ये वो महान विभूति हैं जिन्होंने अपनी कर्मभूमि को उस पश्चिम बंगाल में बनाया था जो पहले तो वामपंथ का गढ़ बना और बाद में उसी पश्चिम बंगाल में विदेशी बंगलादेशी घुसपैठ का नंगा नाच दुनिया ने देखा. इन महान योद्धा ने विदेशी घुसपैठी अंग्रेजो को भगाने के लिए अपने जीवन का बलिदान कर दिया था लेकिन आज वही क्षेत्र अन्य घुसपैठियों से प्रभावित है.
यहां पर बात हो रही है क्रांतिकारी प्रफुल्ल चाकी जी की जिनकी आज जयंती है. आज ही के दिन जन्म लिया था महान खुदीराम बोस जी के उस महान साथी ने जो बहुत ही कम उम्र में बन गए थे दुनिया के बड़े हिस्से पर राज कर रहे अंग्रेजों के लिए मौत जैसे खौफ की वजह... लेकिन इसके बाद भी वामपंथी कलमकारों ने उनको विस्मृत करने का पूरा षड्यंत्र किया.
केवल एक ही परिवार की चाटुकारी और मात्र चरखे के गुण गाने में व्यस्त झोलाछाप और चाटुकारी से सनी कलम के मालिकों की दृष्टता के चलते भले ही कई लोग ये नहीं जानते हो की आज बलिदान दिवस है. एक महान वीर का लेकिन हम बता रहे हैं गौरव और शौर्य का वो महान इतिहास जिसको पढ़ कर आप को खुद के उन शौर्यवान हुतात्माओ के वंशज होने का गौरव होगा.
उन्हीं तमाम ज्ञात-अज्ञात महावीरों में से एक हैं प्रफुल्ल चाकी जी जिनका आज है जन्मदिवस अर्थात जयंती है.साल 1888 में आज ही के दिन 10 दिसंबर को जन्मे क्रांतिकारी प्रफुल्ल चाकी जी का नाम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में अत्यंत सम्मान के साथ लिया जाता है. प्रफुल्ल का जन्म उत्तरी बंगाल के बोगरा गांव (अब बांग्लादेश में स्थित) में हुआ था. जब प्रफुल्ल दो वर्ष के थे तभी उनके पिता जी का निधन हो गया. उनकी माता ने अत्यंत कठिनाई से प्रफुल्ल का पालन पोषण किया.
विद्यार्थी जीवन में ही प्रफुल्ल का परिचय स्वामी महेश्वरानंद द्वारा स्थापित गुप्त क्रांतिकारी संगठन से हुआ और उनके अंदर देश को स्वतंत्र कराने की भावना बलवती हो गई. इतिहासकार भास्कर मजुमदार के अनुसार प्रफुल्ल चाकी जी राष्ट्रवादियों के दमन के लिए बंगाल सरकार के कार्लाइस सर्कुलर के विरोध में चलाए गए छात्र आंदोलन की उपज थे. पूर्वी बंगाल में छात्र आंदोलन में उनके योगदान को देखते हुए क्रांतिकारी बारीद्र घोष जी उन्हें कोलकाता ले आए जहां उनका सम्पर्क क्रांतिकारियों की युगांतर पार्टी से हुआ.
उन्हें पहला महत्वपूर्ण काम अंग्रेज सेना अधिकारी सर जोसेफ बैंफलाइड फुलर को मारने का दिया गया पर यह योजना कुछ कारणों से सफल नहीं हुई. क्रांतिकारियों को अपमानित करने और उन्हें दण्ड देने के लिए कुख्यात कोलकाता के चीफ प्रेसिडेंसी मजिस्ट्रेट किंग्सफोर्ड को जब क्रांतिकारियों ने जान से मार डालने का निर्णय लिया तो यह कार्य प्रफुल्ल चाकी जी और खुदीराम बोस जी को सौंपा गया.
दोनों क्रांतिकारी इस उद्देश्य से बिहार के मुजफ्फरपुर पहुंचे जहां ब्रिटिश सरकार ने किंग्सफोर्ड के प्रति जनता के आक्रोश को भांप कर उसकी सुरक्षा की दृष्टि से उसे सेशन जज बनाकर भेज दिया था. दोनों ने किंग्सफोर्ड की गतिविधियों का बारीकी से अध्ययन किया एवं 30 अप्रैल 1908 को किंग्सफोर्ड पर उस समय बम फेंक दिया जब वह बग्घी पर सवार होकर यूरोपियन क्लब से बाहर निकल रहा था.
लेकिन जिस बग्घी पर बम फेंका गया था उस पर किंग्सफोर्ड नहीं था, बल्कि बग्घी पर दो यूरोपियन महिलाएं सवार थीं. वे दोनों इस हमले में मारी गई. दोनों क्रांतिकारी घटनास्थल से भाग निकले परन्तु मोकामा स्टेशन पर चाकी को पुलिस ने घेर लिया. इसके बाद आख़िर में प्रफुल्ल चाकी जी और खुदीराम जी पकड़े गए और बलिदान हो गए. आज उन महान योद्धा प्रफुल्ल चाकी जी की जयंती पर सुदर्शन परिवार का शत शत नमन और वंदन करते है.