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Masik Krishna Janmashtami 2025: कब है मासिक कृष्ण जन्माष्टमी? जानें शुभ मुहूर्त से लेकर पूजा विधि तक सबकुछ

2025 में मासिक कृष्ण जन्माष्टमी 21 जनवरी को पड़ेगी। इस दिन श्री कृष्ण के दिव्य जन्म का व्रत श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाने का महत्व है।

Deepika Gupta
  • Jan 3 2025 2:23PM

मासिक कृष्ण जन्माष्टमी हर महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है। यह विशेष रूप से उन भक्तों के लिए महत्व रखती है जो भगवान श्री कृष्ण के परम भक्त हैं। यह दिन भगवान श्री कृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है, जिसमें उपवास, पूजा, भजन-कीर्तन और अन्य धार्मिक अनुष्ठान किए जाते हैं।

2025 में मासिक कृष्ण जन्माष्टमी  21 जनवरी को पड़ेगी। इस दिन श्री कृष्ण के दिव्य जन्म का व्रत श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाने का महत्व है। हालांकि, मासिक कृष्ण जन्माष्टमी हर महीने की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को होती है, लेकिन इसे विशेष रूप से अधिक श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है।

मासिक कृष्ण जन्माष्टमी पूजा का शुभ मुहूर्त  

पौराणिक कथाओं के अनुसार श्री कृष्ण का जन्म रात्रि में 12 बजे हुआ था। पंचांग के अनुसार मासिक कृष्ण जन्माष्टमी के दिन पूजा का शुभ मुहूर्त रात्रि 12 बजकर 6 मिनट से लेकर 12 बजकर 59 मिनट तक रहेगा। ऐसे में भक्तों को पूजा करने के लिए कुल 53 मिनट का समय मिलेगा।

मासिक कृष्ण जन्माष्टमी कब है? 

हिंदू वैदिक पंचांग के अनुसार साल की पहली यानी माघ माह में शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि की शुरुआत 21 जनवरी को रात 12 बजकर 39 मिनट होगी। वहीं तिथि का समापन अगले दिन 22 जनवरी रात 3 बजकर 18 मिनट पर होगी। जिसके अनुसार मासिक जन्माष्टमी का व्रत 21 जनवरी को रखा जाएगा।

पूजा विधि

उपवास: पूजा से पहले भक्तों को उपवासी रहकर दिनभर भगवान श्री कृष्ण की भक्ति में लीन रहना चाहिए।

श्री कृष्ण की मूर्ति का स्नान और श्रृंगार: पूजा के दौरान भगवान की मूर्ति या चित्र का अभिषेक करें। मूर्ति को दूध, दही, शहद, घी और गंगाजल से स्नान कराएं। फिर उन्हें सुंदर वस्त्र पहनाएं और आभूषण पहनाकर उन्हें सुंदर रूप से सजाएं।

धूप, दीप और नैवेद्य अर्पण: दीपक जलाकर, श्री कृष्ण को प्रसन्न करने के लिए उन्हें ताजे फल, माखन-चुड़ा, मिठाइयां और तुलसी के पत्ते चढ़ाएं।

भजन और कीर्तन: रात्रि 12 बजे तक विशेष रूप से हरे कृष्णा महामंत्र का जाप करें और कृष्ण भजन व कीर्तन का आयोजन करें। इस समय को विशेष भक्ति भाव से बिताएं।

कृष्ण लीला का गायन: कृष्ण जन्म के समय की लीला का वाचन करें या उसका गायन करें।

कृष्ण के व्रत को समाप्त करें: अगले दिन सूर्योदय के बाद पूजा समाप्त करें और ब्राह्मणों को भोजन कराएं।


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