भारतीय सेना के ये वो बलिदानी हैं जिन्होंने कश्मीर को अपने रक्त से सींचा है और उसको भारत का मुकुट बनाये हुए हैं... इन्होंने ही सिक्किम को भारत में फिर से वापस मिलाया था और आज ही का वो दिन है जब गोवा को इन्हीं पराक्रमियों ने अपनी ताकत के दम पर फिर से भारत में मिला दिया था.
किसी जगह चर्चा भी इस महान दिवस की न होने का मतलब यकीनन संवेदनहीनता व अपने गौरवशाली इतिहास के प्रति उदासीनता ही कहा जायेगा. सुदर्शन न्यूज आपको राष्ट्र का असल गौरवशाली इतिहास बताने हेतु कृत संकल्पित है, जिस कड़ी में आज जानिए कि कैसे गोवा में सेना ने अभियान चलाते हुए उसको पुनः भारत मे मिला दिया था.
आज हम आपको बताएंगे गोवा का इतिहास, कैसे गोवा भारत का हिस्सा बना, और गोवा को भारत का हिस्सा बनाने के लिए क्या क्या मिन्नतें करनी पड़ी थी. बता दें कि 18 दिसंबर 1961 से पहले गोवा भारत का हिस्सा नहीं था और इसपर पुर्तगालियों का कब्जा था.कहते है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू ने अपनी विचारधारा गांधीवादी अंदाज़ में पुर्तगालियों से लाख मिन्नत की. लेकिन पुर्तगालि गोवा छोड़ने के लिए तैयार नहीं हुए. फिर जो हुआ, वो इतिहास है।वो दिन कोई भूल नहीं सकता. किस तरह भारतीय सेना ने अपनी बहादुरी दिखाई. वो दिन 18 दिसंबर साल 1961 का था.
भारतीय सेना ने गोवा बॉर्डर में जैसे ही इंट्री की उसके तुरंत बाद शुरू हुई दोनों तरफ से फायरिंग और बमबारी. भारतीय सेना के सामने 6000 पुर्तगाली टिक नहीं पाए. भारतीय सेना ने जमीनी, समुद्री और हवाई हमले किये. पुर्तगाली बंकरों को तबाह कर दिया गया. भारतीय वायुसेना ने डाबोलिम हवाई पट्टी पर बमबारी की. ऐसा नहीं भारत ने गोवा पर अपना अधिकार जमाने के लिए एकाएक हमला कर दिया. भारत इसके लिए पहले कूटनीति तौर पर कोशिश की, लेकिन उसमें उसको सफलता नहीं मिली. पुर्तगाली किसी भी कीमत पर गोवा छोडऩे को तैयार नहीं थे.
इसी बीच साल 1961 में दिल्ली में 10 हजार लोगों ने प्रदर्शन किया और पुर्तगाल से भारत छोड़ने की मांग की. इसी दौरान 24 नवंबर 1961 को पुर्तगाली सेना ने भारतीय नौसैनिक जहाज पर हमला बोल दिया, जिसमें दो भारतीय जवान बलिदान हो गए. जिसके बाद यह कदम उठाया गया. भारत के इस कदम से पुर्तगाली सकते में आ गए. उनको उम्मीद नहीं थी कि शांतिप्रिय भारत उनपर हमला भी कर सकता है. लेकिन जब पुर्तगाली प्यार और समझाने से नहीं माने तो भारत को उग्र रूप धरना पड़ा. भारत की बमबारी के बीच दो पुर्तगाली विमान भागने में कामयाब रहे. लेकिन सिर्फ दो विमान में सभी पुर्तगाली का आना नामुमकिन था.
परिणाम पुर्तगालियों को भारतीय सेना का सामना करना पड़ा. अपनी हार देखते हुए पुर्तगाली सैनिकों ने भारतीय सेना के सामने सरेंडर कर दिया. 36 घंटे की बमबारी को पुर्तगाली सह नहीं पाए और उनके गर्वनर जनरल वसालो इ सिल्वा ने भारतीय सेना प्रमुख पीएन थापर के सामने सरेंडर कर दिया. इस तरह से 19 दिसंबर को भारतीय सेना का ऑपरेशन विजय सफल हुआ और गोवा का भारत में विलय हो गया. उसी दिन गोवा दमन और दीव के साथ केंद्रशासित प्रदेश बना दिया गया. लेकिन 30 मई 1987 को गोवा को दमन और दीव से अलग कर दिया गया और पूर्ण राज्य का दर्जा दे दिया गया.
पुर्तगाल में आज भी एक कहावत है कि जिसने गोवा देख लिया उसे लिस्बन (पुर्तगाल की वर्तमान राजधानी) देखने की जरूरत नहीं है.ऑपरेशन विजय में 30 पुर्तगाली मारे गए थे, जबकि 22 भारतीय जवान बलिदान हुए थे. इस ऑपरेशन में 57 पुर्तगाली सैनिक जख्मी हुए थे, जबकि जख्मी भारतीय सैनिकों की संख्या 54 थी.
इस पूरे ऑपरेशन के दौरान भारत ने 4668 पुर्तगालियों को बंदी बनाया था. आज 18 दिसंबर के दिन भारत के उन सभी 22 बलिदानियों को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए सुदर्शन परिवार उनकी यशगाथा को सदा सदा के लिए अमर रखने का संकल्प लेता है जिनके चलते भारत की अखंडता कायम रही है और कश्मीर से ले कर गोवा और आगे भी हिंदमहासागर तक भारत एक है व अखण्ड है ..लेकिन प्रश्न ये है कि पराक्रम के इस गौरवशाली दिवस को राष्ट्रवादियों को बताया क्यों नही गया?