आज 29 जनवरी को प्रयागराज में मौनी अमावस्या के अवसर पर दूसरा अमृत स्नान चल रहा है। इस खास दिन के ठीक पहले रात के करीब एक बजे संगम के किनारे एक भीषण भगदड़ मच गई। इस हादसे में लगभग 2 दर्जन लोगों की जान चली गई और कई लोग गंभीर रूप से घायल हुए।
घटनास्थल से आई तस्वीरें दिल दहला देने वाली थीं, जिनमें कपड़े, बैग, जूते-चप्पल इधर-उधर पड़े हुए थे और अस्पतालों में मृतकों के शव फर्श पर पड़े हुए थे। इस हादसे ने 71 साल पहले हुए महाकुंभ के उस दर्दनाक हादसे की याद ताजा कर दी, जिसमें 800 से अधिक लोग मारे गए थे।
1954 का महाकुंभ और वो दर्दनाक हादसा
आजाद भारत का पहला महाकुंभ 1954 में इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में आयोजित हुआ था। उस साल, 3 फरवरी को मौनी अमावस्या का पर्व था। शाही स्नान के लिए लाखों लोग संगम तट पर जुटे थे और उस दिन तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू भी वहां मौजूद थे। कहा जाता है कि नेहरू को देखने के लिए लगी भारी भीड़ ने भगदड़ का कारण बनी, लेकिन उस समय के समाचार पत्रों की रिपोर्ट्स कुछ और ही कहानी बयां करती हैं।
1954 के महाकुंभ के शाही स्नान के दिन अखाड़ों के जुलूस के दौरान बड़ी संख्या में लोग गंगा किनारे खड़े थे। धीरे-धीरे भीड़ बढ़ने लगी और जुलूस के कारण आगे बढ़ने का रास्ता नहीं मिल रहा था। जब लोगों ने धक्का-मुक्की शुरू की, तो वे नागा साधुओं के जुलूस के बीच से निकलने की कोशिश करने लगे। रिपोर्ट्स के अनुसार, साधुओं ने इस दौरान अपने त्रिशूल श्रद्धालुओं की ओर मोड़ दिए, जिससे लोग आगे नहीं बढ़ पाए और भगदड़ मच गई। इस दौरान कुछ लोग दबकर मर गए, जबकि कई लोग गंगा में गिरकर अपनी जान गंवा बैठे।
नेहरू को देखने के लिए मची भगदड़
कुछ रिपोर्ट्स यह भी कहती हैं कि उस दिन करीब 10 बजे, प्रधानमंत्री नेहरू और राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद की कार त्रिवेणी रोड से निकली थी। जब लोगों को यह खबर मिली, तो वे प्रधानमंत्री को देखने के लिए बैरीकेड्स तोड़कर आगे बढ़ने लगे। इसी दौरान नागा साधुओं का जुलूस भी निकल रहा था। भीड़ इतनी अधिक हो गई कि लोगों को बाहर निकलने का रास्ता नहीं मिला। इसके परिणामस्वरूप अफरा-तफरी मच गई और भगदड़ ने भारी तबाही मचाई। इस हादसे में 800 से 1000 लोगों के मारे जाने का अनुमान था, जबकि 2000 से अधिक लोग घायल हुए थे। कुछ दिनों बाद, बजट सत्र के दौरान पीएम नेहरू ने इस हादसे पर शोक भी व्यक्त किया था।