बिहार की स्वर कोकिला और छठ गीतों की पर्याय शारदा सिन्हा का मंगलवार को दिल्ली एम्स में निधन हो गया। 72 वर्ष की उम्र में उन्होंने रात 9:20 बजे अंतिम सांस ली। शारदा सिन्हा पिछले 15 दिनों से एम्स में भर्ती थीं, जहां उनका इलाज चल रहा था।
कुछ समय पहले ही उनकी तबीयत बिगड़ने पर उन्हें आईसीयू से प्राइवेट वार्ड में शिफ्ट किया गया था, लेकिन उनकी हालत फिर से गंभीर हो गई थी। उनके बेटे अंशुमन सिन्हा ने जानकारी दी थी कि वह बोलने में भी असमर्थ हो रही थीं।
अंतिम क्षणों में वेंटिलेटर पर थीं शारदा सिन्हा
हालात बिगड़ने के बाद शारदा सिन्हा को वेंटिलेटर सपोर्ट पर रखा गया था। उनकी हालत में सुधार की उम्मीदें थीं, लेकिन डॉक्टरों की तमाम कोशिशों के बाद भी उन्हें बचाया नहीं जा सका। अंशुमन सिन्हा ने बताया कि उनकी मां लोगों को पहचान पा रही थीं, लेकिन बातचीत में उन्हें परेशानी हो रही थी।
प्रधानमंत्री ने दी श्रद्धांजलि
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी शारदा सिन्हा के निधन पर शोक व्यक्त किया। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर पोस्ट करते हुए लिखा, “प्रसिद्ध लोक गायिका शारदा सिन्हा जी के निधन से अत्यंत दुख हुआ है। उनके गाए मैथिली और भोजपुरी लोकगीतों की लोकप्रियता दशकों से बरकरार रही है। आस्था के महापर्व छठ के उनके गीतों की गूंज हमेशा सुनाई देती रहेगी। उनका जाना संगीत जगत के लिए अपूरणीय क्षति है। मेरी संवेदनाएं उनके परिवार और प्रशंसकों के साथ हैं। ओम शांति!”
बेगूसराय के सिहमा गांव से शुरू हुआ संगीत सफर
शारदा सिन्हा का संगीत सफर बिहार के बेगूसराय जिले के सिहमा गांव से शुरू हुआ, जहां उनका ससुराल था। वहीं उन्होंने मैथिली लोकगीतों में अपनी रुचि बढ़ाई, जिसने उनके करियर को दिशा दी। शारदा सिन्हा ने मैथिली के अलावा भोजपुरी, मगही और हिंदी में भी कई प्रसिद्ध गीत गाए।
इलाहाबाद के बसंत महोत्सव में अपने गायन से उन्होंने सबका दिल जीता था और प्रयाग संगीत समिति ने उनकी प्रतिभा को मंच देने का अवसर दिया, जिससे उनकी पहचान और बढ़ी।