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30 नवंबर: जयंती व पुण्यतिथि पर नमन 'स्वदेशी विचारधारा' के प्रेरणास्रोत राजीव दीक्षित जी को... जो भ्रष्टाचार और विदेशी कंपनियों के खिलाफ निडरता से बने योद्धा

राजीव दीक्षित जी के जयंती और पुण्यतिथि पर सुदर्शन परिवार उन्हें नमन करते है

Sumant Kashyap
  • Nov 30 2024 8:38AM

राजीव दीक्षित जी का नाम देशभक्ति और स्वदेशी आंदोलन के साथ गहराई से जुड़ा हुआ है. उनकी वक्तृत्व कला और निडर स्वभाव ने उन्हें समाजसेवा और लोक कल्याण के क्षेत्र में एक अद्वितीय पहचान दी. राजीव जी भारतीय संस्कृति, स्वदेशी उत्पादों और आयुर्वेद को बढ़ावा देने वाले महान समर्थक थे. राजीव दिक्षित सिर्फ एक समाजसेवक ही नहीं बल्कि एक विचारक भी थे जिन्होंने अपने विचारों और क्रियाओं से भारतीय समाज को समृद्धि की दिशा में मार्गदर्शन किया. 

वामपंथ के समर्थक देश की उन्नति में बहुत बड़ी रुकावट है, वे कभी भी राजीव दीक्षित जैसी सोच को बर्दाश्त नहीं कर सकते. आज 30 नवंबर को राजीव दीक्षित जी की जयंती और पुण्यतिथि दोनों ही है, ऐसे में सुदर्शन परिवार आधुनिक युग के ऐसे महापुरुष को बारंबार नमन करते हुए उनके विचारों को जन-जन तक पहुंचाने की कोशिश कर रहा है. आइए स्वदेशी आंदोलन के अग्रदूत और भारतीय संस्कृति के रक्षक के प्रेरक कहानी को जानें.

विदेशी कंपनियों के विरोधी और स्वदेशी के समर्थक

राजीव दीक्षित जी विदेशी कंपनियों द्वारा भारत के व्यापार और आर्थिक संरचना पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों के खिलाफ थे. वे हमेशा इन कंपनियों के कारण देश के छोटे उद्योगों और स्थानीय व्यापारियों को हो रहे नुकसान के प्रति लोगों को जागरूक करते रहे. उनका मानना था कि विदेशी कंपनियां न केवल देश की अर्थव्यवस्था को कमजोर कर रही हैं, बल्कि भारत की स्वदेशी पहचान को भी खत्म कर रही हैं.

उन्होंने अपने भाषणों में बार-बार यह बताया कि कैसे ये कंपनियां देश के छोटे व्यापारियों के लिए खतरा बन रही हैं. उनके निडर विचार और स्पष्ट वक्तव्य ने उन्हें लोगों के बीच लोकप्रियता दिलाई.

भ्रष्टाचार और विदेशी नीतियों के खिलाफ संघर्ष

राजीव दीक्षित जी भ्रष्टाचार के सख्त विरोधी थे. वे हमेशा उन नीतियों के खिलाफ आवाज उठाते रहे जो विदेशी कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए बनाई जाती थीं. उनका कहना था कि इन नीतियों से गरीब और मध्यम वर्ग के लोगों की स्थिति और भी खराब होती जा रही है.उन्होंने बिना किसी डर के भ्रष्ट नेताओं और व्यवस्था की आलोचना की. उनका यह निडर स्वभाव उन्हें जनता का चहेता बनाता गया. देश के प्रति उनकी प्रतिबद्धता और निष्ठा ने उन्हें एक सच्चा कर्मयोगी और देशभक्त बना दिया.

शिक्षा और प्रारंभिक जीवन

राजीव दीक्षित जी का जन्म एक स्वतंत्रता सेनानी परिवार में हुआ था. उनकी प्रारंभिक शिक्षा उनके गांव नाह (उत्तर प्रदेश) में हुई. बाद में माध्यमिक और उच्च माध्यमिक शिक्षा के लिए वे फिरोजाबाद गए. पढ़ाई में कुशल राजीव ने जेके इंस्टीट्यूट से बी.टेक और आईआईटी कानपुर से एम.टेक की पढ़ाई पूरी की.

स्वदेशी विचारधारा की प्रेरणा

राजीव दीक्षित जी को स्वदेशी आंदोलन से जोड़ने वाली घटना उनके छात्र जीवन में घटी. बी.टेक के दौरान, वे रिसर्च पेपर पढ़ने के लिए नीदरलैंड्स के एम्स्टर्डम गए. जब उन्होंने अपना पेपर अंग्रेजी में प्रस्तुत करना शुरू किया, तो एक डच वैज्ञानिक ने उनसे उनकी मातृभाषा में बोलने का आग्रह किया.इस बात पर उस डच वैज्ञानिक ने बहुत सुंदर जवाब दिया कि-"आप इस बात की चिंता ना करें, जिस तरह अन्य वैज्ञानिकों ने अपनी-अपनी मातृभाषा का प्रयोग कर के रिसर्च पेपर पढ़ा, आपने भी अपनी मातृभाषा में ही रिसर्च पेपर पढ़ें. जो लोग हिन्दी भाषा नहीं समझ सकते वह भाषा अनुवादन सुविधा से आपकी बात सुन और समझ भी लेंगे."

 यह घटना राजीव दीक्षित के लिए प्रेरणादायक बनी. भारत लौटने के बाद उन्होंने यह सोचना शुरू किया कि जब अन्य देशों में मातृभाषा को इतना महत्व दिया जाता है, तो भारत में क्यों नहीं? उन्होंने हिंदी और स्वदेशी संस्कृति के महत्व को समझते हुए इसे जन-जन तक पहुंचाने का संकल्प लिया.

 छोटे जीवन में बड़ा योगदान

 राजीव दीक्षित ने अपने 43 साल के जीवन में समाजसेवा, स्वदेशी विचारधारा और भारतीय संस्कृति के लिए जो योगदान दिया, वह अनुकरणीय है. उनकी मेहनत और देशभक्ति आज भी लाखों लोगों को प्रेरित करती है. 

 जन्म और शिक्षा

 राजीव दीक्षित जी आयुर्वेद और योग के अच्छे ज्ञाता थे  वे स्वदेशी के पक्षधर थे और देश में बनी वस्तुओं को बढ़ावा देने की बात किया करते थे. वो अपनी सभाओं और कार्यक्रमों में लोगों को एलोपैथी को छोड़कर आयुर्वेद को अपनाने की सलाह दिया करते थे. राजीव दीक्षित जी का जन्म उत्तर प्रदेश के हरिगढ़ में 30 नवंबर 1967 को हुआ था. उन्होंने प्रयागराज से बी.टेक और आईआईटी, कानपुर से M,TEC की पढ़ाई की थी. इसके अलावा राजीव दीक्षित ने फ्रांस से पीएचडी की थी और CSIR में एंटी ग्रैविटी पर रिसर्च का काम किया था. वो बताते हैं कि उनकी रिसर्च के लिए जर्मनी का मैक्स प्लांक इंस्टीट्यूट उन्हें अरबों का डॉलर देने के लिए तैयार हो गया था. लेकिन वो नहीं चाहते थे कि उनकी रिसर्च किसी और देश के हाथ लगे. इसलिए उन्होंने रिसर्च बेचने से इनकार कर दिया. 

 भ्रष्टाचार के कट्टर शत्रु 'राजीव दीक्षित'

 1984 में भोपाल गैस त्रासदी के बाद राजीव दिक्षित जी ने बड़े जोर शोर से यूनियन कार्बाइड कंपनी का विरोध किया. उनका कहना था कि. यूनियन कार्बाइड घटना एक सुनियोजित अमेरिकी साजिश थी. और ये भारतीयों पर एक प्रयोग के तौर पर किया गया था. यहीं से राजीव दीक्षित ने विदेशी कंपनियों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. उन्होंने देश भर में घूम-घूमकर भाषण देना शुरू किया. इन भाषणों में वह भारतीय शिक्षा प्रणाली, कर प्रणाली, आधुनिक चिकित्सा और अंतरराष्ट्रीय कंपनियों की आलोचना करते हैं. 

 राजीव दीक्षित ने अपने विचारों के माध्यम से भारतीय अर्थव्यवस्था को भी गहराई से छूने का प्रयास किया इकॉनमिक सिस्टम के बारे में राजीव दीक्षित कहते हैं कि देश का टैक्सेशन सिस्टम डिसेंट्रलाइज्ड (Decentralization) कर दिया जाना चाहिए. क्योंकि यही देश में भ्रष्टाचार की जड़ है. वे न केवल एक सामाजिक कार्यकर्ता थे बल्कि उनका राजनीतिक दृष्टिकोण भी था उन्होंने अपने समय में हो रहे राजनीतिक घटनाओं में भी सक्रिय भूमिका निभाई.

 दिक्षित जी पर आपत्तिजनक रूप से रखी गई नजरें भी उनेके विचारों के प्रति समाज की सकारात्मक योग्यता को कम नहीं कर सकतीं. राजीव दीक्षित जी की कुछ आपत्तियों और विवादों ने उन्हें घेरा जरूर पर उनकी भूमिका और योगदान को नकारात्मक तौर से देखने वालों की विचारधारा को छोड़कर वह भारतीय समाज में एक महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं.



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