टाटा संस के मानद चेयरमैन और भारत के दिग्गज उद्योगपति रतन टाटा का बुधवार को देर रात मुंबई एक अस्पताल में निधन हो गया है। उन्होंने बुधवार रात करीब 11.30 बजे अंतिम सांस ली। उनके निधन पर देशभर में शोक की लहर है। रतन टाटा ने बुधवार रात मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में आखिरी सांस ली। अब तो वो इस दुनिया में नहीं रहे लेकिन उनकी जीवनी काफी चौंकाने वाली है। टाटा के जीवनी एक सीख देती है और यह हमें अपने विरोधियों को जवाब देकर अपने लक्ष्य को प्राप्त करना सिखाता है। ऐसे में आइए जानते हैं कि कैसे उन्होंने अपने जीवन के हर मौके पर खुद को साबित किया और एक रईस बनकर देश-दुनिया कैसे में मशहूर हुए।
रतन टाटा: जन्म, परिवार और शिक्षा
बता दें कि, रतन टाटा का जन्म 28 दिसंबर 1937 को बॉम्बे (जो अब मुंबई के नाम से जाना जाता है) नवल और सूनू टाटा के घर हुआ था। 10 साल की उम्र में ही उनके माता पिता की तलाक हो गई है। तलाक के बाद पिता ने स्विस महिला सिमोन दुनोयर से शादी की और मां ने सर जमसेतजी जीजीभॉय के साथ घर बसा लिया। हालांकि रतन की परवरिश उनकी दादी नवाजबाई टाटा ने की।
शुरुआती पढ़ाई की बात करें तो उन्होंने अपनी स्कूलिंग बॉम्बे से की है। रतन ने कैथेड्रल एंड जॉन कॉनन स्कूल और शिमला के बिशप कॉटन शिक्षा प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने हायर स्टडी के लिए अमेरिका पहुंचे और कॉर्नेल यूनिवर्सिटी से आर्किटेक्चर में ग्रेजुएशन किया। साल 1975 में उन्होंने ब्रिटेन के हार्वर्ड बिजनेस स्कूल से एडवांस्ड मैनेजनमेंट प्रोग्राम किया।
रतन ने करीब 7 साल अमेरिका में बिताया। पढ़ाई के बाद लॉस एंजिलिस में काम किया। उनको प्यार भी यहीं हुआ। अपने लव स्टोरी उन्होंने खुद शेयर की थी। रतन टाटा ने कहा कि जब वह अमेरिका में थे तो उन्होंने शादी कर ली होती लेकिन उनकी दादी ने उन्हें फोन करके बुलाया और उसी समय 1962 का भारत-चीन युद्ध शुरू हो गया। मैं भारत में रहा और उसने वहीं शादी कर ली।
भारत लौटने के बाद उन्होंने 1962 में जमशेदपुर में टाटा स्टील में सहायक के रूप में काम करना शुरू किया। प्रशिक्षु के बाद उन्हें प्रोजेक्ट मैनेजर बना दिया गया। अपने काम करने के तरीके से वह बुलंदियों पर पहुंचने लगे और प्रबंध निदेशक एसके नानावटी के विशेष सहायक बन गए। उनकी सोच और काम करने का अंदाज ने उनका नाम मुंबई तक पहुंचा दिया और जेआरडी टाटा ने उन्हें बॉम्बे बुला लिया।
उन्होंने कहा, इस दुनिया में इंसान को सिर्फ एक ही चीज असफल बना सकती है और वह है जोखिम न लेने की आदत। रतन टाटा ने कहा, जोखिम न लेना सबसे बड़ा जोखिम है. जेआरडी टाटा ने उन्हें कमजोर कंपनियों सेंट्रल इंडिया मिल और नेल्को को पुनर्जीवित करने की जिम्मेदारी सौंपी।
जैसी उम्मीद थी उन्होंने वैसा ही कर दिखाया। तीन साल के अंदर उनकी कंपनियां प्रॉफिट कमाने लगी। साल 1981 में रतन को टाटा इंडस्ट्रीज का प्रमुख बनाया गया। जेआरडी जब 75 साल के हुए चर्चा शुरू हुई कि उनका उत्तराधिकारी कौन होगा। लिस्ट में कई नाम थे। खुद रतन टाटा को भी लगता था कि उत्तराधिकारी पद के लिए दो ही दावेदार हैं- पालखीवाला और रूसी मोदी। लेकिन जेआरडी टाटा की नजर रतन पर थी। जब उन्होंने 86 वर्ष की उम्र में राष्ट्रपति पद से इस्तीफा दे दिया तो 1991 में रतन को उनका उत्तराधिकारी बनाया गया।
रतन टाटा का कहना था कि ‘मैं सही फैसले लेने में विश्वास नहीं रखता. मैं फैसले लेता हूं और फिर उन्हें सही साबित करता हूं…’ उन्होंने ऐसा ही किया, एक ऐसा वक्त भी था जब कारोबार जगत के दिग्गजों ने रतन टाटा की समझ पर सवाल उठाए, लेकिन वो अपने फैसलों पर डटे रहे। साल 2000 में उन्होंने अपने से दोगुने बड़े ब्रिटिश ग्रुप टेटली का अधिक ग्रहण किया। तब उनके फैसले पर सवाल उठाए गए थे, लेकिन अब यह दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी चाय कंपनी है। दूसरी बार सवाल तब उठे जब उन्होंने यूरोप की दूसरी सबसे बड़ी इस्पात निर्माता कंपनी कोरस को खरीदा, लेकिन इस बार भी रतन टाटा ने सबको प्रभावित किया।
जिस फोर्ड ने ताना मारा, उसके ब्रांड को ही खरीद लिया
रतन टाटा का मानना था कि चुनौतियों का सामना धैर्य और दृढ़ संकल्प के साथ करना चाहिए क्योंकि यही सफलता की आधारशिला हैं। उन्होंने इसका उदाहरण भी पेश किया। नैनो से पहले उन्होंने 1998 में टाटा मोटर्स को भारतीय बाजार में लॉन्च किया था। यह भारत में डिज़ाइन की गई पहली कार थी। यदि यह सफल नहीं हुआ तो इसे फोर्ड मोटर कंपनी को बेचने का निर्णय लिया गया। बातचीत के दौरान फोर्ड ने रतन टाटा पर तंज कसते हुए कहा कि अगर वह उनकी इंडिका खरीदेंगे तो यह भारतीय कंपनी पर बहुत बड़ा उपकार होगा।
इससे रतन टाटा और पूरी टीम नाराज थी. सौदा रद्द कर दिया गया। 10 साल बाद हालात बदल गए. फोर्ड अपने सबसे बुरे दौर में पहुँच गया। उन्होंने जगुआर और लैंड रोवर बेचने का फैसला किया। रतन टाटा ने इन दोनों ब्रांडों को 2.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर में हासिल किया। हालांकि, इस अधिग्रहण पर कारोबार क्षेत्र के विश्लेषकों ने सवाल उठाए और कहा, यह डील टाटा ग्रुप के लिए बोझ साबित होगी. टाटा ग्रुप की टाटा कंसल्टेंसी सर्विस का इस समूह की तरक्की में विशेष योगदान रहा, इसने कंपनी को पिछड़ने नहीं दिया। तमाम चुनौतियों, विवादों और उपलब्धियों के बीच टाटा ग्रुप उन बिजनेस ग्रुप्स में रहा, जिन पर भारतीयों का भरोसा कभी नहीं डिगा। चाहे वह कोविड काल में दी गई 1500 करोड़ रुपये की मदद हो या मरीजों को अपने लग्जरी होटल का इस्तेमाल करने की इजाजत देना हो।