आज जिस महान क्रांतिकारी की जन्मजयंती है उनका नाम भी आपके लिए नया होगा.. खैर बताएगा भी कौन ?? वो तो कदापि नहीं जिन्होंने इस बात पर अपनी मुहर लगा रखी है कि भारत की स्वतंत्रता बिना खड्ग बिना ढाल मिली है और 2 या 4 लोगों ने ही भारत को स्वतंत्रता करवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.. उन्हीं 2 या 4 लोगों को इतना चमकाया गया कि अंत में वही भारत के भाग्य विधाता बन बैठे और बाकी सब के सब कर दिए गए विस्मृत..
उन्हीं विस्मृत किए गए लोगों में से एक हैं आज ही जन्म लेने वाले वीर रघुनाथ महतो जी. जिन्होंने भारत माता को अपना सब कुछ दे दिया और बदले में कुछ नहीं मांगा. रघुनाथ महतो जी की जन्मजयंती पर सुदर्शन परिवार उन्हें कोटि-कोटि नमन करता है और उनकी गौरव गाथा को समय-समय पर जनमानस के आगे लाते रहने का संकल्प भी दोहराता है.
रघुनाथ महतो जी का जन्म 21 मार्च 1738 को वर्तमान सरायकेला खरसांवां जिले के निमडीह प्रखंड के घुंटियाडीह गांव में हुआ था. रघुनाथ महतो जी के पिता का नाम काशीनाथ महतो था, वो एक कुर्मी सरदार थे. जबकि उनकी मां का नाम करमी महतो और वो एक साधारण गृहिणी थीं. अंग्रेजों ने रघुनाथ महतो जी के गांव में भी काफी अत्याचार किए थे. अंग्रेज वहां के लोगों से कर लेते थे और भुगतान न करने पर तरह-तरह की यातनाएं देते थे.
अंग्रेजों के अत्याचारों से परेशान होकर रघुनाथ महतो जी ने अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह शुरू किया. रघुनाथ महतो जी ने सशस्त्र गुरिल्ला क्रांतिकारी समूह की स्थापना करते हुए चुआड़ विद्रोह का नेतृत्व किया था. चुआड़ विद्रोह, छोटानागपुर क्षेत्र में अंग्रेजों के खिलाफ पहला विद्रोह था. रघुनाथ महतो जी का नारा था कि
"अपना गांव, अपना राज; दूर भगाओ विदेशी राज"
अंग्रेजों के खिलाफ रघुनाथ महतो जी की लड़ाई में उन्हें पुलकामाझी, डोमन भूमिज और शंकर माझी जैसी हस्तियों से अमूल्य समर्थन मिला था. रघुनाथ महतो जी के नेतृत्व में ही उनकी सशस्त्र सेना ने ब्रिटिश सेना के निमधुल किले को सफलतापूर्वक ध्वस्त कर दिया था. रघुनाथ महतो जी की ताकत और साहस के सामने अंग्रेजों को नारायणसिंह गढ़ की ओर पीछे हटना पड़ा था.
रघुनाथ महतो जी और उनकी सशस्त्र सेना ने कई ब्रिटिश सेना शिविरों पर कब्जा करने और ब्रिटिश शासन से मुक्त क्षेत्र स्थापित करने में सफलता प्राप्त की थी. रघुनाथ महतो जी ने कई लोगों को अंग्रेजों की दमनकारी पकड़ से मुक्त कराया. जिसके बाद बंगाल रेजिमेंट के कमांडर सिडनी स्मिथ ने उन्हें पकड़ने के लिए बड़े पैमाने पर अभियान चलाया.
5 अप्रैल 1778 को, दलमार पहाड़ियों पर एक अप्रत्याशित हमले के दौरान, रघुनाथ महतो जी की गोली मारकर हत्या कर दी गई. रघुनाथ महतो जी ने वहीं अपने प्राणों को त्याग दिया. भारत माता पर अपने प्राणों को निछावर करते हुए रघुनाथ महतो जी के अंतिम शब्द थे, "हमार मरके पारेओ लराई चलाय जाबे हे" (मेरी मृत्यु के बाद भी, संघर्ष जारी रहेगा).