शनि प्रदोष व्रत हर महीने के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को रखा जाता है। इस व्रत का विशेष महत्व है, क्योंकि यह भगवान शनि की विशेष कृपा प्राप्त करने का एक प्रभावशाली उपाय माना जाता है। शनि ग्रह से संबंधित समस्याओं के समाधान के लिए यह व्रत बहुत लाभकारी होता है। इस व्रत में भगवान शिव और शनि देव की पूजा की जाती है। तो जानिए पूजा विधि से लेकर सब कुछ।
शनि प्रदोष व्रत की पूजा विधि
व्रत प्रारंभ: शनि प्रदोष व्रत के दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर नित्य कर्मों से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र पहनें। फिर भगवान शिव का अभिषेक करने के लिए शुद्ध जल, दूध, शहद, चीनी, गुड़ और अन्य पूजन सामग्री एकत्रित करें।
स्नान और व्रत संकल्प: स्नान करके व्रत का संकल्प लें और शनि देव तथा भगवान शिव का ध्यान करें। भगवान शिव की पूजा करने से पहले उनकी मूर्ति या चित्र पर जल चढ़ाएं और ताजे फूल अर्पित करें।
शनि देव की पूजा: शनि देव की पूजा के दौरान, उन्हें तिल, सरसों तेल, और काले तिल चढ़ाने का विशेष महत्व है। शनि देव के मंत्र "ॐ शं शनैश्चराय नमः" का जप करें। इसके बाद उन्हें नारियल, चिउड़े, गुड़ और तिल का प्रसाद अर्पित करें।
आरती और ध्यान: पूजा के बाद भगवान शिव और शनि देव की आरती गाएं और उनका ध्यान करें। विशेष रूप से प्रदोष काल में पूजा का महत्व अधिक होता है। प्रदोष काल सूर्यास्त के समय से लेकर रात्री के लगभग दो घंटे तक होता है।
व्रत पारण: शनि प्रदोष व्रत का पारण अगले दिन सूर्योदय से पहले करें। पारण के समय ताजे फल और जल का सेवन करें। इस दौरान व्रति को व्रत के नियमों का पालन करते हुए अपने दायित्वों को पूरी श्रद्धा से निभाना चाहिए।