कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को कालाष्टमी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन विशेष रूप से भगवान काल भैरव की पूजा की जाती है। काल भैरव भगवान शिव के रौद्र रूप माने जाते हैं और उनकी पूजा से भक्तों के जीवन से भय, कष्ट और संकट दूर होते हैं। वर्ष 2025 में कालाष्टमी 22 मार्च को मनाई जा रही है। इस दिन व्रत करने से बाबा काल भैरव की कृपा प्राप्त होती है और व्यक्ति के जीवन में आने वाली परेशानियों का समाधान होता है।
कालाष्टमी की व्रत कथा
कालाष्टमी का व्रत बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। इसे सही विधि से करने पर जीवन में समृद्धि और सुख की प्राप्ति होती है। कालाष्टमी के दिन विशेष रूप से रात्रि को पूजा का महत्व है। एक प्राचीन कथा के अनुसार, जब देवता और दानवों के बीच समुद्र मंथन हुआ था, तो कई रत्न और अमृत की प्राप्ति हुई। इस बीच एक भयावह राक्षस "काल" उत्पन्न हुआ। भगवान शिव ने काल को अपने स्वरूप में समाहित कर लिया और उसे काल भैरव के रूप में स्थापित किया। काल भैरव ने राक्षसों का संहार किया और देवताओं की रक्षा की। इसी कारण से, इस दिन बाबा काल भैरव की पूजा करने से भय, शत्रु और सभी प्रकार के संकटों से मुक्ति मिलती है।
पूजा विधि और महत्व
कालाष्टमी के दिन उपवासी रहकर व्रत करना विशेष रूप से लाभकारी होता है। इस दिन विशेष रूप से काल भैरव की पूजा रात्रि में करनी चाहिए। पूजा में तंत्र-मंत्र का उच्चारण किया जाता है, जिससे नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। पूजा में सबसे पहले बाबा काल भैरव का चित्र या प्रतिमा स्थापित करें। फिर उन्हें ताम्र पत्र, ताम्र पात्र में जल, फूल, बेल पत्र, रोली, चंदन, दीपक और नैवेद्य अर्पित करें। पूजा के बाद रात भर जागरण करें और भैरव की महिमा का जाप करें।
उपवास और ध्यान का महत्व
व्रति को उपवासी रहकर ध्यान और प्रार्थना करनी चाहिए। इस दिन विशेष रूप से ताम्र पत्र में काल भैरव के मंत्रों का जाप किया जाता है, जैसे "ॐ काल भैरवाय नमः"। इस दिन का व्रत और पूजा विशेष रूप से सभी तरह के भय और संकटों से मुक्ति पाने के लिए किया जाता है। साथ ही, काल भैरव की पूजा से शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है और जीवन में सुख-समृद्धि का आगमन होता है।