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Supreme Court Verdict: 'चाइल्ड पोर्नोग्राफी देखना या डाउनलोड करना अपराध...' सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला

'चाइल्ड पोर्नोग्राफी देखना या डाउनलोड करना अपराध...' सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला

Rashmi Singh
  • Sep 23 2024 12:05PM

सुप्रीम कोर्ट ने बच्चों से जुड़ी पोर्नोग्राफी कंटेंट मामले में बड़ा फैसला सुनाया है। अदालत ने कहा कि, 'इस तरह का कंटेंट देखना, प्रकाशित और  डाउनलोड करना अपराध है. फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाई कोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया है।' 

बता दें कि, सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने इस मामले की सुनवाई की। कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा कि, वह चाइल्ड पोर्नोग्राफी की जगह 'बाल यौन शोषण और दुर्व्यवहार सामग्री' शब्द का इस्तेमाल करे।

जस्टिस जेबी पारदीवाला ने सर्व सम्मत फैसले में मद्रास हाईकोर्ट के फैसले के बारे में कहा कि, आपने आदेश में गलती की है। इसलिए हम हाईकोर्ट के आदेश को रद्द करते हैं और मामले को वापस सेशन कोर्ट में भेजते हैं। दरअसल, मद्रास हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि, बच्चों से जुड़े पोर्नोग्राफी कंटेंट को केवल डाउनलोड करना या देखना पोक्सो अधिनियम या आईटी अधिनियम के तहत अपराध के दायरे में नहीं आता है।

 पॉक्सो एक्ट में बदलाव की दी सलाह

 सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को सलाह दी है कि वह POCSO एक्ट में संशोधन कर चाइल्ड पोर्नोग्राफी शब्द की जगह चाइल्ड सेक्सुअली अब्यूसिव एंड एक्सप्लॉइटेटिव मटीरियल (CSAEM) शब्द का इस्तेमाल करें। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच के सदस्य जस्टिस जेबी पारदीवाला ने 200 पन्नों का यह फैसला लिखा है। उन्होंने कहा कि, जब तक संसद से पोक्सो एक्ट में संशोधन को मंजूरी नहीं मिल जाती, तब तक अध्यादेश लाया जाना चाहिए।सुप्रीम कोर्ट ने देश भर की अदालतों को भी सलाह दी है कि वह अपने आदेशों में CSAEM ही लिखें। 

 बता दें कि, POCSO अधिनियम की धारा 15 के अनुसार बाल पोर्नोग्राफी रखना अपराध है। इसके लिए 5,000 रुपये के जुर्माने से लेकर 3 साल की सजा का प्रावधान है। धारा 15 की उपधारा 2 के अनुसार ऐसी सामग्री का प्रसारण करना अपराध है और उपधारा 3 के अनुसार ऐसी सामग्री का व्यावसायिक उपयोग करना अपराध है। मद्रास उच्च न्यायालय ने उपधारा 2 और 3 के आधार पर अभियुक्तों को राहत दी थी, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि उपधारा 1 अपने आप में पर्याप्त है। 

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