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Holi 2025: होली और जुमा एक साथ... खुशियों के रंग में तनाव का माहौल, जानें कैसे मुग़ल-नवाबों के जमाने में मनाया जाता था यह त्योहार

Holi: होली के त्यौहार के बीच बढ़ती सियासी और विवादित बयानबाजी... रंग, फूल और संगीत के संग हर महफिल में बसी थी नवाबी ठाठ।

Ravi Rohan
  • Mar 13 2025 3:58PM

इस बार होली और रमजान का जुमा एक ही दिन पड़ने के कारण देशभर में उत्सव का माहौल तो है, लेकिन साथ ही कुछ स्थानों पर तनाव और तीखी बयानबाजी भी देखने को मिल रही है। हालांकि, बड़ी संख्या में लोग इस अवसर पर रंग, अबीर और गुलाल के साथ होली खेलते हुए इस मौके का आनंद ले रहे हैं। प्रशासन और पुलिस के लिए यह चुनौतीपूर्ण है कि वे इस उत्सव के दौरान देश भर में शांति बनाए रखें और माहौल में सामंजस्य बनाए रखें।

नवाबों की होली

आज के भारत के मुस्लिमों और मुल्ला, काजी, मौलवियों को भले प्रकृति के रंगों से नफरत या परहेज हो, जिनको कोई इस्लाम के विरुद्ध बताता है, तो कोई नमाज़ के लिए हराम। मगर इतिहास के पन्नों को पलटते हुए हम अवध के मुस्लिम नवाबों की होली का जिक्र करते हैं, जो रंगों और फूलों से भरी होती थी। अवध के नवाब, जो गंगा-जमुनी तहजीब में विश्वास रखते थे, होली के दौरान रंगों और फूलों से सजी महफिलों का आयोजन करते थे। खासकर नवाब सआदत अली खां, नसीरुद्दीन हैदर और वाजिद अली शाह के समय में होली के उत्सव और संगीत का आनंद अद्वितीय था।

बसंत पंचमी से होली की शुरुआत

अवध में होली की शुरुआत बसंत पंचमी से होती थी, जब लोग रंगों और फूलों की सजावट करते थे। नवाब सआदत अली खां के समय में तो मुशायरे और संगीत की महफिलें लगती थीं, और बादशाह नसीरुद्दीन हैदर ने गोमती नदी के किनारे रंग-बिरंगे माहौल में रंग खेलना शुरू किया था।

नौरोज को होली जैसा त्योहार बना डाला

इतिहासकार योगेश प्रवीन के अनुसार, नवाबों ने मुस्लिम त्योहार नौरोज को भी होली जैसा बना दिया था। इस दौरान रंगों और इत्र की बारिश होती थी, और विशेष रूप से नवाब बेगम और नसीरुद्दीन हैदर के समय में इस परंपरा को बड़े धूमधाम से मनाया जाता था। लखनऊ में आज भी नौरोज के मौके पर होली का अहसास होता है।

नवाब आसफुद्दौला और रंगों के जश्न

नवाब आसफुद्दौला को होली के रंगों से गहरी लगाव था। वे अपने दरबारियों के साथ रंग-बिरंगे समारोहों का आयोजन करते थे, जिसमें फूलों की बारिश और अबीर-गुलाल की बौछार होती थी। इस दौरान मुजरों और नृत्य की महफिलें भी सजती थीं, जो माहौल को और भी रोमांचक बना देती थीं।

वाजिद अली शाह की होली महफिल

वाजिद अली शाह के समय में होली का उत्सव पूरी शाही ठाठ के साथ मनाया जाता था। वह गीत-संगीत में डूबे रहते थे, और होली के दिन वह अपनी महफिलों में पूरे शाही ठाठ-बाट से रंगों का आनंद लेते थे। उनके शासन के दौरान होली गाने और रंग खेलने की परंपरा और भी प्रगाढ़ हुई।

बादशाह ज़फ़र की होली के लिए इंतजार

अंतिम मुग़ल बादशाह बहादुर शाह ज़फ़र, जो कट्टर शासक औरंगजेब के वंशज थे, वे भी होली का इंतजार बड़ी बेसब्री से करते थे। उनकी शाही दरबार में होली के दौरान रंग-बिरंगे फूलों की बौछार होती थी और वह अपने दरबारियों और महलों के साथ रंगों में रंग जाते थे। लाल किले की डायरी में दर्ज है कि ज़फ़र अपने दरबारियों के साथ होली खेलने में विशेष रुचि रखते थे, जिससे उनकी महफिल और भी शानदार बन जाती थी।

होली की परंपरा और नवाबी संस्कृति का मेल

नवाबों के समय की होली में रंगों, फूलों और संगीत का अद्भुत मिश्रण था। वह समय न केवल रंगों के पर्व का था, बल्कि सांस्कृतिक धरोहर और गंगा-जमुनी तहजीब के उत्सव का भी था। आज भी वह परंपराएं हमारे बीच जीवित हैं, जो हमें इतिहास और संस्कृति के रंगों में डुबो देती हैं।

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