विदेश मंत्री एस जयशंकर ने सोमवार को कच्चातिवु द्वीप विवाद को लेकर पूर्व सरकार पर निशाना साधा. एस जयशंकर ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आरोपों को दोहराते हुए कहा कि देश के पहले प्रधानमंत्री इस द्वीप को श्रीलंका को सौंपना चाहते थे. राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए विदेश मंत्री ने कच्चातिवु द्वीप विवाद का मु्द्दा उठाया और कहा कि तथ्य यह है कि उन्हें इसकी परवाह ही नहीं थी.
जनता के लिए जानना और निर्णय करना महत्वपूर्ण
विदेश मंत्री ने संबोधन में आगे कहा कि "आज, जनता के लिए जानना और लोगों के लिए निर्णय करना महत्वपूर्ण है, यह मुद्दा बहुत लंबे समय से जनता की नजरों से छिपा हुआ है." इतिहास की बात करते हुए एस जयशंकर ने कहा कि "हम 1958 और 1960 के बारे में बात कर रहे हैं. मामले के मुख्य लोग यह सुनिश्चित करना चाहते थे कि कम से कम हमें मछली पकड़ने का अधिकार मिलना चाहिए. लेकिन 1974 में द्वीप दे दिया गया और 1976 में मछली पकड़ने का अधिकार. इस मामले में सबसे बुनियादी (पहलू) तत्कालीन केंद्र सरकार और प्रधानमंत्रियों द्वारा भारत के क्षेत्र के बारे में दिखाई गई उदासीनता है."
उन्हें इसकी परवाह ही नहीं थी
एस जयशंकर ने आगे कहा कि "तथ्य यह है कि उन्हें इसकी परवाह ही नहीं थी." उन्होंने तत्कालीन प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू द्वारा लिखे गए एक अवलोकन के बारे में बात करते हुए कहा कि "मई 1961 में तत्कालीन प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू द्वारा दिए गए एक अवलोकन में उन्होंने लिखा था, मैं इस छोटे से द्वीप को बिल्कुल भी महत्व नहीं देता और मुझे इस पर अपना दावा छोड़ने में कोई हिचकिचाहट नहीं होगी. मुझे इस तरह के मामले अनिश्चित काल तक लंबित रहना और संसद में बार-बार उठाया जाना पसंद नहीं है."
एस जयशंकर ने कहा कि " तो, पंडित नेहरू के लिए, यह एक छोटा सा द्वीप था, इसका कोई महत्व नहीं था, उन्होंने इसे एक उपद्रव के रूप में देखा. उनके लिए, जितनी जल्दी आप इसे छोड़ देंगे, उतना बेहतर होगा. यही दृष्टिकोण इंदिरा गांधी के लिए भी जारी रहा."
भारत-श्रीलंका समुद्री समझौते "एक अपवित्र समझौता"
जानकारी के लिए बता दें कि पीएम मोदी ने कल यानी 31 मार्च को दिवंगत डीएमके सांसद एरा सेझियान के एक बयान को साझा किया था. इस बयान में तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार द्वारा हस्ताक्षरित भारत-श्रीलंका समुद्री समझौते पर गुस्सा व्यक्त किया गया था. इस समझौते के द्वारा ही भारत ने कच्चातिवु द्वीप पर अपना दावा छोड़ा था और इस समझौते को "एक अपवित्र समझौता" बताया गया था.