शिमला के उपनगर संजौली में अवैध मस्जिद से जुड़ा विवाद एक नई दिशा में बढ़ता दिखाई दे रहा है। देवभूमि संघर्ष समिति का दावा है कि जिस जमीन पर मस्जिद बनी है, वह वक्फ बोर्ड की नहीं बल्कि सरकार की संपत्ति है।
संजौली मस्जिद कमेटी ने अब तक निर्माण का नक्शा नगर निगम में जमा नहीं किया है। 2010 में जो नक्शा जमा किया गया था, उसे तत्कालीन आयुक्त ने अस्वीकार कर दिया था। इसके बाद कोई नया नक्शा पेश नहीं किया गया। इस स्थिति में, संपूर्ण मस्जिद को अवैध माना जा रहा है।
'रिकॉर्ड से छेड़छाड़ नहीं होगी बर्दाश्त'
स्थानीय निवासियों के वकील जगतपाल ने बताया कि वक्फ बोर्ड को मार्च तक न्यायालय में राजस्व रिकॉर्ड प्रस्तुत करना है। उन्होंने इस बात की आशंका जताई कि रिकॉर्ड में हेरफेर की जा सकती है। उनका कहना है कि राजस्व रिकॉर्ड में किसी भी प्रकार की छेड़छाड़ बर्दाश्त नहीं की जाएगी। वर्तमान रिकॉर्ड के अनुसार, जमीन का मालिकाना हक सरकार के पास है।
मस्जिद के निर्माण को लेकर कोर्ट में सुनवाई
जगतपाल ने नगर निगम के आयुक्त पर उच्च न्यायालय के आदेश की अवहेलना का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि यदि मामले का समाधान जल्द नहीं होता है, तो वह इसे हाईकोर्ट में ले जाने का निर्णय करेंगे।
मस्जिद विवाद की पृष्ठभूमि
संजौली में अवैध निर्माण को लेकर स्थानीय लोग और हिंदू संगठनों ने विरोध प्रदर्शन किया था। 11 सितंबर को मस्जिद कमेटी ने विवादित हिस्से को खुद हटाने की पेशकश की थी। इसके बाद, नगर निगम ने 5 अक्टूबर को अवैध मंजिलों को तोड़ने का आदेश दिया।
15 अक्टूबर को मस्जिद की पांचवीं मंजिल को तोड़ने की प्रक्रिया शुरू हुई। 21 अक्टूबर को हाईकोर्ट ने मस्जिद की वैधता पर आठ सप्ताह के भीतर निर्णय लेने का निर्देश दिया।
न्यायालय के आदेश के बाद अगला कदम
देवभूमि संघर्ष समिति के सचिव विजेंद्र पाल सिंह ने कहा कि समिति का आंदोलन शांतिपूर्ण था और अब न्यायालय के निर्णय का इंतजार है। उनका कहना है कि उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड जैसे राज्यों में सरकारी जमीन पर अवैध निर्माण तुरंत हटाए जाते हैं।
विजेंद्र पाल ने कहा कि 15 मार्च के बाद न्यायालय के आदेश के अनुसार आगे की रणनीति बनाई जाएगी। उनका आरोप है कि मस्जिद सरकारी जमीन पर अवैध रूप से बनी है, जिसे दस्तावेज भी प्रमाणित करते हैं।