इस देश के आम नागरिकों में एक बड़ा वर्ग ऐसा है, जिनका विरोध अपसंस्कृति और तुष्टिकरण की उस कुत्सित मानसिकता के प्रति सदैव रहा है, जिसकी जड़ें विदेशी हैं, जिसके आदर्श व नायक विदेशी हैं और जिसका मूल चरित्र भी अ-भारतीय है। उनका विरोध उस घृणित-विभाजनकारी मानसिकता से है, जो हमें बाँटकर इस देश को सांस्कृतिक और भौगोलिक दृष्टि से दुर्बल करती रही है, और दुर्बल करना चाहती है। अतीत में हमने इतना कुछ खोया है कि यह चिंता निराधार नहीं लगती। इस मानसिक अनुकूलन के कारण ही हमें असत्य भी सत्य प्रतीत होता है, युग विशेष में प्रचलित-प्रक्षेपित भ्रांतियाँ और रूढ़ियाँ ही वास्तविक जान पड़ती हैं।
दुर्भाग्य से, हम जाति और धर्म के नाम पर बंटे हुए हैं, इसलिए समाज कमजोर हो जाता है। भगवान महावीर के उपदेश आज भी देश और दुनिया में प्रासंगिक हैं। उन्होंने कहा था कि दुनिया भर के बुद्धिजीवी भारत की प्राचीन संस्कृति का सम्मान करते हैं क्योंकि यह शांति और अहिंसा के सिद्धांतों का पालन करती है।
वही आगे सन्नी सिन्हा ने कहा कि शांति, अहिंसा और सामाजिक समरसता स्थापित करने से ही समाज का विकास संभव है। भारत अपनी विविधता के लिए मशहूर है और यहां हर धर्म के लोग मौजूद हैं।
यहां अलग- अलग धर्म के लोग मिल जुलकर एक साथ खुश रहते हैं। हमें राग व द्वेष से ऊपर उठकर काम करना चाहिए। हमें न तो किसी से राग रखकर काम करना है और ना ही द्वेष रखकर। हमें निष्पक्षता के साथ काम करना है। चाहे कुछ भी हो हमें अपने कर्तव्यों का ईमानदारी से पालन करना चाहिए। व्यक्ति बड़ा या छोटा नहीं होता,जिम्मेदारियां बड़ी होती हैं। कोई काम बड़ा या छोटा नहीं होता,सबका अपना महत्व होता है।हम सभी लोगों को इस पर विचार करना चाहिए और समता की भावना के साथ आगे बढ़ना चाहिए। युवाओं से अपने चुने हुए क्षेत्रों में सफल शख्सियत बनने के लिए सहिष्णुता, धैर्य, अनुशासन, कड़ी मेहनत, अध्ययन और सहानुभूति के गुणों को अपनाने का अनुरोध किया।