विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की नीतियों पर टिप्पणी करते हुए कहा कि, 'नेहरू विकास मॉडल' से ही 'नेहरू विदेश नीति' की नींव रखी गई। उन्होंने कहा कि जिस तरह देश में इस मॉडल के परिणामों को सुधारने की कोशिश हो रही है, उसी तरह विदेशों में भी इसकी नीतियों को बेहतर बनाने की आवश्यकता है।
जयशंकर ने यह बातें नीति आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया की पुस्तक 'द नेहरू डेवलपमेंट मॉडल' के विमोचन के दौरान कहीं। उन्होंने कहा कि यह मॉडल देश की राजनीति, नौकरशाही, न्यायपालिका, मीडिया और शैक्षणिक प्रणाली सहित सभी क्षेत्रों को प्रभावित करता है। उन्होंने इसे सुधारने की दिशा में 2014 के बाद किए गए प्रयासों का जिक्र किया।
रूस और चीन की आर्थिक धारणाएं
रूस और चीन की आर्थिक नीतियों का जिक्र करते हुए जयशंकर ने कहा कि आज ये दोनों देश उस दौर की आर्थिक धारणाओं को खारिज कर चुके हैं, जिन्हें कभी नेहरू मॉडल के जरिए बढ़ावा दिया गया था। इसके बावजूद, भारत के कुछ प्रभावशाली वर्ग अभी भी उन धारणाओं को सही मानते हैं। उन्होंने आगे कहा, '2014 के बाद, सुधार की दिशा में ठोस कदम उठाए गए हैं, लेकिन यह काम अभी भी चुनौतीपूर्ण बना हुआ है।'
विदेश नीति में बदलाव की जरूरत
जयशंकर ने अपने संबोधन में स्पष्ट किया कि 'नेहरू विकास मॉडल' ने 'नेहरू विदेश नीति' को जन्म दिया। उन्होंने कहा कि विदेश नीति और विकास मॉडल एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं और इन्हें अलग करके नहीं देखा जा सकता। उन्होंने यह भी कहा कि अब समय आ गया है कि विदेश नीति में उन सुधारों को लागू किया जाए जो देश के विकास को नई दिशा दें।
1947 के ऐतिहासिक बयान का जिक्र
अपने भाषण की शुरुआत में, जयशंकर ने 1947 में एक अमेरिकी नीति निर्धारक जॉन फोस्टर डलेस के बयान का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि डलेस ने उस समय की भारतीय सरकार के बारे में कई बातें कही थीं, जो अमेरिकी नीति निर्माताओं के लिए दशकों तक सच मानी गईं। जयशंकर ने स्वीकार किया कि पनगढ़िया की पुस्तक ने उन्हें इन मुद्दों को समझने में मदद की।
जयशंकर ने अपनी बात खत्म करते हुए कहा कि नेहरू मॉडल के परिणाम आज भी भारतीय समाज के कई हिस्सों में देखे जा सकते हैं। इसे सुधारने के लिए घरेलू और विदेशी दोनों मोर्चों पर ठोस कदम उठाने की जरूरत है।