भारत का इतिहास ऐसे कई उदाहरणों से भरा पड़ा है, जिसमें देश के स्वतंत्रता सेनानियों ने अंग्रेजी शासन के खिलाफ अदम्य साहस, वीरता, धैर्य और दृढ़ संकल्प का प्रदर्शन किया. ऐसे कुछ ही स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को इतिहास की पाठ्यपुस्तकों में स्थान दिया गया, जबकि अधिकतर को उचित पहचान नहीं मिल सकी. इसके कारण मातृभूमि की रक्षा के लिए अपने प्राणों को न्योछावर करने वाले वीर स्वतंत्रता सेनानी भी गुमनामी में चले गए. आज यानी 20 नवंबर को RSS के अभिन्न सदस्य विद्वान श्याम बहादुर वर्मा जी की पुण्यतिथि पर सुदर्शन परिवार उन्हें बारंबार नमन करते हुए उनकी यशगाथा को सदा सदा के लिए जन जन तक पहुंचाने का संकल्प लेता है.
RSS के अभिन्न सदस्य विद्वान श्याम बहादुर वर्मा जी का जन्म 10 अप्रैल 1932 को उत्तर प्रदेश के बरेली में हुआ था. पिता का नाम लाल बहादुर वर्मा जी और माता का नाम विद्यावती था.पिता की मृत्यु के बाद उनकी मां विद्यावती ने बड़ी कठिन परिस्थितियों में भी न केवल परिवार को चलाया अपितु बच्चों को श्रेष्ठ संस्कार भी दिए. श्याम बहादुर जी साल 1946 में मात्र 14 वर्ष की आयु में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक बने और दो वर्ष बाद 1948 में संघ पर प्रतिबंध के विरोध में सत्याग्रह करके जेल गए. उन दिनों श्याम बहादुर वर्मा जी शाहजहांपुर में बी॰एससी॰ के छात्र थे. बी॰एससी॰ करने के बाद उन्होंने एम॰.एससी॰ में प्रवेश न लेकर एक वर्ष तक अपना पूरा समय अपने संघ कार्य में लगाया. फिर वे अपने गृह जनपद बरेली आ गए और वहीं रहते हुए उन्होंने साल 1952 में साहित्यरत्न और आयुर्वेदरत्न की परीक्षाएं उत्तीर्ण कीं.
श्याम बहादुर वर्मा जी हिन्दी के महान विद्वान थे. उन्होंने विवाह नहीं किया. पुस्तकें ही उनकी जीवन संगिनी थीं. तीन कमरों वाले फ्लैट में श्याम बहादुर जा अकेले रहते थे. उनके प्रत्येक कमरे में फर्श से लेकर छत तक पुस्तकें ही पुस्तकें नज़र आती थीं. उन्होंने हिन्दी साहित्य को कई शब्द कोश प्रदान किए दिल्ली विश्वविद्यालय से विजयेन्द्र स्नातक के मार्गदर्शन में उन्होंने हिन्दी काव्य में शक्तितत्व विषय पर शोध करके पीएच॰डी॰ की और डी॰ए॰वी॰ कॉलेज में प्राध्यापक हो गए. परन्तु अध्ययन का क्रम फिर भी न टूटा. गणित में विज्ञान स्नातकोत्तर से लेकर अंग्रेजी, संस्कृत, हिन्दी और प्राचीन भारतीय इतिहास जैसे अनेकानेक विषयों में उन्होंने एम॰ए॰ की परीक्षाएं न केवल उत्तीर्ण कीं अपितु प्रथम श्रेणी के अंक भी अर्जित किए. बौद्धिक साधना के साक्षात् स्वरूप थे.
साल 1953 में गणित से विज्ञान स्नातकोत्तर करके अल्मोड़ा जिले के नारायण विद्यालय में शिक्षक बन गए. परन्तु ईसाई मिशनरियों के मतान्तरण प्रयासों का विरोध करने के कारण अगले ही वर्ष हल्द्वानी आए और शिशु मंदिर प्रारम्भ किया. साल 1956 में मैनपुरी जिले के भोगांव कालेज में गणित के शिक्षक नियुक्त हुए. अध्यापन कार्य के साथ संघ कार्य में पूरी शक्ति लगाते हुए उन्होंने अंग्रेजी और संस्कृत भाषाओं में एम॰ए॰ की परीक्षाएं प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण कीं. 1963 में उनकी नियुक्ति बिजनौर जिले के रणजीत सिंह मेमोरियल डिग्री कालेज धामपुर में अंग्रेजी के प्राध्यापक के रूप में हुई. धामपुर में रहते हुए उन्होंने 20 वर्ष बाद हिन्दी विषय में एम॰ए॰ की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की. तदनन्तर वे उसी कॉलेज के हिन्दी विभाग में पहले प्राध्यापक और फिर विभागाध्यक्ष हुए.
संघकार्य और शिक्षक की दोहरी भूमिका का निर्वाह करते हुए उन्होंने 1967 में आगरा विश्वविद्यालय से प्राचीन भारतीय इतिहास और संस्कृति विषय में प्रथम श्रेणी के साथ एम॰ए॰ किया. मेरठ विश्वविद्यालय के लाजपतराय कालेज (साहिबाबाद) में हिन्दी के विभागाध्यक्ष के पद पर कुछ समय कार्य करके वे 1967 में दिल्ली आ गए और जीवन के शेष 42 वर्ष उन्होंने दिल्ली में ही बिताए दिल्ली आकर भी उनका विद्याध्ययन बराबर जारी रहा. दिल्ली विश्वविद्यालय से डॉ॰ विजयेन्द्र स्नातक के निर्देशन में उन्होंने हिन्दी काव्य में शक्तितत्व विषय पर शोध करके पीएच॰डी॰ की उपाधि अर्जित की.
20 नवंबर 2009 को नई दिल्ली स्थित उनके आवास पर 77 वर्ष की आयु में हृदयाघात (हार्ट अटैक) से उनका निधन हुआ. आज RSS के अभिन्न सदस्य विद्वान श्याम बहादुर वर्मा जी पुण्यतिथि पर सुदर्शन परिवार उन्हें बारंबार नमन करते हुए उनकी यशगाथा को सदा सदा के लिए जन जन तक पहुंचाने का संकल्प लेता है.