चंपारण सत्याग्रह: महात्मा गांधी के नेतृत्व में पहला आंदोलन
महात्मा गांधी के नेतृत्व में पहला आंदोलन
भारत मे व्यवसाय करने आई ईस्ट इंडिया कंपनी ने 1750 से भारत मे नील की खेती करवानी शुरू कर दी। नील की फसल उगाने की प्रक्रिया बेरार (महाराष्ट्र का पूर्वी भाग), अवध (बिहार का उत्तर-पश्चिम भाग) और बंगाल में शुरू हुई। यूरोपीय बाज़ार में तेरहवीं शताब्दी तक कपड़े को रंगने के लिए नील का इस्तेमाल किया जाने लगा था। अन्तराष्ट्रीय बाजार में भारतीय नील की मांग बढ़ने लगी। ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी औसतन दरों पर भारत मे नील की खेती करवाती और अधिक दामों में यूरोप, यूके और चाइना के बाज़ारो में बेचती। भारत मे नील की खेती के लिए रैयती व्यवस्था का इस्तेमाल किया जाता था। भारतीय किसान नील की खेती करने के पक्ष में नहीं थे।इसका कारण ये था कि नील की खेती में जरूरत से ज्यादा पानी का इस्तेमाल होता था और ये खेती जमीन की उर्वरता को भी कम करने लगती थी। इन समस्याओं को अनदेखा करते हुए ब्रिटिशों में 'तीन कठिया' व्यवस्था निकली जिसमे किसान को अपने एक बीघा जमीन में से तीन कट्ठे पर नील की खेती करना आवश्यक था। यह व्यवस्था इसी प्रकार चलते रही पर साल 1915 में जर्मन वैज्ञानिकों ने आर्टिफिशियल डाई का अविष्कार किया जिसके बाद अन्तराष्ट्रीय बाजार में भारत के नील की मांग गिरने लगी। इसके बावजूद ब्रिटिशों ने न्यूनतम दरों या मुफ्त में किसानों से नील की खेती करानी जारी रखी और किसानों का शोषण भी किया। इस दौरान गांधी जी साउथ अफ्रीका से जनवरी 1915 में भारत लौटे थे।
इसके बाद साल 1917 में बिहार के छोटे से गांव चंपारण से कुछ लोग अपनी समस्या लेकर गांधी जी के पास गए। जिसके बाद गाँधी जी ने गुजरात के साबरमती से बिहार के चंपारण तक कि यात्रा तय की। गांधी जी ने किसानों पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाई। इस आंदोलन के बारे में कहा जाता है कि इसने आजादी के आंदोलन को नए दिशा दिखाई थी। गाँधी जी ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ आंदोलन किये व हस्ताक्षर अभियान भी शुरू किया। सभी किसानों से उनकी जमीन, परिवार, कमाई आदि की जानकारी ली। इसके बाद सरकार से गरीबों को भुगतान करने की मांग की गई। इस सब कारणों से ब्रिटिशों ने गाँधी जी को गिरफ्तार कर लिया।कोर्ट में गांधी जी के समर्थन में लोगों की भीड़ देखकर तत्कालीन जज ने गाँधी जी को रिहा कर दिया और डाटा एकत्रित करने के कार्यों को जारी रखने को कहा। गांधी जी ने अपने सर्वे के रिपोर्ट को ब्रिटिश सरकार को सौंपी जिसमें सरकार का ध्यान किसानों की दुर्दशा पर गया। इसके बाद सरकार ने इस समस्या पर इंडिगो कमीशन बनाया जिसमें गाँधी जी भी शामिल थे। इस कमीशन के रिपोर्ट के आधार पर 'तीन कठिया' व्यवस्था को पूरी तरह से खत्म कर दिया गया और शोषित, गरीब व सभी तबके के किसानों को ब्रिटिश सरकार की तरफ से मुआवजा भी दिलाया गया। जिसके बाद चारों तरफ महात्मा गाँधी की प्रशंसा होने लगी व अनेक लोग उनसे जुड़ने लगे।
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