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Sharad Purnima 2024: 16 या 17 अक्टूबर कब मनाई जाएगी शरद पूर्णिमा, इसी रात हुआ था महारास... जानिए क्या है महत्व

शरद पूर्णिमा की रात को बहुत खास माना जाता है, इस रात को चंद्रमा पूरी तरह चमकता है यानी चंद्रमा 16 कलाओं से परिपूर्ण होते हैं।

Ravi Rohan
  • Oct 14 2024 1:27PM

पूर्णिमा तिथि का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन पूजा, स्नान और दान करने से अपार लाभ मिलता है। वैदिक पंचांग के अनुसार, आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा पर शरद पूर्णिमा व्रत मनाया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की आराधना का विशेष महत्व होता है। कहा जाता है कि शरद पूर्णिमा के दिन पूजा करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। आइए, जानते हैं इस साल शरद पूर्णिमा व्रत कब है, शुभ मुहूर्त और इसकी धार्मिक महत्ता।

शरद पूर्णिमा 2024 की तिथि:

वैदिक पंचांग के अनुसार, आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा 16 अक्टूबर 2024 को रात 8:40 बजे शुरू होगी और 17 अक्टूबर को शाम 4:55 बजे समाप्त होगी। इस दिन भगवान विष्णु के साथ-साथ चंद्र देव की भी आराधना की जाती है। इसलिए, शरद पूर्णिमा का व्रत 16 अक्टूबर (बुधवार) को मनाया जाएगा, जिसमें कोजागरी पूजा भी की जाएगी।

शरद पूर्णिमा 2024 में चंद्रोदय का समय:

पंचांग के अनुसार, इस दिन चंद्रमा का उदय शाम 5:05 बजे होगा, और चंद्र देव की उपासना प्रदोष काल में की जा सकती है।

शरद पूर्णिमा व्रत का महत्व:

शास्त्रों में शरद पूर्णिमा के महत्व को गहराई से समझाया गया है। इस दिन चंद्रमा सभी 16 कलाओं से पूर्ण होता है, और भगवान श्री कृष्ण को इस विशेषता का धनी माना जाता है। शरद पूर्णिमा पर भगवान विष्णु, माता लक्ष्मी और चंद्र देव की आराधना का विधान है। चंद्र देव को अर्घ्य देने के बाद ही व्रत का पारण किया जाता है। मान्यता है कि इस पूजा से जीवन में सुख, समृद्धि और धन की प्राप्ति होती है, साथ ही सभी समस्याओं का समाधान होता है।

क्या है महारास ?

लीलापुरुषोत्तम श्रीकृष्ण ने चंद्रमा की 16 कलाओं से संयुक्त शरद पूर्णिमा की रात को जो महारास का आयोजन किया, उसे उपनिषद के विद्वान एक अद्वितीय आध्यात्मिक घटना मानते हैं। अध्यात्मज्ञों का मानना है कि यह महारास भगवान श्रीकृष्ण का एक गहरा रहस्य है, जिसमें आध्यात्मिक और भौतिक दोनों पहलुओं की गहराई समाई है। "रास पंचाध्यायी" में इस महारास का विस्तृत वर्णन मिलता है, जहां श्रीकृष्ण द्वारा रचित 16 कलाओं का उल्लेख किया गया है।

इन 16 कलाओं में शामिल हैं: श्री (धन-संपदा), भू (अचल संपत्ति), कीर्ति (यश), इला (वाणी की आकर्षण), लीला (आनंद), कांति (सौंदर्य), विद्या (बुद्धि), विमला (पारदर्शिता), उत्कर्षिणि (प्रेरणा), ज्ञान (विवेक), क्रिया (कर्म), योग (चित्त की शांति), प्रहवि (विनम्रता), सत्य (सत्यता), इसना (आधिपत्य), और अनुग्रह (उपकार)। इन कलाओं के सम्मोहन में बंधकर ब्रज की गोपियां उस "निधि वन" की ओर खिंच गईं, जहां श्रीकृष्ण ने उन्हें आत्मज्ञान की अद्भुत अनुभूति कराई।

श्रीमद्भागवत पुराण के 'रास पंचाध्यायी' में महारास को केवल शारीरिक प्रेम का खेल नहीं, बल्कि प्रेम की सर्वोच्च अवस्था के रूप में प्रस्तुत किया गया है। जब गोपियां श्रीकृष्ण की बांसुरी की मधुर तान सुनकर निकट आईं, तो श्रीकृष्ण ने उनकी भावनाओं की परीक्षा लेने के लिए उनसे सतीत्व का उपदेश दिया। गोपियों ने उत्तर दिया कि उनके पति और पुत्र इस जीवन में उनका पालन-पोषण करते हैं, लेकिन असली प्रेम तो वे स्वयं श्रीकृष्ण से पाती हैं, जो जन्मों से उनके साथ हैं।

इस निर्मल भावना का परिचायक यह है कि गोपियां मंडलाकार खड़ी होती हैं और भगवान श्रीकृष्ण के साथ रासोत्सव मनाती हैं। महात्मा श्री अरविंद ने इस आध्यात्मिक घटना को "ओवरमाइंड" की संज्ञा दी है, जो इसके गहरे आध्यात्मिक आयाम को दर्शाता है।



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