होलाष्टक की अवधि हिंदू पंचांग में एक विशेष स्थान रखती है। यह वह समय होता है जब शुभ कार्यों से बचने की सलाह दी जाती है। होलाष्टक का आरंभ हर साल फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से होता है और इसका समापन पूर्णिमा तिथि पर होता है। इस वर्ष होलाष्टक 7 मार्च 2025 से शुरू हो रहा है और 13 मार्च को इसका समापन होगा। वहीं, 14 मार्च को होली का त्योहार मनाया जाएगा।
होलाष्टक के दौरान अनुष्ठान और शुभ कार्यों से परहेज
होलाष्टक की अवधि के दौरान कुछ विशेष कार्यों से बचने की सलाह दी जाती है। इस समय में विवाह, मुंडन, नामकरण संस्कार, और गृह प्रवेश जैसे शुभ कार्य न करने चाहिए। इसके अलावा, बाल और नाखून काटने से भी बचना चाहिए, क्योंकि इसे अशुभ माना जाता है।
होलाष्टक के दौरान धर्म और आध्यात्मिक कार्यों का महत्व
इस समय को आध्यात्मिकता में वृद्धि करने के लिए उपयुक्त माना जाता है। होलाष्टक के दौरान ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए और धार्मिक कार्यों में अधिक से अधिक समय देना चाहिए। विशेष रूप से भगवान विष्णु की पूजा, भगवत गीता का पाठ और हवन करना पुण्यकारी माना जाता है।
दान और स्वच्छता के महत्व पर ध्यान दें
होलाष्टक के दौरान जरूरतमंदों को पुराने कपड़े और चप्पलें दान देने की परंपरा है, जो पुण्य का कारण बनती है। इसके साथ ही, इस समय घर और मंदिर की नियमित सफाई भी महत्वपूर्ण मानी जाती है।
अशुद्ध आहार से बचें
होलाष्टक के दौरान तामसिक भोजन जैसे लहसुन, प्याज, अंडा, मांस आदि का सेवन न करने की सलाह दी जाती है। इस समय में शाकाहारी आहार और शुद्ध आहार का सेवन करना चाहिए।
विवाद और अनावश्यक झगड़ों से दूर रहें
इस अवधि के दौरान मानसिक शांति बनाए रखना और विवादों से बचना जरूरी होता है। यह समय ध्यान और साधना के लिए सर्वोत्तम माना जाता है, इसलिए मानसिक संतुलन बनाए रखें।
इस प्रकार, होलाष्टक की यह अवधि हमें अपनी जीवनशैली को शुद्ध करने और आध्यात्मिक उन्नति की दिशा में कदम बढ़ाने का अवसर देती है।