महाकुंभ-2025 को लेकर सभी अखाड़े उर्दू, अरबी-फारसी भाषा के प्रयोग से परहेज करेंगे। श्री निरंजनी अखाड़े ने अपने महामंडलेश्वर, महंतों समेत सभी संतों को बातचीत में हिंदी और संस्कृत भाषा का प्रयोग करने का निर्देश दिया है। आवश्यकता पड़ने पर अंग्रेजी बोल सकते हैं, लेकिन उर्दू, अरबी-फारसी का प्रयोग न करें।
महाकुंभ में आमंत्रित करने के लिए निमंत्रण कार्ड में 'शाही स्नान' के स्थान पर 'राजसी स्नान' तथा 'पेशवाई' के स्थान पर 'छावनी प्रवेश' लिखा जाये। वहीं, अन्य अखाड़े भी शाही स्नान और पेशवाई शब्दों का इस्तेमाल बंद करने पर जोर दे रहे हैं।
अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष (अध्यक्ष श्री निरंजनी अखाड़ा एवं मां मनसा देवी) श्रीमहंत रवींद्र पुरी ने स्पष्ट किया है कि गुलामी के दौर की सभी बुराइयां सनातन धर्म से जुड़ी हैं। वह बोल-चाल में भी शामिल है। अब समय आ गया है कि इन्हें धीरे-धीरे खत्म किया जाए।
इसके लिए निरंजनी अखाड़े में उर्दू, फारसी और अरबी भाषाओं के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। देववाणी संस्कृत अथवा हिन्दी का प्रयोग अधिक करना चाहिए। जो महामंडलेश्वर और उनके अनुयायी विदेश में हैं वे अंग्रेजी भाषा (इंग्लिश) का प्रयोग कर सकते हैं।
निमंत्रण कार्डों, धार्मिक अनुष्ठानों के बैनरों, पोस्टरों में उर्दू शब्दों का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए। वहीं, जूना अखाड़े के मुख्य संरक्षक महंत हरि गिरि ने कहा है कि, अखाड़ों की परंपरा कई सदी पुरानी है। बदलाव करने से पहले हमें इसकी तह तक जाना होगा।
शाही स्नान और पेशवाई शब्द के संबंध में भाषाविदों से जानकारी ली जाएगी। फिर इसे अखाड़ा परिषद की बैठक में रखा जाएगा। 13 अखाड़ों के प्रतिनिधि एक साथ बैठक कर अंतिम निर्णय लेंगे। श्री निर्मोही अनी अखाड़े के अध्यक्ष महंत राजेंद्र दास ने भी उर्दू, अरबी-फारसी शब्दों का प्रयोग बंद करने पर जोर दिया है।