देश और दुनिया भर के सनातनी समाज में हिन्दू नव वर्ष धूमधाम और श्रद्धा से मनाया जा रहा है। महज 15 साल पहले वामपंथी विचारधारा मे विलुप्तप्राय हो चुकी इस संस्कृति ने एक बार फिर से लोगों की धर्म मे आस्था जगाई है। चैत्र नवरात्रि और हिन्दू नववर्ष के इस शुभ अवसर पर दिल्ली विधानसभा के स्पीकर विजेंदर गुप्ता ने रविवार (30 मार्च 2025) को सभी देशवासियों को अपनी शुभकामनायें दी हैं। आइए पढ़ते हैं उनका सभी स्नाततनियों को संबोधित संदेश-
हिन्दू नव वर्ष, एक नई शुरुआत करने, नए संकल्प लेने और वसंत ऋतु के इस सुहावने मौसम में जीवन को सकारात्मक ऊर्जा से भरने का अवसर है। यह केवल एक नई तारीख या नए साल का आरम्भ नहीं है बल्कि हमारी प्राचीन सभ्यता और संस्कृति का आधार है। हमारी सांस्कृतिक पहचान है।
अंग्रेजी नव वर्ष एक विदेशी कैलेंडर पर आधारित है जबकि हिंदू नव वर्ष भारतीय परम्परा और पंचाग से जुड़ा हुआ है। यह केवल एक त्योहार नहीं है बल्कि हमारी आस्था का केंद्र बिंदु है। यह हमारा महान इतिहास है। हमारी जीवंत परम्परा है। हमारी जीवन शैली है। हमें इस पर्व को पूरी श्रद्धा के साथ मनाना चाहिए। आप जानते हैं कि प्रकृति भी इस समय नई ऊर्जा से भर जाती है और नव वर्ष का स्वागत करती है।
इतिहासकारों के लिए यह सदा हैरानी का विषय रहा है कि इतने विशाल देश में जब हजारों साल पहले यातायात के साधन तक उपलब्ध नहीं थे, तब इस देश की जनता में, अपने देश के प्रति प्रेम और पूरे देश में एकता की भावना कैसे उत्पन्न हुई? कश्मीर से कन्याकुमारी और गुजरात से असम तक, सभी नागरिकों को कौन सी डोर बांधे हुए है? दुनिया भर की सभ्यताएं नष्ट हो गई लेकिन भारतीय सभ्यता कैसे सुरक्षित रही? इसका कारण है पूरे देश को एक सूत्र में पिरोने वाली इसकी सनातन संस्कृति।
यह माना जाता है कि देश की भौतिक दशा में बदलाव तेजी से हो जाते हैं। जैसे मशीनें, मकान, सड़कें, उद्योग, सुख-सुविधाएं लेकिन हमारे राष्ट्रीय आदर्श, विचार और परंपराएं नहीं बदलते। हमारा काम इनका पालन करना और इनको भावी पीढ़ी तक आगे ले जाने का होता है।
हिन्दू नव वर्ष या नव संवत्सर के इतिहास के बारे में आप सब जानते हैं। मैं उन बातों को Activate नहीं दोहराऊंगा। भारतीय संस्कृति, भारतीय मर्यादा, भारतीय उत्सव, ये सब एक दिन में नहीं नहीं दोहराऊंगा। भारतीय संस्कृति, भारतीय मर्यादा, भारतीय उत्सव, ये सब एक दिन में नहीं बने। हजारों वर्ष लग गए। भारत की अमरता, इसका सनातन धर्म, पवित्र संस्कृति, धर्मशात्व, महान संत, भक्ति भाव, ज्ञान और कर्म की प्रधानता, ये सब इतना विशाल है कि हम दुनिया के
सामने सीना तानकर अपने देश की संस्कृक्ति पर गर्व कर सकते हैं। भारतीय दर्शन, कर्मकाण्ड, उपासना, योग, व्रत, उत्सव, पवित्र नदियों, पर्वतों, लोक मान्यताओं का यह क्षेत्र बहुत बड़ा है। गंगाजी, गीता, गाय माता, गायत्री मन्त्र हमारी पहचान हैं। इस पवित्र धरती पर भगवान् राम, श्रीकृष्ण, महावीर, बुद्ध, चाणक्य, शंकराचार्य, गुरु नानक, रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानंद जैसे महापुरुष हमें जागृत करने के लिए समय-समय पर आए। उनका उद्देश्य था कि हम अपने धर्म और संस्कृति को कायम रखें और भारत की मूल पहचान को नष्ट ना होने दें।
हमारे देश की संजीवनी शक्ति इसके कण-कण में फैली सनातन संस्कृति है। विश्व के मानचित्र पर भारत ईश्वर की कला का अनूठा उदाहरण है, जहां विरोधी धाराओं में भी भारतीयता की भावना के कारण सामंजस्य है।
भारतीय संस्कृति को सभी मानवीय गुणों का संगम है, यहाँ 'वसुधैव कुटुम्बकम्' की कल्याणकारी भावना है। जहाँ 'सत्यमेव जयते' का अडिग विश्वास और संकल्प है, वहीं 'अहिंसा परमोधर्मः' को धरती की धुरी मानकर सभी प्राणियों की रक्षा का आह्वान है और संसार को सुखी देखने की कामना है। हमारे देश की जलवायु, भौगोलिक संरचना, प्राकृतिक संपदा के साथ लोगों का रहन-सहन, खानपान, आचार-विचार इतना सहज, सरल, शालीन और सद्गुणों से पूर्ण है कि अपने आप अच्छाइयों सामने आती रहती हैं। इन्हीं सब कारणों में भारतीय संस्कृति संसार में सदा से सराही जाती है।
आज हिन्दू नव वर्ष है तो मैं आपको यह कहना चाहूंगा कि हिन्दू केवल एक धर्म नहीं है, यह एक विचारधारा भी है। यह सबसे ज्यादा सहनशील है। इसमें हिंसा का कोई स्थान नहीं है। इसने सबको अपनाया है। सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः', इसका आधार है। इसने तलवार के दम पर नहीं बल्कि अपने ज्ञान के दम पर खुद को आगे बढ़ाया है। यह लचीला है, इसमें कट्टरता नहीं है, हिन्दू धर्म केवल इस लोक को नहीं बल्कि परलोक को भी मानता है। यह आत्म-अनुशासन पर बल देता है। यहाँ असहमति और विरोध नहीं है, संकीर्णता नहीं है बल्कि संवाद और सहनशीलता है।
हमारा धर्म, दर्शन, साहित्य, इतिहास और कला आदि अतीत से ही आकर्षण का केंद्र है। भारत के महान नेता पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय थी अटल बिहारी वाजपेयी के शब्दों में, 'हिन्दू समाज अमृत का पुत्र है, मृत्युंजयी है और हर पराजय को विजय में बदलने की शक्ति रखता है।"
आवश्यकता केवल इस बात की है कि हम अपने इन सनातन दायित्वों को लेकर सजग रहें। अपनी संस्कृति को नष्ट न होने दें। इस समय देश की एक राष्ट्रीय सांस्कृतिक नीति' तैयार करने की जरूरत है। किताबी ज्ञान तो स्कूलों में अच्छी तरह दिया जा रहा है लेकिन अब नई पीढ़ी को 'सांस्कृतिक रूप से साक्षर बनाने की जरूरत है। यह काम केवल मरकार का नहीं है, यह हम सब भारतवासियों का है क्योंकि सांस्कृतिक परम्पराएँ किताब पढ़कर नहीं सीखी जाती। इसकी शुरुआत परिवार और समाज से ही होगी। अपने बच्चों को अच्छे संस्कार दें, उनको अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक परम्पराओं को अपनाना सिखाएं।
हमारी संस्कृति के सूत्रधारों, ऋषि-मुनियों और मनीषी विद्वानों ने अपनी कठोर तपस्या और साधना से जांच-परखकर जो धर्म और ज्ञान की विरासत हमें सौंपी है, हमारे लिए जो विधि- विधान बनाये हैं, जो पवित्र परम्पराएँ स्थापित की हैं, हमें उनका पालन करना चाहिए और भावी पीड़ी को यह धरोहर सौंपनी चाहिए।
चिंता की बात यह है कि वेस्टर्न कल्वर के जाल और मोबाइल लैपटॉप के 'स्क्रीन' के भवर उलझी आज की नयी पीडी हमारी भारतीय परम्पराओं को भूलती जा रही है। सुबह उठकर मोबाइल को प्रणाम करके उसके दिन की शुरुआत होती है, किसी मोबाइल एप से खाना आ जाता है, क्लास या जॉब का काम ऑनलाइन हो जाता है, कोई सामान खत्म हो गया तो ऑनलाइन एप है, ऐसे ही स्क्रीन के सम्पर्क में रहकर दिन से रात हो जाती है। जिस पीडी का बाहरी दुनिया से संपर्क ही नहीं है, उसको हमें अपनी संस्कृति से जोड़ना है। यह सबसे बड़ी चुनौती है। आज के इस उत्सव से नयी पीड़ी को अपनी संस्कृति के महत्त्व का पता चल सकेगा। इस तरह के आयोजन हमें समय-समय पर करने चाहिए।
भारतीय संस्कृति हमेशा मर्यादा से बंधी रही है और हमें उस मर्यादा को नहीं भूलना है। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम से लेकर आधुनिक विचारकों तक सभी ने, सबके कल्याण की मंगलकामना की है। भारतवर्ष अब ऐतिहासिक मोड़ पर खड़ा है और देश के यशस्वी प्रधानमंत्री थी नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में महाशक्ति बनने के कगार पर है।
आदरणीय मोदीजी के शब्दों में, भारत का राष्ट्रवाद न तो संकीर्ण है, न स्वार्थी है और न ही आक्रामक है, यह सत्यम, शिवम, सुन्दरम के मूल्यों से प्रेरित है। इसलिए, आइये, आज इस नव वर्ष के पावन अवसर पर हम सब यह संकल्प लें कि भारत के सांस्कृतिक मूल्यों को न केवल हम अपने जीवन में धारण करेंगे बल्कि उनकी हर कीमत पर रखा भी करेंगे।