राज्यसभा में समाजवादी पार्टी (सपा) के सांसद रामजीलाल सुमन ने शनिवार (22 मार्च) को एक विवादास्पद बयान दिया, जिसमें उन्होंने राणा सांगा को गद्दार और हिंदुओं को उनकी औलाद करार दिया। इस बयान के बाद से देशभर में राजनीति गरमा गई है। भाजपा सांसद राजकुमार चाहर ने सुमन के बयान की कड़ी आलोचना करते हुए इसे तुष्टिकरण की हद और राजपूत समाज का अपमान बताया। इसके विरोध में शमसाबाद में सुमन का पुतला फूंका गया और अखिल भारत हिंदू महासभा ने उनके खिलाफ तहरीर देने की बात कही है।
सुमन का विवादास्पद वक्तव्य
सुमन ने राज्यसभा में गृह मंत्रालय के कार्यों पर चर्चा करते हुए भाजपा पर आरोप लगाया कि वह मुस्लिमों को बाबर का अनुयायी बताते हैं, जबकि भारतीय मुस्लिम बाबर को आदर्श नहीं मानते। इसके बाद उन्होंने कहा कि राणा सांगा ने बाबर को इब्राहिम लोदी से युद्ध जीतने के लिए बुलाया था, और यह बात देश के सामने स्पष्ट होनी चाहिए। उनका यह बयान संसद में हंगामे का कारण बना। उपसभापति हरिवंश ने सुमन को टोकते हुए संसदीय शिष्टाचार का पालन करने को कहा।
सुमन के बयान पर देशभर में प्रतिक्रिया
रामजीलाल सुमन के इस बयान पर देशभर से विरोध की आवाजें उठने लगीं। पूर्व केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान ने सपा से इस बयान के लिए माफी मांगने की मांग की। उधर, शमसाबाद में लोगों ने सुमन के पुतले का दहन किया और उनके खिलाफ नारेबाजी की। इसके अलावा अखिल भारत हिंदू महासभा ने इस मामले में सुमन के खिलाफ पुलिस में तहरीर देने की घोषणा की है।

राणा सांगा का ऐतिहासिक योगदान
सुमन का बयान राणा सांगा के ऐतिहासिक योगदान को लेकर सवाल उठाता है। वहीं ऐतिहासिक पहलुओं पर ध्यान दें तो... राणा सांगा 1508 में मेवाड़ के शासक बने थे, उन्होंने अपने जीवन में 100 से अधिक युद्ध लड़े थे। उनकी वीरता और संघर्ष ने उन्हें हिंदूपत की उपाधि दिलाई। 1517 और 1519 में उन्होंने दिल्ली के सुलतान इब्राहीम लोदी को हराया और उनके राज्य को मजबूत किया।
खानवा युद्ध में राणा सांगा की वीरता
राणा सांगा और बाबर के बीच पहली बार 1527 में बयाना में युद्ध हुआ था, जिसमें बाबर को हार का सामना करना पड़ा था। बाबर ने अपनी आत्मकथा 'बाबरनामा' में इस युद्ध का उल्लेख किया है। इसके बाद 16 मार्च, 1527 को खानवा में राणा सांगा और बाबर के बीच एक निर्णायक युद्ध हुआ। इस युद्ध में बाबर की तोपों और बंदूकों के मुकाबले राणा सांगा की सेना ने तलवारों से संघर्ष किया। हालांकि, राणा सांगा एक तीर लगने से बेहोश हो गए, जिसके बाद उनकी सेना का मनोबल टूट गया और बाबर की सेना ने विजय प्राप्त की।

बाबर को भारत बुलाने के संदर्भ में ऐतिहासिक दृष्टिकोण
इतिहासकारों का कहना है कि बाबर को भारत आने का निमंत्रण पंजाब के गर्वनर दौलत खान और इब्राहीम लोदी के चाचा आलम खान ने दिया था, जो दिल्ली की गद्दी पर कब्जा करना चाहते थे। राणा सांगा के बारे में यह माना जाता है कि उन्होंने बाबर को भारत बुलाने का कोई प्रयास नहीं किया था। डॉ. मोहनलाल गुप्ता ने अपनी पुस्तक में इस बात का खंडन किया है।
रामजीलाल सुमन का विवादास्पद बयान इतिहास और राजनीति की जटिलता को एक बार फिर से सामने लाया है। राणा सांगा की वीरता और बाबर के खिलाफ संघर्ष को लेकर देशभर में अब तक विचार और चर्चा हो रही है। यह मामला न केवल इतिहास को लेकर असहमतियों का प्रतीक है, बल्कि वर्तमान राजनीति में भी नई बहसों को जन्म दे रहा है।