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11 अक्टूबर : महान स्वतंत्रता सेनानी लोकतंत्र के संरक्षक आपातकाल में जन चेतना के प्रखर संवाहक भारत रत्न लोकनायक जयप्रकाश नारायण जी की जयंती पर शत-शत नमन

आज महान स्वतंत्रता सेनानी लोकनायक जयप्रकाश नारायण जी के पावन जन्मदिवस पर सुदर्शन परिवार उन्हें नमन वंदन करता है.

Sumant Kashyap
  • Oct 11 2024 3:56PM

भारत एक लोकतांत्रिक देश है, यहां की सुंदरता यहां की भिन्नता में है. जब जब यहां के लोकतंत्र पर किसी तरह का ख़तरा आता है, क्रांतियां होती है और लोकतंत्र को फिर से मुक्त कराया जाता है. इंदिरा गांधी द्वारा जारी किया आपातकाल इसी तरह का एक लोकतांत्रिक खतरा था. इस समय लोकनायक जयप्रकाश नारायण जी ने सरकार के इस फैसले के विरुद्ध अपना प्रखर विरोध जताया था. इनका नाम भारतीय राजनीति में क्रांति का नाम है. इन्हें लोग जेपी भी कहते हैं. आज महान स्वतंत्रता सेनानी लोकतंत्र के संरक्षक आपातकाल में जन चेतना के प्रखर संवाहक लोकनायक जयप्रकाश नारायण जी  के पावन जन्मदिवस पर सुदर्शन परिवार उन्हें नमन वंदन करता है.

लोकनायक जयप्रकाश नारायण जी का जन्म 11 अक्टूबर 1902 को बिहार के सारण जिले के सिताब दियारा गांव में हुआ था. जयप्रकाश नारायण जी पिता का नाम हरशु दयाला जी और माता का नाम फूल रानी देवी था. इनके पिता स्टेट गवर्नमेंट के कैनल विभाग में कार्यरत थे. जिस समय ये 9 वर्ष के थे, उसी समय वे पटना आ गये और सातवीं कक्षा में अपना नामांकन कराया. अपने स्कूली दिनों के दौरान ही उन्होंने सरस्वती, प्रभा और प्रताप जैसी पत्रिकाओं को पढ़ना शुरू कर दिया. इसी समय उन्होंने भारत भारती जैसी पुस्तक पढ़ ली. 

जयप्रकाश नारायण जी मैथिलीशरण गुप्त जी और भारतेंदु हरिश्चंद्र जी जैसे बड़े लेखकों की रचनाओं को पढ़ना शुरू किया, जिसमें कई राजपूत वीरों के वीर गाथाओं का वर्णन हुआ था. उन्होंने इसी समय श्रीमद्भगवद्गीता श्री कृष्ण के अनमोल वचन का अध्ययन किया. इससे इनकी बौद्धिक क्षमता में बहुत अधिक विकास हुआ और इन्होने ‘द प्रेजेंट स्टेट ऑफ़ हिन्ची इन बिहार’ शीर्षक से एक निबंध लिखा. इस निबंध को एक निबंध प्रतियोगिता में ‘बेस्ट एसे अवार्ड’ प्राप्त हुआ था. स्कूली दिनों में इनका बहुत अच्छा विकास हुआ और वर्ष 1918 में उन्होंने अपना स्कूली प्रशिक्षण समाप्त किया और इन्हें ‘स्टेट पब्लिक मैट्रिकुलेशन एग्जामिनेशन’ का सर्टिफिकेट प्राप्त हुआ.

लोकनायक जयप्रकाश नारायण जी अक्टूबर 1920 में इनका विवाह ब्रज किशोर प्रसाद की पुत्री प्रभावती देवी से हुआ. उनके विवाह के समय इनकी आयु 18 वर्ष की और प्रभावती देवी की आयु 14 वर्ष की थी. यह आयु इस समय विवाह के लिए आम मानी जाती थी. विवाह के बाद चूंकि ये पटना में कार्यकर थे, अतः पत्नी के साथ उनका रहना संभव नहीं था.जयप्रकाश नारायण जी डॉ राजेंद्र प्रसाद जी द्वारा स्थापित कॉलेज बिहार विद्यापीठ में अपना नामांकन कराया और डॉ अनुग्रह नारायण सिन्हा के पहले विद्यार्थियों में एक हुए.

ये शिक्षा प्राप्त करने के लिए बहुत अधिक उत्साहित रहते थे. लोकनायक जयप्रकाश नारायण जी विद्यापीठ में अपने कोर्स को पूरा करने के बाद संयुक्त राष्ट्र अमेरिका में अपनी उच्च शिक्षा प्राप्त करने की योजना बनायी. इसके उपरान्त महज 20 वर्षों की उम्रवास्था में ही उन्होंने जानूस नाम के अमेरिका जाने वाली एक कार्गो शीप से अमेरिका के लिए रवाना हो गये. इस समय प्रभावती देवी साबरमती में ही गांधी के आश्रम में थीं.

लोकनायक जयप्रकाश नारायण जी  8 अक्टूबर 1922 को कैलिफोर्निया पहुंच गए. इसके उपरान्त जनवरी 1923 में इन्हें बर्कले में दाखिला प्राप्त हुआ. इस समय इन्हें कहीं से भी किसी तरह की आर्थिक सहायता प्राप्त नहीं थी, अतः इस समय अपनी शिक्षा की फीस भरने के लिये लोकनायक जयप्रकाश नारायण जी कभी किसी मिल फैक्ट्री में तो कभी होटलों में बर्तन धोने का काम, कभी गैरेज में गाड़ी बनाने का कार्य किया. 

भारतीय राजनीति में इनका बहुत बड़ा योगदान रहा है. ये वर्ष 1929 में अपनी उच्च शिक्षा समाप्त कर अमेरिका से भारत आए. बिहार के पटना के कदमकुआं में ये अपने ख़ास दोस्त गंगा शरण सिंह के साथ एक ही घर में रहे. इन दोनो में बहुत अधिक दोस्ती थी. वर्ष 1932 के दौरान ब्रिटिश सरकार के खिलाफ सविनय अवज्ञा आन्दोलन के समय ब्रिटिश पुलिस ने इन्हें जेल में डाल दिया.  

ब्रिटिश हुकूमत ने इन्हें नासिक जेल में रखा जहां पर इनकी मुलाक़ात राम मनोहर लोहिया, मीनू मस्तानी, अच्युत पटवर्धन, अशोक मेहता, बसवोन सिन्हा, युसूफ देसाई, सी के नारायणस्वामी तथा अन्य राष्ट्रीय स्तर के नेताओं से हुई. इन सबसे मिलने से कांग्रेस में वामपंथी दल का निर्माण हुआ, जिसे कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी कहा गया. इस पार्टी के अध्यक्ष आचार्य नरेन्द्र देव और महासचिव जयप्रकाश नारायण हुए.

1942 के भारत छोडो आन्दोलन के समय जब इन नेताओं को पुनः गिरफ्तार किया गया तो हजारीबाग जेल में रखा गया था. इस समय ये अपने अन्य क्रांतिकारी साथियों जैसे योगेन्द्र शुक्ला, सूरज नारायण सिंह, गुलाब छंद गुप्ता, रामनंदन मिश्र, शालिग्राम सिंह आदि के साथ मिलकर जेल के अन्दर ही आज़ादी के आंदोलनों की योजनाएं बनाने लगे. भारत छोड़ो आन्दोलन के समय उन्होंने आदोलन में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया था जिससे उन्हें लोगों में प्रसिद्धि प्राप्त होने लगी. भारत के स्वतंत्र हो जाने के बाद इन्हें ‘आल इंडिया रेलवेमेन फेडरेशन’ का अध्यक्ष बनाया गया. ये दल भारत का सबसे बड़ा श्रमिक दल है. इस पद पर ये वर्ष 1947 से 1953 तक कार्यरत रहे. 

1960 के समय उन्होंने भारत की राजनैतिक स्थिति को देखते हुए पुनः राजनीति में आने का निर्णय किया. वर्ष 1974 में देश में स्थिति बहुत अधिक खराब हो गई थी. लोगों को रोज़गार नहीं प्राप्त हो रहा था, आवश्यकता की वस्तुएं नहीं प्राप्त हो पा रही थीं सरकार पूरी तरह से निरस्त हो चूकी थी. ऐसे समय में देश को एक नयी क्रांति की आवश्यकता थी. जयप्रकाश नारायण जी ने इसी समय गुजरात में होने वाले नवनिर्माण आन्दोलन की बागडोर संभाली.

72 साल की उम्रवास्था में जयप्रकाश नारायण जी 8 अप्रैल 1974 पटना में मौन जुलूस का आग़ाज़ किया. इस जुलूस में सरकार ने लाठियां बरसाई थी. इसके बाद 5 जून को इन्होने पटना के गांधी मैदान में एक बहुत बड़ी सभा का आयोजन किया. इस सभा को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा था कि यह एक क्रांति है, हम लोग यहां केवल तात्कालिक विधानसभा के विलय देखने के लिए उपस्थित नहीं हुए हैं, बल्कि यह हमारे रास्ते का पहला पड़ाव है.

भारत की आज़ादी के 27 वर्षों के बाद भी देश की जनता महंगाई, भुखमरी, भ्रष्टाचार आदि से ग्रसित और परेशान है. देश में कहीं भी न्याय नहीं हो रहा है. इस समय देश को सम्पूर्ण क्रांति की आवश्यकता है. वर्ष 1974 में इन्होने बिहार के छात्रो के साथ मिलकर छात्र आन्दोलन की शुरुआत की. यह आन्दोलन लगातार बढ़ता गया और छात्रों के अलावा आम लोग भी इससे जुड़ने लगे. यही आन्दोलन कालांतर में बिहार आन्दोलन कहलाया. इन महत्वपूर्ण आन्दोलन को जयप्रकाश नारायण जी ने ‘शांतिपूर्ण सम्पूर्ण क्रान्ति’ का नाम दिया.

आपातकाल के समय इंदिरा गांधी को प्रयागराज (इलाहाबाद) कोर्ट ने एल्क्टोरल कानून के तोड़ने के अंतर्गत दोषी माना. इस पर इन्होने इंदिरा गांधी तथा अन्य कांग्रेस शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों से इस्तीफे की मांग की. इन्होने मिलिट्री और पुलिस को सरकार के अनैतिक और असंवैधानिक निर्णयों को न मानने की अपील की. 25 जून 1975 के दिन इंदिरा गांधी ने भारत में आपातकाल की घोषणा की. इस समय देश भर में नारायण की सम्पूर्ण क्रांति के आयोजन चल रहे थे. इसी दिन इन्हें और इस आन्दोलन से जुड़े मुख्य लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया. 

जयप्रकाश नारायण जी इसके उपरान्त सरकार के विरोध में रामलीला मैदान में 1,00,000 लोगों को संबोधित करते हुए राष्ट्रकवि दिनकर की कविता ‘सिंहासन खाली करो कि जनता आती है’ की कई आवृत्तियां की. इसके बाद इन्हें सरकार द्वारा पुनः गिरफ्तार कर लिया गया और चंडीगढ़ में रखा गया. इस समय बिहार में बाढ़ आई हुई थी. इन्होने सरकार से 1 माह के पैरोल की मांग की ताकि बाढ़ का जायजा ले सकें, किन्तु ऐसा हो न सका. इस बीच उनकी तबीयत बिगड़ने लगी. 24 अक्टूबर को अचानक इनकी तबीयत खराब हो गयी. इसके बाद 12 नवम्बर को इन्हें रिहा किया गया, जहां से उन्हें डायग्नोसिस के लिए जसलोक अस्पताल में ले जाया गया. यहां पर पता चला कि इन्हे किडनी सम्बंधित परेशानी हो गई है और बाक़ी के जीवन में इन्हें हमेशा डायग्नोसिस का सहारा लेना पड़ेगा.

इसके बाद उनितेस किंगडम में सुरूर होडा ने ‘फ्री जेपी’ कैम्पेन जारी किया. इस कैम्पेन का नेतृत्व नोबल पुरस्कार प्राप्त नोएल बेकर ने किया, जिसका उद्देश्य जयप्रकाश नारायण जी को जेल से रिहा कराना था. इंदिरा गांधी ने करीब 2 वर्ष के बाद 18 जनवरी 1977 को देश से इमरजेंसी हटा दी और चुनाव की घोषणा की गयी. इस चुनाव के समय इनके नेतृत्व में जनता पार्टी का गठन किया और चुनाव में विजय भी प्राप्त किया. देश में पहली बार ऐसा होने वाला था कि केंद्र में एक ग़ैरकांग्रेसी सरकार आई. ध्यान देने वाली बात ये है कि इस समय देश भर के युवा वर्ग भी राजनीति की तरफ जागृत हुए और कई युवाओं ने स्वयं को जयप्रकाश के इस आन्दोलन से जोड़ा.

भारत का स्वतंत्रता आन्दोलन हो या राजनैतिक आन्दोलन जयप्रकाश नारायण जी ने देश सेवा में हमेशा अपना योगदान दिया. इस कारण इन्हें कई यातनाएं सहनी पड़ी, किन्तु उन्होंने हार नहीं मानी. आज भी कई राज नेता इनके नाम का प्रयोग अपने भाषणों में करते हैं. भारतीय राजनीति को सदैव ही ऐसे क्रांतिकारी व्यक्तित्व वाले लोगों की आवश्यकता रही है. देश का युवा वर्ग आज भी इनसे प्रेरणा लेकर भारतीय राजनीति में अपनी भूमिका दर्ज कराने की कोशिश करता है.आज महान स्वतंत्रता सेनानी लोकनायक जयप्रकाश नारायण जी के पावन जन्मदिवस पर सुदर्शन परिवार उन्हें नमन वंदन करता है.
  

 


 

 

 
 
 

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