आज़ादी के ठेकेदारों ने जिस वीर के बारें में नहीं बताया होगा, बिना खड्ग बिना ढाल के आज़ादी दिलाने की जिम्मेदारी लेने वालों ने जिसे हर पल छिपाने के साथ ही सदा के लिए मिटाने की कोशिश की ,, उन लाखों सशत्र क्रांतिवीरों में से एक थे राष्ट्रभक्त वी.वी. सुब्रमण्य अय्यर जी. भारत के इतिहास को विकृत करने वाले चाटुकार इतिहासकार अगर राष्ट्रभक्त वी.वी. सुब्रमण्य अय्यर जी का सच दिखाते तो आज इतिहास काली स्याही का नहीं बल्कि स्वर्णिम रंग में होता. आज राष्ट्रभक्त वी.वी. सुब्रमण्य अय्यर जी के जन्मदिवस पर सुदर्शन परिवार उन्हें कोटि-कोटि नमन करता है और उनकी गौरव गाथा को समय-समय पर जनमानस के आगे लाते रहने का संकल्प भी दोहराता है.
वेंकटेश सुब्रमण्यम अय्यर जी का जन्म 2 अप्रैल 1881 को तिरुचि के वराहनेरी उपनगर में हुआ था. अपनी प्रारंभिक शिक्षा के बाद, उन्होंने सेंट जोसेफ कॉलेज में अध्ययन किया और इतिहास, राजनीति और लैटिन में बीए किया था. उन्होंने कानून पेशे के लिए अध्ययन किया और 1902 में मद्रास विश्वविद्यालय से प्लीडर (जूनियर वकील) की परीक्षा उत्तीर्ण की. इसके बाद उन्होंने तिरुचि की जिला अदालतों में प्लीडर के रूप में अभ्यास किया.
इसके बाद वी.वी. सुब्रमण्य अय्यर जी 1906 में रंगून चले गए और एक अंग्रेजी बैरिस्टर के चैंबर्स में जूनियर के रूप में अभ्यास करना शुरू कर दिया था. रंगून से, वह 1907 में लंदन के लिए रवाना हुए और लॉ में बैरिस्टर बनने के लक्ष्य के साथ लिंकन इन में दाखिला लिया. लंदन में रहते हुए वी.वी. सुब्रमण्य अय्यर जी इंडिया हाउस के सदस्य बने. इसके बाद वी.वी. सुब्रमण्य अय्यर जी ने भारतीय स्वतंत्रता के लिए उग्रवादी संघर्ष में सक्रिय भूमिका निभानी शुरू कर दी.
राष्ट्रभक्त वी.वी. सुब्रमण्य अय्यर जी के उग्रवादी रवैये के कारण 1910 में ब्रिटिश राज को लंदन और पेरिस में अराजकतावादी साजिश में उनकी कथित संलिप्तता के लिए उनकी गिरफ्तारी का वारंट जारी करना पड़ा. वी.वी. सुब्रमण्य अय्यर जी ने लिंकन इन से इस्तीफा दे दिया और पेरिस भाग गए. हालांकि वह राजनीतिक निर्वासन के रूप में पेरिस में रहना चाहते थे, लेकिन उन्हें भारत लौटना पड़ा.
राष्ट्रभक्त वी.वी. सुब्रमण्य अय्यर जी ने गांधी के विचारों से वे उस समय सहमत नहीं थे. वे भारत को स्वतंत्रता दिलाने के लिए बल प्रयोग के पक्षधर थे. उन दिनों अय्यर का संपर्क वीर दामोदर विनायक सावरकर जी से भी हुआ था. इंग्लैंड में कानून की शिक्षा पूरी करने के बाद जैसे ही वहां के सम्राट के प्रति निष्ठा की शपथ लेने का समय आया तो सुब्रमण्य जी इसके लिए तैयार नहीं हुए और चुपचाप पांडिचेरी (जो फ्रांस के अधिकार में होने के कारण अंग्रेजों की पुलिस की पहुंच से बाहर था) चले गए. 1910 में पांडिचेरी पहुंचने पर उन्होंने युवाओं को शस्त्र चलाना सिखाया और वे देश के अन्य क्रांतिकारियों के पास भी हथियार पहुंचाते थे.
आज राष्ट्रभक्त वी.वी. सुब्रमण्य अय्यर जी के जन्मदिवस पर सुदर्शन परिवार उन्हें कोटि-कोटि नमन करता है और उनकी गौरव गाथा को समय-समय पर जनमानस के आगे लाते रहने का संकल्प भी दोहराता है.