भरतपुर रियासत की तरफ से उन्हें 'भारत रक्षा कानून' के अन्तर्गत गिरफ्तार किया गया, लेकिन कुंवर हीरासिंह के प्रयास से उन्हें फिर जेल से मुक्ति मिल गई. उसके बाद रमेश स्वामी जी कई बार जेल यात्रा की. 

सन् 1947 में 'बेगार' विरोधी आन्दोलन आरम्भ किया गया.  5 फरवरी को क्रांतिकारियों द्वारा बेगार दिवस मनाया गया. इसी दौरान जब रमेश स्वामी जी बस स्टेण्ड पर पहुंचे और बेर जाने वाली बस में बैठे तो तो अंग्रेजी शासन ने उन्हें बस में बिठाने से मना कर दिया. रमेश स्वामी जी ने इस बात का विरोध किया. रमेश स्वामी जी भारत माता की जय के नारे लगाते हुए बस के आगे लेट गए. लेकिन अंग्रेजी प्रशासन के निर्देश पर बस मालिक ने बिना कुछ सोचे ही बस स्वामी जी के ऊपर बस चढा दी. 

रमेश स्वामी जी अपने अल्प जीवन के कार्य-कलापों एवं बलिदान से सदा सर्वदा के लिये अपना नाम अमर कर गये. ऐसे महान बलिदानी रमेश स्वामी जी को उनकी बलिदान दिवस पर बारम्बार नमन करते हुए उनके गौरवगान को सदा-सदा के लिए अमर रखने का संकल्प सुदर्शन परिवार दोहराता है.

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