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Kerala: गोवा के राज्यपाल के खिलाफ सबरीमाला बयान पर FIR रद्द, केरल HC का अहम फैसला

गोवा के राज्यपाल के खिलाफ एफआईआर खारिज, सबरीमाला में महिलाओं के प्रवेश पर टिप्पणी।

Ravi Rohan
  • Nov 21 2024 8:17PM

केरल उच्च न्यायालय ने गोवा के राज्यपाल, पीएस श्रीधरन पिल्लई के खिलाफ 2018 में सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को लेकर की गई उनकी टिप्पणी के संदर्भ में दर्ज एफआईआर को खारिज कर दिया। राज्यपाल ने यह बयान उस समय दिया था जब सर्वोच्च न्यायालय ने सभी आयु वर्ग की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश की अनुमति दी थी।

IPC के तहत नहीं बनता अपराध

न्यायमूर्ति पीवी कुन्हीकृष्णन ने अपने फैसले में कहा कि राज्यपाल का बयान आईपीसी की धारा 505(1)(बी) के तहत अपराध नहीं बनता है। इस धारा में यह प्रावधान है कि यदि कोई व्यक्ति सार्वजनिक रूप से ऐसे बयान देता है जिससे राज्य या सार्वजनिक शांति के खिलाफ अपराध की स्थिति उत्पन्न हो सकती है, तो उसे सजा दी जा सकती है। हालांकि, चूंकि राज्यपाल ने यह बयान एक निजी बैठक में दिया था, न कि किसी सार्वजनिक सभा में, इसलिए यह अपराध नहीं माना गया।

इसके अलावा, उच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि गोवा के राज्यपाल पीएस श्रीधरन पिल्लई के खिलाफ किसी भी प्रकार की आपराधिक कार्यवाही उनके कार्यकाल के दौरान नहीं की जा सकती। संविधान के अनुच्छेद 361(2) के अनुसार, राज्यपाल या राष्ट्रपति के खिलाफ उनके कार्यकाल में कोई आपराधिक कार्यवाही नहीं की जा सकती है।

बयान और एफआईआर का कारण

यह मामला तब उत्पन्न हुआ जब 4 नवंबर 2018 को पीएस श्रीधरन पिल्लई ने अपने भाषण में सर्वोच्च न्यायालय के आदेश की आलोचना की थी, जिसमें सबरीमाला मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं के प्रवेश को वैध ठहराया गया था। पिल्लई ने कहा था कि यदि किशोरावस्था की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश दिया जाता है, तो पुजारी द्वारा मंदिर के द्वार को बंद करना अदालत की अवमानना नहीं होगी। इस बयान के खिलाफ एक पत्रकार ने एफआईआर दर्ज कराई थी, और आरोप लगाया कि पिल्लई के शब्दों से समाज में तनाव उत्पन्न हो सकता है।

अदालत का निर्णय और तर्क 

अदालत ने अभियोजन पक्ष के तर्कों को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि पिल्लई के बयान से सार्वजनिक शांति पर खतरा हो सकता था। अदालत ने यह भी कहा कि केवल इसलिए कि पिल्लई का भाषण मीडिया में प्रकाशित हुआ था, वह अपराध नहीं बनता। अदालत ने स्पष्ट किया कि मीडिया को समाचार प्रकाशित करने का अधिकार है और उन्हें इस मामले में दोषी नहीं ठहराया जा सकता।

अंततः अदालत ने यह भी टिप्पणी की कि राज्यपाल के भाषण में ऐसा कोई संदेश नहीं था जो सामाजिक एकता को नुकसान पहुंचाता हो, बल्कि वह हिंदुओं के हितों की रक्षा के लिए समुदायों को एकजुट करने की कोशिश कर रहे थे।

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