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Basoda 2025: शीतला अष्टमी पर खाया जाता है बासी भोजन, जानें कैसे बसोडा पर्व शरीर की सफाई और मन की शांति के लिए है खास?

Sheetala Ashtami 2025: शीतला अष्टमी पर बसौड़ा पर्व मनाने के धार्मिक और सांस्कृतिक कारण क्या है? जानिए गर्मी से बचाव के लिए विशेष पूजा विधि का महत्व।

Ravi Rohan
  • Mar 21 2025 6:56PM

हिंदू पंचांग के अनुसार, हर साल चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को शीतला अष्टमी का पर्व मनाया जाता है, जिसे बसौड़ा\बसोडा भी कहा जाता है। इस वर्ष 22 मार्च 2025 को शीतला अष्टमी का पर्व मनाया जाएगा। इस दिन विशेष रूप से माता शीतला की पूजा की जाती है, जिन्हें स्वास्थ्य और सफाई की देवी माना जाता है। माना जाता है कि देवी शीतला, माता पार्वती का रूप हैं और वे चेचक, खसरा जैसे त्वचा रोगों को दूर करने वाली देवी मानी जाती हैं।

बसोडा की तिथि और समय

तिथि: 22 मार्च 2025, शनिवार
अष्टमी तिथि प्रारंभ: 22 मार्च 2025, सुबह 04:23 बजे
अष्टमी तिथि समाप्ति: 23 मार्च 2025, सुबह 05:23 बजे

माता शीतला की पूजा का महत्व

बसौड़ा का पर्व होली के आठवें दिन मनाया जाता है। इसे विशेष रूप से माता शीतला की पूजा के रूप में मनाया जाता है। कहा जाता है कि जैसे माता काली असुरों का वध करती हैं, वैसे ही माता शीतला भी रोग और कष्ट रूपी राक्षसों का अंत करती हैं। यह पर्व सर्दी के मौसम के अंत और गर्मी के आगमन का प्रतीक होता है। गर्मी के मौसम में त्वचा संबंधी रोगों का खतरा बढ़ जाता है, इसलिए शीतला माता की पूजा करके लोग स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिए प्रार्थना करते हैं।

माता शीतला को शीतलता की देवी माना जाता है, जो शरीर और मन को गर्मी से राहत देती हैं। उनका रूप बहुत ही सौम्य होता है और वे गधे की सवारी करती हैं। उनके हाथों में कलश, सूप, झाड़ू और नीम के पत्ते होते हैं। उनके पूजन से चेचक, खसरा, फोड़े-फुंसी, महामारी और गर्मी से जुड़े अन्य रोगों से बचाव होता है।

बसोडा पर बासी भोजन का महत्व

शीतला अष्टमी का पर्व गर्मियों के आगमन के दौरान मनाया जाता है। सर्दी के मौसम का अंत और गर्मी के मौसम का प्रारंभ बीमारियों के खतरे को बढ़ा देता है। इस दिन बासी भोजन करना शुभ माना जाता है क्योंकि यह ठंडी तासीर वाली चीजों को खाने का अवसर होता है। कहा जाता है कि माता शीतला को बासी भोजन पसंद है, इसलिए इस दिन उन्हें बासी भोजन का भोग अर्पित किया जाता है, जिसे सप्तमी तिथि को तैयार किया जाता है।

शीतला सप्तमी के दिन शाम के समय घरों में विभिन्न पारंपरिक व्यंजन जैसे पूरी, गुड़, मीठे चावल, बेसन की रोटी, कढ़ी, बाजरे की रोटी आदि बनाए जाते हैं। शीतला अष्टमी के दिन चूल्हा नहीं जलाया जाता और केवल बासी भोजन का सेवन किया जाता है। इसके पीछे पौराणिक मान्यता है कि ऊष्मा या गर्मी से त्वचा रोग होते हैं, इसीलिए इस दिन बासी और ठंडी तासीर वाली चीजें खाई जाती हैं।

शीतला अष्टमी (बसौड़ा) का पर्व एक महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार है, जो विशेष रूप से स्वास्थ्य, सफाई और गर्मी से बचाव के लिए मनाया जाता है। इस दिन की पूजा और बासी भोजन का महत्व शीतलता और रोगों से सुरक्षा प्रदान करने से जुड़ा हुआ है।

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