भारतभूमि एक ऐसी पावनभूमि जहां अनेकानेक पर्व , त्यौहार तथा परंपराएं हैं. धार्मिक चेतना का केंद्र कही जाने वाली भारतभूमि के निवासियों के लिए गुरु का परम महत्व माना गया है. गुरु शिष्य की ऊर्जा को पहचानकर उसके संपूर्ण सामर्थ्य को विकसित करने में सहायक होता है. गुरु नश्वर सत्ता का नहीं, चैतन्य विचारों का प्रतिरूप होता है. आज हिंदुस्थान ही नहीं बल्कि दुनियाभर में रहने वाले सनातनी गुरु पूर्णिमा का पावन पर्व मना रहे हैं तथा अपने अपने गुरुओं को नमन कर रहे हैं.
तत्वदर्शी ऋषियों की इस जागृत धरा भारतभूमि का ऐसा ही एक पावन पर्व है गुरु पूर्णिमा. हमारे यहां ‘अखंड मंडलाकारं व्याप्तं येन चराचरं...तस्मै श्री गुरुवे नम:’ कह कर गुरु की अभ्यर्थना एक चिरंतन सत्ता के रूप में की गई है. भारत की सनातन संस्कृति में गुरु को परम भाव माना गया है जो कभी नष्ट नहीं हो सकता, इसीलिए गुरु को व्यक्ति नहीं अपितु विचार की संज्ञा दी गई है। इसी दिव्य भाव ने हमारे राष्ट्र को जगद्गुरु की पदवी से विभूषित किया.
जब जब राष्ट्र पर संकट आया, विधर्मी ताकतों ने सनातन की ओर कुदृष्टि दौड़ाई, तब तब गुरुओं ने अपने तप, त्याग, तेज आदि से धर्म की रक्षा की. चाहे वह प्रभु श्रीराम के गुरु विश्वामित्र हों, या प्रभु श्रीकृष्ण के गुरु संदीपन, चाहे वह महर्षि दधीचि हों, आदि शंकराचार्य हों, चाणक्य हों या राजमाता जीजाबाई.. धर्म की रक्षा के लिए समय समय पर ऐसे अनगिनत महापुरुषों ने गुरु बनकर ज्ञान तथा शौर्य की ऐसी ज्योति जलाई जिससे धर्म जागरण की मशाल आज भी दीप्तिमान हो रही है तथा विधर्मियों के तमाम हमलों के बाद भी सनातन बचा हुआ है.
आज जब हम सभी गुरु पूर्णिमा का पावन पर्व मना रहे हैं तो हमें ऐसे ही समस्त गुरुओं को याद करना चाहिए, उन्हें नमन वंदन करना चाहिए जिन्होंने धर्म जागरण के लिए, धर्म रक्षा के लिए, पावन भारतभूमि की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व न्यौछाबर कर दिया. आज गुरु पूर्णिमा के पावन पर्व पर सुदर्शन परिवार हमें सन्मार्ग दिखाने वाले, हमारे अंदर धर्मरक्षा का जज्बा पैदा करने वाले समस्त गुरुओं को नमन वंदन करता है तथा आखिरी समय तक धर्मरक्षा करते रहने का संकल्प लेता है.