हर साल 31 मई को महारानी अहिल्याबाई होलकर की जयंती मनाई जाती है इस बार इनकी 298 वीं जन्म जयंती बनाई जा रही है. उनको हमेशा से एक बहादुर, आत्मानिष्ठ, निडर महिला के रूप में याद किया जाता है. ये अपने समय की सर्वश्रेष्ठ योद्धा रानियों में से एक थी. जो अपनी प्रजा की रक्षा के लिए हमेशा तैयार रहती थी. इतना ही नही उनके शासन काल में मराठा मालवा साम्राज्य ने काफी ज्यादा नाम कमाया था. जनहित के लिए काम करने वाली महारानी ने कई हिंदू मंदिरों का निर्माण करवाया था. जो आज भी पूजे जाते है.
अहिल्याबाई होल्कर एक ऐसी सशक्त महिला और रानी थी जिसका जीवन बहुत प्रेरणादायक रहा. महाराष्ट्र के एक छोटे से गांव चौढ़ी में जन्म लेने वाली अहिल्याबाई ने अपने जीवन में बहुत संघर्ष किया. अहिल्याबाई होल्कर मालवा की रानी थी. एक महान योद्धा कुशल तीरंदाज होने के साथ साथ अहिल्याबाई दूरदर्शी और धार्मिक भी थी. उनके कार्यकाल में भारतीय संस्कृति को नया आयाम मिला. प्रतिवर्ष 31 मई को अहिल्याबाई होल्कर जयंती मनाई जाती है.
मुहम्मद बिन कासिम (712) के आक्रमण से लेकर मुगलों के शासन तक मुस्लिम आक्रमणकारियों द्वारा हजारों मंदिर तोड़े गए. लेकिन हिंदू समाज अवसर प्राप्त होते ही उस स्थान पर नए मंदिरों का निर्माण करता रहा. इस कार्य में देश की जिन महान विभूतियों ने सर्वाधिक योगदान दिया उसमें एक प्रमुख नाम मराठा सरदार एवं मालवा के शासक मल्हार राव होल्कर की पुत्रवधु और खण्डेराव की धर्मपत्नी अहिल्या बाई होल्कर का है.
मुगलों पर मराठों की विजय के पश्चात मल्हार राव ने मस्जिद को हटाकर उसी प्राचीन स्थान पर काशी विश्वनाथ मंदिरों के निर्माण का संकल्प लिया था. मल्हर रान ने सन् 1742 में पेशवा बाजीराव बाला जी प्राचीन मंदिर के स्थान पर मंदिर बनाने की अनुमति प्राप्त कर ली थी.
लेकिन कुछ कारणों से उनके जीवन- काल में यह संकल्प पूरा न हो सका. लेकिन उनकी पुत्रवधु अहिल्याबाई ने उस स्थान पर तो नहीं उसके बगल में काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण कराया. मल्हार राव का संकल्प अभी अधूरा है, लेकिन अहिल्याबाई होल्कर ने उस स्थान की स्मृति संजोकर रखने का महान कार्य किया.
उन्होंने न केवल काशी विश्वनाथ अपितु देश के अनेक स्थानों पर धूल- धूसरित तीर्थ स्थलों एवं मंदिरों के पुनरूद्धार का महती कार्य किया. सोमनाथ, ओंकारेश्वर, त्र्यम्बकेश्वर, मथुरा, वृदांवन, पुष्कर, हरिद्वार, केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री गया अनेक पुराने मंदिरों का जीर्णोद्धार, नए मंदिरों का निर्माण, धर्मशाला, घाट, कुएं और बावड़ियों का निर्माण कराया, मार्ग बनवाए, भूखों के लिए अन्नक्षेत्र खोले, प्यासों के लिए प्याऊ, विद्वानों को संरक्षण एवं शास्त्रों के मनन-चिन्तन और प्रवचन की व्यवस्था की. जिनमें प्रमुख रूप से वाराणसी का अहिल्याबाई घाट, मणिकर्णिका घाट और महिलाओं के लिए विशेष घाट है.
इसके अलावा अयोध्या में सरयू नदी पर घाट अहिल्याबाई होलकर की देन है. हरिद्वार का उषावर्त घाट, हर की पौड़ी के पास घाट, मथुरा में कलियादह घाट, प्रयाग में घाट, हंडिया में नर्मदा नदी पर बना घाट, पुणतांबा गोदावरी पर बना घाट, महाराष्ट्र के अहमदनगर में अहिल्याबाई के जन्म स्थान पर सीना नदी पर बना घाट, कुरुक्षेत्र का लक्ष्मी कुंड तथा पंच कुंड घाट, कानपुर में ब्राह्मण घाट इसके अलावा खरगोन जिले के महेश्वर में बने अहिल्या घाट, राजराजेश्वर घाट, काशी विश्वेश्वर घाट, पेशवा घाट, भारमल दादा घाट, सरदार फणसे घाट लोकमाता अहिल्याबाई होलकर की देन है.